सेंसर बोर्ड से भिड़ चुके हैं रणदीप हुड्डा, बायकॉट कल्चर पर बोले, 'मैं इसे नहीं मानता'
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14 सितंबर को बेंगलुरु में हुए इंडिया टुडे माइंड रॉक्स 2024 इवेंट में एक्टर रणदीप हुड्डा ने शिरकत की. यहां उन्होंने मॉडरेटर नबीला जमील के साथ मस्तीभरे अंदाज में बात की. रणदीप ने सेशन के दौरान अपने करियर, किरदारों, सेंसरबोर्ड और बायकॉट कल्चर पर अपने विचार रखे.
एक्टर रणदीप हुड्डा ने 14 सितंबर को बेंगलुरु में हुए इंडिया टुडे माइंड रॉक्स 2024 इवेंट में शिरकत की. यहां उन्होंने मॉडरेटर नबीला जमील के साथ मस्तीभरे अंदाज में बात की. रणदीप ने सेशन के दौरान अपने करियर, किरदारों, सेंसरबोर्ड और बायकॉट कल्चर पर अपने विचार रखे. साथ ही अपनी शादी से जुड़े जोक को लेकर भी हंसी-मजाक किया.
खुद को कैसे फिट रख रहे हैं रणदीप हुड्डा? इस सवाल के जवाब में एक्टर ने कहा कि मैंने अपनी बॉडी के साथ बहुत एक्सपेरिमेंट किए हैं. अब मैं जिम, वॉक और हॉर्स राइडिंग के साथ इंटरमिटेंट फास्टिंग कर रहा हूं. अपना ध्यान रख रहा हूं.
कौन होता है हीरो?
आपकी नजरों में कौन हीरो होता है. रणदीप ने कहा कि मेरा हीरो वो है जो अपने दिमाग को फॉलो करता है. सोसाइटी और कल्चर के बारे में सोचता है. कन्ट्रिब्यूट करता है. जितने भी किरदार मैंने निभाए हैं उनमें एक सेट हीरो होता है. आपको बॉलीवुड में स्ट्रक्चर फॉलो करना होता है. अपनी कुछ शुरुआती फिल्मों के बाद मुझे समझ आया था कि मैं हर फिल्म में अपना किरदार निभाने से ज्यादा कुछ करना चाहता हूं. मुझे वो दिलचस्प बिल्कुल नहीं लगता था. मैं खुद से बोर हो गया था. मैं हीरो की पॉपुलर इमेज वाले किरदार नहीं चाहता था. मैं वो किरदार पसंद करता हूं जिनका सच मुझे समझने को मिलता है. एक हीरो अपना खुद का इंसान होता है और अपना रास्ता खुद बनाता है. फेलियर का सामना करने की हिम्मत रखता है और कुछ नया सीखने से पीछे नहीं हटता.
विचारधारा को खुलकर रखते हैं रणदीप
आप उन एक्टर्स में से एक हैं जो अपने विचारों को खुलकर बयां करते हैं. आप जो सोचते हैं और महसूस करते हैं उसपर आपको गर्व है. अपनी विचारधारा को खुलकर सामने रखते हैं. आपको ऐसा करने की हिम्मत कहां से मिलती है? जवाब में रणदीप हुड्डा ने कहा कि ये डेपेंड करता है. जब मैं राजा रवि वर्मा का किरदार निभा रहा हूं तब मेरी विचारधारा लग है. जब मैं चार्ल्स सोभराज का निभा रहा हूं तब मेरी विचारधारा अलग है. जब मैं इंस्पेक्टर अविनाश का किरदार निभा रहा हूं तब अलग है और जब मैं सावरकर का किरदार निभा रहा हूं तब विचारधारा अलग है. तो मुझे लगता है कि एक इंसान को हमेशा नई चीजें सीखनी चाहिए. हमेशा एक ही विचारधारा रखना सही नहीं है. हर किसी में अच्छाई होती है. आपको अपनी विचारधारा के साथ फ्लेक्सिबल होना चाहिए. फिर आप बदलते हैं और बदलाव ही हमेशा बना रहता है.