Rocketry The Nambi Effect Review: इसरो के जीनियस की कहानी में छाए आर माधवन, ड्रामा-इमोशंस से भरी है फिल्म
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एक्टर आर माधवन अपनी फिल्म रॉकेट्री: द नम्बि इफेक्ट के साथ नम्बि नारायणन की कहानी को पर्दे पर लेकर आए हैं. इसरो के साइंटिस्ट नम्बि नारायणन ने अपने करियर में कई बुंलदियों को छुआ, कई चुनौतियों से लड़ाई कर उनपर खरे उतरे, लेकिन जिंदगी में उन्हें बदनामी जैसी चीजें भी झेलनी पड़ीं. अपने रिव्यू में हम बता रहे हैं कैसी है ये फिल्म.
एक शख्स जो जीनियस है, जिसने अपने करियर में हमेशा देश के बारे में सोचा. अपने देश को आसमान की ऊंचाइयों तक पहुंचाने के सपने के बजाए ब्रह्मांड में सबसे आगे ले जाने के सपने देखे और उसके लिए हर कोशिश की. इसके बावजूद उसे देशद्रोही करार दिया गया. उसे और उसके परिवार पर लांछन लगाए गए और बीच बजार जलील किया गया. ये सब सोचने में जितना बुरा लगता है, उससे ज्यादा यह जानने में आपको लगेगा कि यह सारी बातें उस शख्स के साथ असलियत में हुई है. और वो शख्स हैं इसरो के जीनियस साइंटिस्ट रहे नम्बि नारायणन.
एक्टर आर माधवन अपनी फिल्म रॉकेट्री: द नम्बि इफेक्ट के साथ नम्बि नारायणन की कहानी को पर्दे पर लेकर आए हैं. इसरो के साइंटिस्ट नम्बि नारायणन ने अपने करियर में कई बुंलदियों को छुआ, कई चुनौतियों से लड़ाई कर उनपर खरे उतरे, लेकिन जिंदगी में उन्हें जगहंसाई और बदनामी जैसी चीजें भी झेलनी पड़ीं. यह सब उनके साथ एक झूठे आरोप के चलते हुआ, जिसे बाद में कोर्ट ने भी गलत पाया था.
रॉकेट्री: द नम्बि इफेक्ट की कहानी बताती है कि कैसे नम्बि नारायणन जैसे बेहतरीन साइंटिस्ट को पॉलिटिक्स के चलते दुनियाभर की मुश्किलों का सामना करना पड़ा. इसके चलते नम्बि और उनके परिवार ने तो दर्द झेला ही, साथ ही भारत के मंगल मिशन को भी इसकी वजह से दशकों पीछे फेंक दिया गया. इस बढ़िया बायोपिक में आर माधवन ने अपने करियर का बेस्ट काम करके दिखाया है. 29 साल के नम्बि नारायणन से लेकर बूढ़े नम्बि तक के रूप में उन्हें देखा गया. माधवन के ट्रांसफॉर्मेशन के चर्चे लंबे समय से हो रहे हैं. उन्होंने अपने आप को नम्बि के लुक में ढालने के लिए जितनी मेहनत की है, उससे कहीं ज्यादा उनके किरदार में खुद को डालने के लिए भी की है. यह चीज आप फिल्म रॉकेट्री में भी साफ देख सकते हैं.
एक तेज दिमाग, शातिर और समझदार नम्बि नारायणन के किरदार में माधवन ऐसे ढले हैं कि आप उनमें और असली नम्बि में फर्क नहीं कर सकते. फिल्म में आप देखेंगे कि कैसे विक्रम साराभाई के फैन रहे नम्बि ने भारत को स्पेस में ले जाने के लिए फ्रांस के लोगों से चतुराई से लिक्विड इंजन बनाने की कला सीखी, अमेरिका की नाक के नीचे से कायरोजेनिक फ्यूल इंजन रूस से भारत लेकर आए. भारत को उसका पहला लिक्विड फ्यूल इंजन VIKAS नम्बि नारायणन ने ही दिया था. लेकिन 1994 में उनपर लगे देशद्रोह के इल्जामों ने सबकुछ बदलकर रख दिया.
आर माधवन ने इस फिल्म को लिखा, इसमें एक्टिंग की और इसका डायरेक्शन भी किया है. फिल्म की शुरुआत से ही साफ हो जाता है कि यह कोई ऐसी वैसी बायोपिक नहीं है. इसमें सस्पेंस है, ड्रामा है, रॉकेट साइंस और इमोशंस भी हैं. रॉकेट्री का इंटरवल जहां होता है, ज्यादातर बायोपिक्स वहां खत्म होती हैं. और यही इस फिल्म को खास बनाता है. जैसे-जैसे फिल्म की कहानी और जर्नी आगे बढ़ती है आप उसमें खो जाते हैं. ये फिल्म आपको अपनी सीट से बांधते रखती है. नम्बि की सफलता में आप खुश होते हैं और उसके दुख में दुखी. इस फिल्म में कई साइंस, सॉलिड और लिक्विड फ्यूल के बारे में बातें हैं, जिन्हें आपको समझने में थोड़ा-सा समय लगेगा. लेकिन फिल्म के अंत तक आते-आते आप भी इमोशनल हो जाएंगे.
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