
“कानून में छात्रों की पिटाई जायज नहीं है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि शिक्षक अपनी आंखें बंद कर लें’’
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उच्चतम न्यायालय ने यह कहते हुए राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले को निरस्त कर दिया कि अनुशासनहीनता के लिए छात्रों को डांटना आत्महत्या के लिए उकसाने के समान नहीं है.
नई दिल्लीः उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि किसी छात्र को अनुशासनहीनता के लिए डांटना तब तक आत्महत्या के लिए उकसाने के समान नहीं माना जाएगा जब तक कि बार-बार उत्पीड़न के विशिष्ट आरोप न हों. शीर्ष अदालत ने कहा कि कानून में छात्रों की पिटाई जायज नहीं है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि कोई शिक्षक या स्कूल अधिकारी किसी छात्र की अनुशासनहीनता को लेकर आंखें मूंद ले.शीर्ष अदालत ने कहा कि छात्रों को अनुशासन सिखाना शिक्षक का दायित्व है और कक्षा में ध्यान न देने, पढ़ाई में ठीक न होने या कक्षा और स्कूल से गैर हाजिर रहने पर किसी छात्र को डांटना कोई असामान्य बात नहीं है.
शिक्षक पर लगा था छात्र को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप न्यायालय ने यह टिप्पणी एक स्कूल शिक्षक के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को निरस्त करते हुए की. शिक्षक के खिलाफ कक्षा नौ के एक छात्र को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी. न्यायमूर्ति एस ए नजीर और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने कहा, ‘‘किसी शिक्षक या स्कूल अधिकारी द्वारा अनुशासनात्मक कदम उठाना, अनुशासनहीनता के लिए किसी छात्र को डांटना, हमारे मत में तब तक आत्महत्या के लिए उकसाने के समान नहीं होगा जब तक कि बार-बार उत्पीड़न और बिना किसी उचित कारण के जानबूझकर अपमानित करने के विशिष्ट आरोप न हों.’’