
Muharram 2021: आज भी इंसानियत की सबसे बड़ी दर्सगाह है 'कर्बला'
Zee News
10 मोहर्रम 61 हिजरी में इमामे हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपने अंसार, अक़रबा, भांजे, भतीजे और बेटों की मक़तल में बिखरी लाशों के बीच खड़े होकर जो पैग़ाम दिया उसने तारीख़े इंसानियत को बदल कर रख दिया.
सैय्यद अब्बास मेहदी रिज़वी: 10 मोहर्रम 61 हिजरी में इमामे हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपने अंसार, अक़रबा, भांजे, भतीजे और बेटों की मक़तल में बिखरी लाशों के बीच खड़े होकर जो पैग़ाम दिया उसने तारीख़े इंसानियत को बदल कर रख दिया. लोगों के दिलों में इस अज़ीम क़ुर्बानी ने वो जगह बनाई जिसकी मिसाल तारीख़ आलमों आदम में नहीं मिलती. यही एक ऐसा वाक़्या है जिससे आलम की तमाम चीज़ें मुतास्सिर हुयीं. आसमान मुतास्सिर हुआ, ज़मीन मुतास्सिर हुयी, सूरज, चांद, सितारे मुतास्सिर हुए. यहां तक की ख़ुद ख़दुा वंदे करीम मुतास्सिर हुआ. इसका असर शफ़क़ की सुर्ख़ी है जो वाक़ये कर्बला के बाद से उफ़क़े आसमानी पर ज़ाहिर होने लगी. जिसने भी किरदारे इमाम को पढ़ लिया, जान लिया या समझ लिया वो इमाम का आशिक़ हो गया और यज़ीद से इज़हारे नफ़रत करने लगा. कोई बाप अगर जवान बेटे की मौत बर्दाशत न कर सके तो वो कर्बला को देखे, कोई भाई अगर अपने बराबर के भाई की जुदाई को सह न सके तो वो कर्बला को देखे, कोई लाशों के बीच तन्हा खड़ा हो और अपना क़रीब न हो तो वो कर्बला को देखे, मां की तरह मुहब्बत करने वाली बहनों का साथ छूट रहा हो तो वो कर्बला को देखे, कोई अपने भाई के यतीम को आंखों के सामने दम तोड़ता देखे तो वो कर्बला को देखे. दुनिया में मिले तमाम ज़ख़्मों की ताब जब जब इंसान न ला सके तो वो कर्बला के शहीदों की क़ुर्बानियां को पढ़े बेक़रार दिल को क़रार ज़रुर मिलेगा.More Related News