Baby John Review: मास हीरो वरुण धवन को भुनाने में नाकाम रही कमजोर कहानी, करती है इरिटेट
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वरुण धवन नेचुरली एक चार्मिंग और मजेदार आदमी लगते हैं. इसलिए अगर वो विस्फोटक एक्शन और इंटेंसिटी के साथ दिखें तो सरप्राइज वाली बात होती है, जैसे 'बदलापुर'. हुआ ये है कि 'बेबी जॉन' में ये सरप्राइज वाला मामला पर्याप्त नहीं लगता
'बेबी जॉन' वो फिल्म है जिसमें आपको राजपाल यादव एक्शन करते दिख रहे हैं. और यकीन मानिए क्लाइमैक्स से ठीक पहले उनका एक डायलॉग और ये एक्शन फिल्म का यादगार मोमेंट है. ऐसा नहीं है कि 'बेबी जॉन' के हीरो वरुण धवन ने दमदार काम नहीं किया है. लेकिन मास फिल्मों की खासियत ही आपको सरप्राइज करना होता है. कुछ ऐसा करना जो सोच से इतना परे हो कि आप डायरेक्टर-राइटर की सोच स्क्रीन पर देखकर 'वाओ' वाली फीलिंग में आ जाएं.
मास फिल्मों की आइकॉन 'गदर' में सनी देओल का हैंडपम्प उखाड़ना इसीलिए आज भी अद्भुत लगता है. लेकिन फिर भी स्क्रीन पर ये सीन विश्वास करने लायक लगता है क्योंकि सनी हैं भी इतने दमदार आदमी. वरुण धवन नेचुरली एक चार्मिंग और मजेदार आदमी लगते हैं. इसलिए अगर वो विस्फोटक एक्शन और इंटेंसिटी के साथ दिखें तो सरप्राइज वाली बात होती है, जैसे 'बदलापुर'. तो हुआ ये है कि 'बेबी जॉन' में ये सरप्राइज वाला मामला पर्याप्त नहीं लगता और ये कमी कमजोर स्क्रिप्ट की है.
क्या है 'बेबी जॉन' का प्लॉट? फिल्म की शुरुआत होती है एक पुलिस ऑपरेशन से जिसमें सेक्स ट्रेड के लिए लड़कियों को किडनैप कर विदेश भेजने वाले रैकेट का खुलासा होता है. मगर ये ऑपरेशन बड़े फनी तरीके से फेल होता है क्योंकि पुलिस ऑफिसर की अपनी बेटी भी किडनैप हो चुकी है. यहां सीक्रेट पुलिस ऑफिसर टाइप एक आदमी का जिक्र आता है. कहां से? कैसे? ये सवाल ना पूछें क्योंकि फिल्म के पास ये सब बताने का टाइम नहीं है.
जॉन (वरुण धवन) और उसकी बेटी खुशी (जारा जैना) केरल में हंसते-गाते जी रहे हैं. नदी किनारे जॉन का बेकरी कम कैफे टाइप कुछ है, जिसे एक्सप्लेन करने का फिल्म के पास टाइम नहीं था. बाप-बेटी हंसी-खुशी गाने गाते एक दूसरे के साथ जिंदगी का स्वाद ले रहे हैं और उनके साथ गाना गाने खुशी की टीचर तारा (वामिका गब्बी) भी आ जाती हैं, क्योंकि उसे जॉन में बड़ी दिलचस्पी है. इसकी वजह आप अपने आप समझ लें क्योंकि फिल्म के पास एक्सप्लेन करने का टाइम नहीं है.
इन सबकी हंसी खुशी चलती जिंदगी में एक ट्विस्ट आता है और जॉन का पास्ट खुलने लगता है. वो सत्या वर्मा नाम का एक पुलिस ऑफिसर था, जिसका बड़ा ट्रैजिक पास्ट है. और उस पास्ट में से जॉन के पास प्रेजेंट में सिर्फ दो ही चीजें बची हैं- उसकी बेटी खुशी और उसका पुराना साथी राम सेवक (राजपाल यादव). खुशी के पीछे अब वो विलेन पड़ा है, जो जॉन उर्फ सत्या के पास्ट से निकला है.
विलेन का नाम है बब्बर शेर (जैकी श्रॉफ), जो आजकल ट्रेंड में चल रहे बिना नहाए धोए, शरीर पर दो चार खून के छींटे लेकर घूमने वाले अनहाइजीनिक विलेन का स्टीरियोटाइप है. हालांकि, इस रोल में जैकी जमे बहुत हैं. तो अब जॉन को बब्बर शेर से निपटना है, खुशी को सुरक्षित रखना है और चूंकि वो मास हीरो है वो थोड़ी बहुत मसीहाई भी करनी है. तारा के अपने कुछ एजेंडे हैं, जो फिल्म में देखना ही आपके लिए ठीक रहेगा. बस सवाल ये है कि कहानी की शुरुआत में जिस अंडर कवर ऑफिसर टाइप आदमी का जिक्र आया था, वो कौन है?
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