
पटेल को सरदार और गांधी को महात्मा बनाने वाला किसान 'आंदोलन' सियासत में कैसे उलझ गया
Zee News
प्यासी जमीन पर टूटती सांसों के साथ आंखों में आंसू लिए आसमान को ताकते हुए कोई न कोई तस्वीर आपने जरूर देखी होगी. ठंड से ठिठुरते और चिलचिलाती धूप में जलते हुए पसीने से तरबरतर इंसान को बैल बनते हुए भी आपने जरूर देखा होगा.
नई दिल्लीः प्यासी जमीन पर टूटती सांसों के साथ आंखों में आंसू लिए आसमान को ताकते हुए कोई न कोई तस्वीर आपने जरूर देखी होगी. ठंड से ठिठुरते और चिलचिलाती धूप में जलते हुए पसीने से तरबरतर इंसान को बैल बनते हुए भी आपने जरूर देखा होगा. ये तस्वीर इस देश के किसानों की है, जिसे अन्नदाता कहा जाता है, लेकिन विडंबना है कि इस देश के किसानों के चेहरे पर मुस्कान सिर्फ और सिर्फ सरकारी इश्तहारों में नजर आती है.
आंकड़ों की मानें तो इस देश के 70 प्रतिशत लोग किसान हैं. लेकिन सच ये भी है कि जिस देश को कृषि प्रधान कहा जाता है वहां सबसे ज्यादा छल उन्हीं के साथ हुआ है, उन्हीं को सबसे ज्यादा कमजोर बनाया गया है. लेकिन क्या हमेशा से इस देश का किसान ऐसे ही कमजोर रहा है. इसके लिए इतिहास की उस परत को खोदना होगा जिसमें ये किसान सिर्फ अन्नदाता ही नहीं थे बल्कि समाज की दशा और दिशा के निर्माता भी थे.