'गटर में कूदे...मिलिट्री लेवल पर हुई शूटिंग', दया ने बताई मुश्किलें, एक रूम शेयर करती थी CID कास्ट
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दयानंद ने इस शो को डेली सोप्स से बेहद अलग बताते हुए कहा- सीआईडी का प्लस पॉइंट ये था कि हर दिन अलग होता था. लोकेशन और को-स्टार बदलते रहते थे. कभी हम किसी बड़े स्टार के साथ शूट करते थे तो कभी दूसरे एक्टर्स के साथ. हर एपिसोड में हमारे पास करीब 15-17 लोकेशन होती थीं. इसलिए हम बोर नहीं होते थे.
टीवी का सबसे आइकॉनिक शो CID 6 साल बाद स्क्रीन पर वापसी करने जा रहा है. इस न्यूज ने फैंस के बीच खूब बज बना दिया है. एक साथ सीआईडी की स्टार कास्ट को फिर से पर्दे पर देखना चाहने वालों के लिए किसी सपने से कम नहीं है. शो में दया का किरदार निभाने वाले दयानंद शेट्टी ने इसकी वापसी पर बात की और बताया कि शूट के दौरान कास्ट को किस तरह के चैलेंजेस फेस करने पड़ते थे.
20 साल तक चलने वाले इस क्राइम शो की शूटिंग के दौरान कई बार उन्हें मिलिट्री माइंडसेट से गुजरना पड़ा. उन्होंने बताया कि शो की शूटिंग करते हुए किसी को भी किसी चैलेंजिंग सीन के लिए ना कहने की इजाजत नहीं थी. ना ही कभी किसी एक्टर ने किसी मना किया.
सेट पर हर किसी का सम्मान
दयानंद ने इस शो को डेली सोप्स से बेहद अलग बताते हुए कहा- सीआईडी का प्लस पॉइंट ये था कि हर दिन अलग होता था. लोकेशन और को-स्टार बदलते रहते थे. कभी हम किसी बड़े स्टार के साथ शूट करते थे तो कभी दूसरे एक्टर्स के साथ. हर एपिसोड में हमारे पास करीब 15-17 लोकेशन होती थीं. इसलिए हम बोर नहीं होते थे.
दया ने बताया कि कैसे सीआईडी के सेट पर हर आर्टिस्ट एक जैसा था. वो बोल- हर एक्टर के लिए, सेट पर बस एक काम था-एक्टिंग. कोई समझौता नहीं था, और कोई भी स्टार नहीं था. हम सभी सीआईडी में मजदूर थे. बाकी शो में, हर एक एक्टर अपनी स्थिति की परवाह किए बिना अपनी वैनिटी वैन चाहता है. यहां तक कि जूनियर आर्टिस्ट, जिन्हें लोग पहचान नहीं पाते, वो भी अलग जगह की मांग करते हैं. सीआईडी में, हममें से लगभग 7-8 लोग एक ही मेकअप रूम शेयर करते थे.
'यहां तक कि अगर हमें अलग-अलग डिब्बे दिए जाते, तो हम उन्हें खोलकर एक बड़ा शेयरिंग स्पेस बना लेते. जहां हम साथ में खाना खाते और मौज-मस्ती करते. कोई भेदभाव नहीं था, किसी को भी बड़ा या छोटा आर्टिस्ट नहीं माना जाता था, न ही शो छोड़ने की योजना बनाने वाले लोगों के साथ अलग व्यवहार किया जाता था. हम सभी इंसान थे, एक-दूसरे के साथ सम्मान से पेश आते थे. ये एक मिलिट्री सेटअप की तरह था— हर कोई अपना काम करता था, और कोई भी खुद को सबसे बड़ा या छोटा नहीं समझता था.'
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