स्वर्ण मंदिर में सादगी के साथ मनाया गया बंदी छोड़ दिवस, इस बार नहीं हुई आतिशबाजी
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अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी रघुबीर सिंह ने इस बार सिख समुदाय से आतिशबाजी या इलेक्ट्रिक लाइटिंग से परहेज करने का निर्देश दिया था. क्योंकि 'बंदी छोड़ दिवस', इस बार 1 नवंबर को पड़ा था, जिस दिन दिल्ली और देश के अन्य हिस्सों में सिख विरोधी दंगे भड़क उठे थे.
अकाल तख्त साहिब के निर्देशों का पालन करते हुए स्वर्ण मंदिर में 'बंदी छोड़ दिवस' (दिवाली) को काफी सादगी के साथ मनाया गया. वैसे तो 'बंदी छोड़ दिवस' के मौके पर हर साल स्वर्ण मंदिर में आतिशबाजी की जाती थी. लेकिन इस बार स्वर्ण मंदिर में सिर्फ रोशनी की गई और दीये जलाए गए. कोई आतिशबाजी नहीं हुई.
बड़ी संख्या में श्रद्धालु स्वर्ण मंदिर पहुंचे और घी के दीये जलाए. इस मौके पर पूरे स्वर्ण मंदिर परिसर को लाइटों से सजाया गया था. हर साल बंदी छोड़ दिवस पर आतिशबाजी की जाती थी, लेकिन इस बार अकाल तख्त ने सिर्फ दीये और रोशनी के साथ बिना आतिशबाजी के इस दिन को मनाने का निर्देश दिया था.
गौरतलब है कि कुछ दिन पहले अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी रघुबीर सिंह ने सिख समुदाय को सिर्फ दीये जलाने के लिए कहा था. उन्होंने सिख समुदाय से आतिशबाजी या इलेक्ट्रिक लाइटिंग से परहेज करने का निर्देश दिया था. इसके पीछे ज्ञानी रघुबीर सिंह तर्क दिया था कि 'बंदी छोड़ दिवस' इस बार 1 नवंबर के दिन पड़ा है, जिस दिन दिल्ली और देश के अन्य हिस्सों में सिख विरोधी दंगे भड़क उठे थे.
जत्थेदार ने कहा था कि इन दंगों के 40 साल बाद भी पूरा सिख समुदाय न्याय का इंतजार कर रहा है. उन्होंने कहा था कि सिख समुदाय को इस बार बंदी छोड़ दिवस के मौके पर आतिशबाजी से परहेज करना चाहिए. गुरु हरगोबिंद सिंह के ग्वालियर किले से रिहा होने के बाद अमृतसर वापसी के उपलक्ष्य में बंदी छोड़ दिवस मनाया जाता है. जत्थेदार ने कहा था कि इस साल केवल हरमंदर साहिब (स्वर्ण मंदिर) और अकाल तख्त पर बिजली की रोशनी की जाएगी, जबकि अन्य गुरुद्वारे और सिख संगत दीये जलाने तक ही सीमित रहेंगे.
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