
“मौत का कोई धर्म नहीं होता साहेब’’, केरल के श्मशान में मुस्लिम महिला करती है शवों का दाह संस्कार
Zee News
उम्र के करीब तीसरे दशक सम गुजर रही और शॉल से सिर ढककर रहने वाली सुबीना रहमान इस बात को जानती है कि मौत का कोई धर्म नहीं होता है और सभी को खाली हाथ ही आखिरी सफर पर जाना होता है.
त्रिशूरः केरल के त्रिशूर के एक श्मशान भूमि में हर सुबह पीतल का दिया जला कर एक मुस्लिम महिला सुबीना रहमान लाशों के दाह संस्कार के लिए तैयारी करती हैं. उम्र के करीब तीसरे दशक को पार कर रही, शॉल से सिर ढककर रहने वाली सुबीना रहमान इस बात को जानती है कि मौत का कोई धर्म नहीं होता है और सभी को खाली हाथ ही आखिरी सफर पर जाना होता है. मध्य केरल के त्रिशूर जिले के इरिजालाकुडा में एक हिंदू श्मशान घाट में पिछले तीन साल से शवों का दाह संस्कार कर रही सुबीना स्नातक की पढ़ाई करती थी, लेकिन वह इसे पूरा नही ंकर पाई.
इस तरह का पेशा चुनने वाली पहली मुस्लिम महिला सुबीना ने बताया कि उन्होंने अब तक कई शवों का दाह संस्कार किया है जिनमें करीब 250 शव कोविड-19 मरीजों के भी शामिल हैं. कोविड-19 मरीजों के दाह संस्कार के दौरान घंटों पीपीई किट पहने रहने और पसीने से तर-बतर होने के बावजूद वह दिवंगत आत्मा की शांति के लिए अपने तरीके से प्रार्थना करना नहीं भूलती थीं. सुबीना ने लैंगिक धारणा को तोड़ते हुए शवों का दाह संस्कार करने का काम चुना जो आमतौर पर पुरुषों के लिए भी कठिन कार्य माना जाता है. माना जाता है कि दक्षिण भारत में वह पहली मुस्लिम महिला है जिन्होंने यह पेशा चुना है.