शरण देने के मामले में सबसे पीछे हैं ये अमीर देश, जापान ने सालभर में 2 सौ शरणार्थियों को अपनाया, हंगरी ने बनाई कांटेदार बाड़, क्या है वजह?
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अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव से पहले शरणार्थियों का मुद्दा चर्चा में है. डोनाल्ड ट्रंप इसके खिलाफ दिखते हैं, वहीं कमला हैरिस उनके लिए नरमी दिखा रही हैं. वैसे यूएसए हर साल अपने यहां सबसे ज्यादा लोगों को शरण देता रहा. वहीं कई ऐसे मुल्क भी हैं, जिन्होंने बाहरियों के लिए अपने दरवाजे बंद कर रखे हैं. चीन, जापान से लेकर कई यूरोपीय देश भी इस लिस्ट में हैं.
राष्ट्रपति चुनाव से पहले हो रही डिबेट में डोनाल्ड ट्रंप ने आरोप लगाया कि घुसपैठिए स्ट्रीट से उठाकर पालतू पशुओं को खा रहे हैं. इसके बाद से वहां एक बार फिर शरणार्थियों और घुसपैठियों पर चर्चा उठ खड़ी हुई. अमेरिका कई बार कह चुका कि रिफ्यूजियों का सारा जिम्मा कुछ ही देशों ने ले रखा है, जबकि कई अमीर देश इससे दूर रहते हैं. कुछ हद तक ये बात सच भी है. कई विकसित देशों ने अपनी नीतियां इतनी सख्त कर रखी हैं कि शरण पाना बेहद मुश्किल है.
दुनिया में कुल कितने शरणार्थी
नॉर्वेजियन रिफ्यूजी काउंसिल के अनुसार, दुनिया में सौ मिलियन से भी ज्यादा विस्थापति हैं. इनमें से लगभग 46 मिलियन लोग ऐसे हैं, जिन्होंने किसी देश में शरण ले रखी है. लेकिन आबादी का ये बंटवारा समान नहीं, बल्कि बिखरा हुआ है. किसी देश में इतने शरणार्थी कि स्थानीय लोग बगावत कर दें तो किसी देश में सालभर में सौ लोगों को भी शरण नहीं दी जाती.
जापान करता आया हील-हुज्जत
वर्ल्ड पॉपुलेशन रिव्यू के मुताबिक, साल 2022 में जापान ने केवल 202 शरणार्थियों को अपनाया था. वही पिछले साल ये संख्या बढ़कर 303 हो गई, जो कि पिछले कई सालों में सबसे ज्यादा है. बेहद अमीर और तकनीकी तौर पर एडवांस जापान में फिलहाल उम्रदराज आबादी इतनी बढ़ चुकी कि ये दूसरे देशों से अपने लिए युवा कामगार और स्किल्ड वर्कर मांग रहा है, लेकिन शरणार्थियों को शरण देने से यह हमेशा बचता रहा.
कल्चर बचाने के नाम पर उसने ऐसी नीतियां बना रखी हैं कि रिफ्यूजी थककर उम्मीद छोड़ दें. जैसे अगर किसी ने तीन बार शरण के लिए आवेदन कर दिया हो तो वो अपने-आप रिजेक्ट हो जाएगा.
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