Sector 36 Review: विक्रांत मैसी की दमदार परफॉरमेंस कर देगी सन्न, दिमाग को हिलाकर रख देगी फिल्म
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'सेक्टर 36' में किरदारों को जिस तरह दो परतों में दिखाया गया है, वो आपके दिमाग को उलझा कर रखता है. प्रेम का क्राइम उसे राक्षस बनाता है, मगर अपनी पत्नी और बेटी के लिए वो हर नॉर्मल इंसान जितना नरम है. पांडे दिल से ईमानदार है मगर सिस्टम में सर्वाइव करने के लिए 'एडजस्ट' कर चुका है.
'12वीं फेल' में विक्रांत मैसी का स्वीट-सिंपल किरदार देखकर आ रहे लोगों को शॉक झेलने की तगड़ी हिम्मत जुटाकर 'सेक्टर 36' शुरू करनी पड़ेगी. नेटफ्लिक्स की इस नई फिल्म में विक्रांत का किरदार और उनका काम देखकर आप सन्न रह जाएंगे. दर्शक के तौर पर आपको जो झटका लगता है, 'सेक्टर 36' के दूसरे एक्टर दीपक डोबरियाल उसी का चेहरा बनते हैं.
दीपक का किरदार राम चरण पांडे, स्क्रीन पर कॉप के सबसे रियल रिप्रेजेंटेशन में से एक है. 'सेक्टर 36' रियल घटना को आधार बनाकर एक ऐसी कहानी कहती है, जो ह्यूमन बिहेवियर और साइकोलॉजी की परतें उधेड़कर रख देती है. हालांकि इसकी अपनी कमियां भी हैं.
एक नाले से बंटे दो संसार 'सेक्टर 36' की कहानी का सारा मामला एक नाले से जला हुआ हाथ बरामद होने के बाद खुलना शुरू होता है. उससे पहले फिल्म अपनी कहानी और किरदारों के लिए माहौल बनाती है. मौके पर पहुंचे इंस्पेक्टर पांडे (दीपक डोबरियाल) अपने दो जूनियर्स के साथ तय करते हैं कि ये बंदर का हाथ है और इस हाथ को देखने वाले पहले बच्चे को उसकी सजगता का पुरस्कार यानी सौ रुपये देकर चल देते हैं.
बच्चा एक स्लम बस्ती का है, जो नाले के बगल में है. नाले के उस पार बिजनेसमैन बलबीर सिंह सिंह बस्सी (आकाश खुराना) की कोठी है. बस्सी इस कोठी में खुद कम ही रहता है और उसकी गैरमौजूदगी में उसका नौकर प्रेम (विक्रांत मैसी) 'अपने घर' की तरह वहां जमा हुआ है.
स्लम से इतने बच्चे गायब हैं कि पुलिस चौकी का बोर्ड 'गुमशुदा' के पोस्टर्स से भरा हुआ है. मगर पांडे ने 'साहस के आडंबर' से दूर ही रहने का फलसफा अपनाया है क्योंकि उसका मानना है कि 'कॉकरोच कितनी भी बॉडी-शॉडी बना ले, मगर जीत हमेशा जूते की ही होती है.' मगर अपनी बच्ची के साथ एक घटना होने के बाद पांडे का साहस जाग जाता है.
पांडे फिल्म की शुरुआत में ही कहता है कि उसके पिता को न्यूटन का 'एक्शन-रिएक्शन' वाला सिद्धांत बहुत अद्भुत लगता था. और इधर पांडे के एक्शन में आते ही, पुलिस महकमे में बस्सी के पुराने दोस्त और 'सिस्टम' की तरफ से रिएक्शन आना शुरू हो जाता है. मगर इन रिएक्शन्स से किसी तरह बचते बचाते पांडे अपनी जांच को आगे बढ़ाता है और फिर प्रेम के अंदर से हिंसा की वो कहानी निकलती है कि आप उसे इंसान मानने से इनकार कर देंगे. अब सवाल ये है कि क्या पांडे साहब गायब हुए बच्चों को न्याय दिला पाएंगे? या फिर सिस्टम के जूते के नीचे कुचले जाएंगे?
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