ऑडिशन में आपको एहसास कराई जाती हैं कमियां, तय पैमाने पर फिट होना जरूरी, बोलीं राधिका मदान
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राधिका मदान ने कुछ समय पहले सोशल मीडिया में बॉडी पॉजिटिविटी पर एक पोस्ट लिखा था. जहां उन्होंने अपनी कमियों को बताते हुए खुद को स्वीकार करने की बात कही थी. पोस्ट लिखने की वजह पर वो हमसे बातचीत करती है.
राधिका मदान को इंडस्ट्री में एक लंबा वक्त हो गया है. हालांकि करियर की शुरुआती दौर में राधिका को बहुत अतरंगी ऑडिशनों से भी गुजरना पड़ा था. ग्लैमर इंडस्ट्री में अक्सर अपनी कमियों को छिपाने वाले एक्टर्स के बीच राधिका ने सोशल मीडिया पर अपनी बॉडी टाइप, हाइट और लुक्स को लेकर एक खूबसूरत पोस्ट भी किया था.
वरना आप भीड़ का हिस्सा बनकर रह जाएंगे अपने ऑडिशन एक्सपीरियंस पर राधिका कहती हैं, 'हम ऐसी इंडस्ट्री में हैं, जहां लगभग हर दिन हमें आईना दिखाया जाता है. आप रोज लोगों की अलग-अलग धारणाओं को फेस करते हैं. हर किसी के पास आपको लेकर एक ओपिनियन तो होगा ही. बहुत जरूरी है कि हम इस इंडस्ट्री में कुछ ओरिजनल लेकर आए, यह किसी के जिद्द से ही पूरी हो पाएगी. वो क्रांति आनी जरूरी है. वर्ना आप भी उसी भीड़ का हिस्सा बनकर रह जाएंगे. आपको अपना खांचा खुद बनाना है, तो जद्दोजहद करनी ही पड़ेगी.'
आप खुद पर ही शक करने लगते हैं राधिका कहती हैं, 'मेरी समझ में तो मैं यही मानती हूं कि कोई रूल बुक नहीं होता है. आपको खुद पर काम करने की जरूरत होती है. ढर्रे पर चलने वालों की समय सीमा बहुत कम होती है. आपको रोजाना कुछ नया ऑफर करना होगा, तब ही सरवाइव की गुंजाइश बचती है. नया ऑफर तब ही किया जा सकता है, जब आप खुद के टच में हो, खुद को एक्सेप्ट करें. समझें कि आप कैसे सबसे अलग हैं. इंडस्ट्री यही चीज आपको कुछ सालों में सिखा देती है, जिसे समझने में शायद जिंदगी लग जाए. रोज आप किसी से मिल रहे है, रोज कोई एक नई धारणा बना रहा है. कई बार आपको वो सेल्फ डाउट तक में डाल देते हैं. इस दौरान मैंने एक बात गांठ बांध ली थी कि मैं कभी अपनी वैल्यूज के साथ समझौता कर आगे नहीं बढ़ने वाली हूं. बॉडी इमेज की वैल्यूज, आपके सोच की वैल्यूज, ये ही तो आपकी ओरिजनैलिटी है. इससे कैसे ढंका जा सकता है. मुझे पता है कि आप क्राफ्ट को संवारने में तमाम तरह की चीजों को एक्सपेरिमेंट कर सकते हो, लेकिन जब दिमाग ही आपका साथ न दे, तो आगे कैसे बढ़ा जा सकता है. वहीं से आप खुद को स्वीकार करने लगते है और सिक्यॉरिटी वहीं से आती है.'
सब एक से दिखने लगे, तो मशीन नहीं लगेंगे राधिका आगे बताती हैं, 'जब मैं शुरुआत दिनों में ऑडिशन दिया करती थी, तो उस वक्त महसूस किया कि लुक्स बहुत मैटर किया करता था. ऑडिशन के दौरान भी एक सेट पैरामिटर तय होता था. उस वक्त मैंने यही सोचा कि हमें जब एक ही सा हाइट, रंग, बॉडी टाइप बनाकर खुद को प्रेजेंट करना है, तो यह एक मशीन से निकाले एक से प्रोडक्ट नहीं लगेंगे. हम सब कॉपी ही तो नजर आएंगे. मैं ऑडियंस के तौर पर एक जैसे ही लोगों को क्यों देखना चाहूंगी. मैं कभी वर्सिटैलिटी एंजॉय ही नहीं कर पाऊंगी. बाद में मैंने खुद को समझाया और फिर एक कॉन्फिडेंस के साथ ऑडिशन के लिए निकलती थी कि खुद की हाइट, वजन और लुक के जरिए मैं नई वैरायटी ऑफर करूंगी.'
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