नए साल में बस इन 5 चीजों से तौबा कर ले बॉलीवुड, खुश हो जाएगा हिंदी फिल्म फैन्स का दिल
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कुछ गिनी-चुनी फिल्मों को छोड़ दें तो 2024 एक ऐसा साल रहा जिसमें जनता को बड़े और चर्चित बॉलीवुड प्रोजेक्ट्स, और एक्टर्स से निराशा ही हाथ लगी. फिर चाहे साल की शुरुआत में आई 'फाइटर' हो या साल खत्म होते-होते आई 'बेबी जॉन'. भला हुआ जो 'लापता लेडीज', 'स्त्री 2 और 'पुष्पा 2' जैसी फिल्मों ने मूड संभाले रखा.
2025 का स्वागत-सत्कार शुरू हो चुका है और लोग नए साल में, नई ऊर्जा के साथ, नई कामयाबियों के लिए कमर कस रहे हैं. सफर लंबा है तो नई एनर्जी और मोटिवेशन के साथ-साथ पर्याप्त एंटरटेनमेंट की व्यवस्था भी जरूरी होती है. इसलिए हमारे भरोसेमंद साथी बॉलीवुड को भी साथ ले लेना जरूरी है, जो लगातार कई सालों से सिनेमाई एंटरटेनमेंट कायदे से डिलीवर करता रहा है. हालांकि, बीते साल ये कुछ खास भरोसेमंद नहीं साबित हुआ.
कुछ गिनी-चुनी फिल्मों को छोड़ दें तो 2024 एक ऐसा साल रहा जिसमें जनता को बड़े और चर्चित बॉलीवुड प्रोजेक्ट्स, और एक्टर्स से निराशा ही हाथ लगी. फिर चाहे साल की शुरुआत में आई 'फाइटर' हो या साल खत्म होते-होते आई 'बेबी जॉन'. भला हुआ जो 'लापता लेडीज', 'स्त्री 2 और 'पुष्पा 2' जैसी फिल्मों ने मूड संभाले रखा.
हालांकि, ध्यान देने वाली बात ये है कि जिन फिल्मों के नाम के आगे बॉक्स ऑफिस पर 'हिट' लिखा गया, उनमें से भी अधिकतर बॉलीवुड फिल्में ऐसी निकलीं जिन्हें बहुत मजेदार नहीं कहा जा सकता. ऐसे में पिछले साल की बॉलीवुड फिल्मों के हाल का निचोड़ निकालें तो जनता के बिहेवियर से इंडस्ट्री के लिए कुछ मैसेज साफ-स्पष्ट हैं:
फिल्में बनें, 'प्रोजेक्ट' नहीं बॉलीवुड में ये ट्रेंड बनता जा रहा है कि एक फिल्म के चलते ही सब उसी तरह की फिल्में प्लान करने लगते हैं. पिछले कुछ सालों में देशभक्ति और राजनीति के चर्चित मुद्दों पर बनी कुछ फिल्में कामयाब हुईं. नतीजा ये हुआ कि बॉलीवुड से ऐसे ही टॉपिक पर बनी फिल्मों की अनाउंसमेंट की बाढ़ आ गई.
जनता बोर हुई और 2024 ऐसी फिल्मों के लिए बहुत बुरा साबित हुआ जिनमें जनता ने दूर से ही किसी फॉर्मुले पर एक 'प्रोजेक्ट' डिजाईन करने की कोशिश सूंघ ली. 'बड़े मियां छोटे मियां' का बुरा हाल इसी का नतीजा था. बड़ा बजट, बड़े हीरोज के साथ ढेर सारे स्टंट्स मिलाकर, एक देशभक्ति जगाने वाली फिल्म बनाने का फॉर्मूला जनता ने दूर से ही ताड़ लिया. 'फाइटर' के भी औसत प्रदर्शन के पीछे यही वजह थी. ऋतिक रोशन-दीपिका पादुकोण जैसे बड़े नाम ना होते तो 'फाइटर' का हाल बुरा होता.
ऊपर से अब एक नया फॉर्मूला जरूरत से ज्यादा घिसा जाने लगा है- फ्रैंचाइजी और यूनिवर्स. 'सिंघम' जैसी फ्रैंचाइजी का तीसरी फिल्म तक आते-आते, मात्र स्टंट शो बनकर रह जाना दिखाता है कि अब मेकर्स सिर्फ जनता में अपनी पुरानी साख को इस्तेमाल करके हिट्स बना लेना चाहते हैं. दिवाली पर आई 'सिंघम अगेन' को कितना भी हिट कहा जाए, मगर बॉलीवुड के 5-7 बड़े नामों का एक फिल्म में साथ आकर 300 करोड़ भी कलेक्शन ना कर पाना एक मैसेज है.