
WORLD POST DAY : क्या अब भी गांव की किसी गोरी को रहता है पिया की चिट्ठी का इंतजार ?
Zee News
9 अक्टूबर को विश्व डाक दिवस मनाया जाता है. आम इंसान की जिंदगी में डाक विभाग खास महत्व रखता है. इसके इसी उपयोगिता को देखते हुए हिंदी फिल्मकारों ने भी अपनी फिल्मों में डाकिए के किरदारों को जगह दी है. वहीं गीतकारों ने चिट्ठियों पर ढेर सारे गीत लिखें हैं जो इंसान की जिंदगी में इस विभाग की उपयोगिता बताती है.
नई दिल्लीः 1977 में आई फिल्म ’’पल्कों की छांव’’ में जब राजेश खन्ना डाक विभाग की खाकी वर्दी पहन साइकिल पर सवार होकर.. ’’डाकिया डाक लाया.. खुशी का प्याम कहीं, कहीं दर्द नाम लाया’’ गीत गाते हुए गांव में दाखिल होते हैं तो बच्चे उनकी तरफ दौड़ पड़ते हैं. डाक बाबू को देखकर गांव के बुजुर्गों की आंखों में चमक दौड़ जाती है और गांव की गोरी इस उम्मीद में घर से बाहर निकलकर देहरी पर खड़ी हो जाती हैं कि शायद उनके पिया ने शहर से कोई संदेशा या मनीआॅर्डर भेजा हो. फिल्म में डाक बाबू गांव की अनपढ़ महिलाओं की चिट्ठियां भी लिखते हैं. गांव में उनकी खूब पूछ होती है. यानी चिट्ठियां सिर्फ संदेश ही नहीं लाती है बल्कि यह दूर वतन से अपनों के जज्बात भी साथ लाती है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि अगर डाक विभाग न होता तो ये चिट्ठियां हमतक कैसे पहुंच पाती? इन चिट्ठियों के बिना जीवन कितना नीरस हो जाता? पुरानी पीढ़ी के लोग दूर रहने वाले अपनों का हाल जानने के लिए तरस जाते.
हम इन चिट्ठियों की चर्चा इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि आज भारतीय डाक दिवस है. भारत में हर साल 9 अक्टूबर को राष्ट्रीय डाक दिवस मनाया जाता है; यह एक तरह से विश्व डाक दिवस का ही विस्तार है, जिसे दुनिया भर में 9 अक्टूबर को मनाया जाता है. 9 अक्टूबर 1874 को ’’यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन’’ के गठन के लिए स्विटजरलैण्ड में 22 देशों ने एक करार पर दस्तखत किया था. इसी वजह से विश्व डाक दिवस मनाने के लिए यह दिन चुना गया था. भारत 1 जुलाई, 1876 को यूनीवर्सल पोस्टल यूनियन का सदस्य बना था और भारत में इसकी शुरुआत पहली बार 1854 में की गई. भारतीय डाक लगभग 150 साल से लगातार मुल्क की अवाम को अपनी खिदमात पेश कर रहा है, भले ही वक्त के लिहाज से इसकी भूमिकाएं बदलती रही है. यह मध्यमवर्गीय हिन्दुस्तानियों की जिंदगी का अहम हिस्सा रहा है. शायद यही वजह है कि बाॅलीवुड की हिंदी फिल्मों के सीन और गानों में भी डाक विभाग और चिट्ठियों का जिक्र होता रहा है. दर्जनों नई-पुरानी फिल्मों में डाकिए के किरदार और चिट्ठियों के जरिए हमें डाक विभाग की अहमियत बताई गई है.