
Khakee The Bengal Chapter Review: एक्टर्स ने संभाली रूटीन पुलिस-गैंगस्टर कहानी, इम्प्रेस नहीं करता शो
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ये शो कई दिलचस्प और रूटीन गैंगस्टर ड्रामा आईडियाज का कॉम्बिनेशन है जो पिलपिले गद्य यानी पल्प फिक्शन वाले उपन्यासों की तरह काम करते हैं. मतलब जिस दर्शक को इस तरह का कंटेंट पसंद है वो एन्जॉय कर लेगा लेकिन जो दर्शक कुछ नया, अलग और दिलचस्प देखना चाहते हैं उन्हें ये कुछ खास पसंद नहीं आएगा.
नेटफ्लिक्स का 'खाकी: द बंगाल चैप्टर' लगभग पिछले 5 साल में आया वो सबसे हल्का शो है जिसमें ऋत्विक भौमिक नजर आए हैं. हर बार की तरह उन्होंने अपनी साइड से डटकर बैटिंग की है लेकिन शो की राइटिंग और प्लॉट, फुल टॉस पर फुल टॉस बॉल डाल रहे गेंदबाज की तरह है. इसलिए ऋत्विक की परफॉरमेंस दमदार होने के बावजूद ऐसी लगती है कि इसमें उन्हें कुछ खास मेहनत नहीं लगी होगी.
एक सुपरकॉप का काम उतना ही मुश्किल होता है, जितने भारी क्रिमिनल उसके सामने होते हैं. इसलिए 'खाकी: द बंगाल चैप्टर' में जब फोकस गैंगस्टर्स की कहानी पर जाता है तो समझ आता है कि किरदारों को बिल्ड-अप देने की कोशिश हो रही है. लेकिन शो इन किरदारों की कहानी पर कई बार इतना फोकस करने लगता है कि कहानी के हीरोज यानी पुलिसवाले गायब लगने लगते हैं. एक महत्वपूर्ण किरदार का बिहारी एक्सेंट ऐसा है कि खुद बिहारी लोग भी शायद ही कनेक्ट कर सकें.
पश्चिम बंगाल में सेट सीरीज में, बंगाली सिनेमा के कई पॉपुलर चेहरे होने के बावजूद, किसी भी किरदार ने लगातार दो लाइनें बंगाली में नहीं बोली हैं. जबकि ये वेब सीरीज है, इसमें लोगों तक अपनी बात पहुंचाने के लिए फिल्ममेकर्स के पास सबटाइटल्स का ऑप्शन उपलब्ध रहता है.
ऐसा नहीं है कि 'खाकी: द बंगाल चैप्टर' में सबकुछ बुरा ही है और ये एन्जॉय नहीं किया जा सकता. लेकिन ये शो कई दिलचस्प और रूटीन गैंगस्टर ड्रामा आईडियाज का कॉम्बिनेशन है जो पल्प-फिक्शन वाले उपन्यासों की तरह काम करते हैं. मतलब जिस दर्शक को इस तरह का कंटेंट पसंद है वो एन्जॉय कर लेगा लेकिन जो दर्शक कुछ नया, अलग और दिलचस्प देखना चाहते हैं उन्हें ये कुछ खास पसंद नहीं आएगा.
खून की होली में घिरी 'खाकी' 'खाकी: द बंगाल चैप्टर' एक गैंगस्टर (शाश्वत चटर्जी) की कहानी से शुरू होता है जिसका एक बड़े पॉलिटिशियन (प्रोसेनजीत चटर्जी) के साथ कनेक्शन है. ये अपराधी पुलिस की आंखों में खटक रहा है. कोलकाता का एक सुपरकॉप इससे निपटने निकला है लेकिन खुद निपट जाता है. अब ये रायता संभालने की जिम्मेदारी नए ऑफिसर अर्जुन मोइत्रा (जीत) पर है.
दूसरी तरफ उस अपराधी के यहां भी तख्ता पलट चल रहा है और उसकी गैंग के दो लड़के बागी हो गए हैं. उन्हें चाहिए फुल इज्जत और फुल पावर. जैसा कि बॉलीवुड के सिग्नेचर गैंगस्टर ड्रामा टेम्पलेट का नियम है, अगर दो गैंगस्टर बंधुओं की कहानी है तो एक दिमाग का इस्तेमाल करने वाला शातिर लड़का होगा (ऋत्विक भौमिक) और दूसरा सिर्फ ताकत के दम पर फटने को तैयार ग्रेनेड (आदिल जफर खान). कहानी में एक स्टेज पर इनका आपसी समीकरण भी बिगड़ जाता है और तब कोलकाता में और ज्यादा बवाल होते हैं.

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