पहले हीरो, अब हिरोइन...ट्रांसजेंडर को क्यों नहीं मिलता ट्रांसजेंडर का ही रोल?
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ताली के ट्रेलर के बाद से ही इसकी कास्टिंग को लेकर एलजीबीटीक्यू कम्यूनिटी का यही सवाल है कि अगर किसी ट्रांसजेंडर का किरदार करना है, तो असल ट्रांस एक्टर्स को क्यों कास्ट नहीं किया जाता है?
हाल ही में सुष्मिता सेन स्टारर फिल्म ताली का ट्रेलर लॉन्च हुआ है. फिल्म में सुष्मिता ट्रांसजेंडर का किरदार निभा रही हैं. सोशल वर्कर श्रीगौरी सावंत की बायोपिक कर रहीं सुष्मिता को बेशक दर्शकों का बहुत प्यार मिल रहा है. इससे पहले गंगूबाई के लिए विजय राज, चंडीगढ़ करे आशिकी के लिए वाणी कपूर, सेक्रेट गेम्स के लिए कुब्रा सेठ, तमन्ना के लिए परेश रावल, सड़क के लिए सदाशिव, शबनम मौसी के लिए आशुतोष राणा जैसे एक्टर्स के साहस की जमकर सराहना हुई थी, जब उन्होंने लीक से हटकर इस तरह के अनकन्वेंशनल किरदारों को चुना था. बेशक उनका काम ऑन पॉइंट रहा हो, लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर क्यों एक्टर्स या एक्ट्रेसेज को ही ट्रांसजेंडर का किरदार निभाना पड़ता है. क्या इंडस्ट्री में ट्रांसजेंडर एक्टर्स की कमी है.
हमारी कम्यूनिटी को केवल भीड़ का हिस्सा बना दिया है ट्रांसजेंडर एक्ट्रेस नव्या कहती हैं, मेरी यह लड़ाई पिछले पांच से छ सालों से है. जब गंगूबाई रिलीज हुई थी, तो मैं ही थी, जिसने ये सवाल उठाया था कि फिल्म में ट्रांसजेंडर के किरदार के लिए विजय राज को क्यों लिया है. रजिया बाई के किरदार के लिए आप किसी ट्रांसजेंडर को भी मौका दे ही सकते थे. फिर चंडीगढ़ करे आशिकी में भी यही बात रही, किरदार वाणी कपूर को दे दिया था. यहां बात जब रिप्रेजेंटेशन की होती है, तो आपने हमारी कम्यूनिटी को केवल क्राउड का हिस्सा बनने के लिए चुना है. ताली के किरदार के लिए मैंने नरगिस के लिए ऑडिशन दिया था. ये सुष्मिता की बेस्ट फ्रेंड का किरदार है. मैं सिलेक्ट भी हो गई थी. हालांकि बाद में मुझे पता चला है कि किसी फीमेल को उस किरदार के लिए कास्ट कर लिया है. मैंने खुद को ठगा हुआ महसूस किया था. चलो मान लिया फिल्म को बिजनेस के नजरिये से देखते हैं. ये समझती हूं कि दर्शकों को खींचने के लिए स्टार वैल्यू की जरूरत है. लेकिन बाकी सपोर्टिंग कास्ट को क्यों तवज्जों नहीं दिया जाता है.
हम ट्रांस एक्टर्स कहां जाएंगे ट्रांसजेंडर एक्टर्स के ऑडिशन की रिएलिटी पर नव्या कहती हैं, हम तो ऑडिशन एक आर्टिस्ट के तौर पर देने जाते हैं. लेकिन वहां जाकर हमें कम्यूनिटी के खांचे में डाल दिया जाता है. हमें न ही महिलाओं का किरदार दिया जाता है और न ही मर्दों के किरदार का भी काम मिलता है. तो फिर मुझे इसका जवाब कौन देगा कि ट्रांसजेंडर का जब किरदार होता है, तो क्यों महिला और पुरुष आकर उसके लिए ऑडिशन देते हैं. जब गंगूबाई के दौरान मैंने अपनी बात रखी थी, तो मुझे बहुत ट्रोल किया गया था. लोग कहने लगे थे कि तुम एक्टिंग के बारे में क्या जानती हो? तुम क्यों बोल रही हो? मैं यह कहना चाहती हूं, जब आप इन एक्टर्स को चुनते हैं, तो उनको वर्कशॉप करवाते होंगे, उन्हें ट्रेनिंग देनी होती होगा. लेकिन हम तो वही लोग हैं, तो हमें ही क्यों नहीं मौका मिल पाता है. ऑडिशन का लेवल भी बहुत स्लो है. महीने में एक दो ऑडिशन के लिए ही कॉल आता है. उसमें भी अगर आप लड़के और लड़कियों को ले लोगे, तो हम जैसे एक्टर्स कहां जाएंगे.
ये तो डबल स्टैंडर्ड रवैया है न नव्या आगे कहती हैं, अब लोग कहते हैं कि तुम सिग्नल पर भीख क्यों मांगते हो. लोगों के घरों, ट्रेनों पर जाकर पैसे मांगते हो. भाई जब आप हमें जॉब के मौके नहीं देंगे, तो हम करेंगे. सहानुभूति के नाम पर तुम हमपर फिल्म बना लोगे, टीआरपी और अवॉर्ड बटोर लोगे. जब हमें ही मौका नहीं दोगे, तो फिर तुम कैसे कह सकते हो कि हम अभी तक बदले ही नहीं हैं. तुमने हमें बदलने के लिए दिया ही क्या है. तुमने हमें कुछ नहीं दिया है. सहानुभूति के लिए फिल्में बना लेंगे और जब प्रमोशन करना होगा, तो हमें बुलाएंगे ताकि वहां लोग तालियां बजाए और इमोशनल हो जाए. दो तीन लोग आंसू बहाए, और मीडिया कैप्चर कर लेगी. ये तो डबल स्टैंडर्ड रवैया है न.