कॉलेज के लिए घर पर की भूख हड़ताल, 8 घंटे में सीखी ड्राइविंग, अब 71 की उम्र में जीता ग्रैमी अवॉर्ड
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भारतीय-अमेरिकन सिंगर चन्द्रिका टंडन ने 71 की उम्र में ग्रैमी अवॉर्ड जीता है. दिलचस्प ये है कि चंद्रिका ने करीब 45 साल की उम्र तक अपने इस पैशन को गंभीरता से फॉलो ही नहीं किया था. अब आप सोचेंगे कि फिर वो कर क्या रही थीं? आइए बताते हैं चंद्रिका के सफर के बारे में...
सिनेमा में जो रुतबा ऑस्कर अवॉर्ड्स का है, संगीत की दुनिया में वही ऊंचाई हासिल है ग्रैमी अवॉर्ड्स को. इस बार हुए 67वें ग्रैमी अवॉर्ड्स में भारतीय-अमेरिकन गायिका चंद्रिका टंडन को उनकी एल्बम 'त्रिवेणी' के लिए ग्रैमी अवॉर्ड मिला है. चंद्रिका ने ये अवॉर्ड 71 साल की उम्र में जीता है. दिलचस्प बात ये है कि बचपन से संगीत में रुचि रखने वालीं चंद्रिका ने करीब 45 साल की उम्र तक अपने इस पैशन को गंभीरता से फॉलो ही नहीं किया था. अब आप सोचेंगे कि वो कर क्या रही थीं?
चंद्रिका एक मल्टी-मिलियन-डॉलर कंपनी की नींव रख रही थीं, जिसके क्लाइंट दुनिया भर में हैं. मैनेजमेंट कंसल्टिंग इंडस्ट्री में दुनिया की 'बिग थ्री' कही जाने वाले कंपनियों में से एक, मैकेंजी एंड कंपनी में पार्टनर बनने वाली वो पहली भारतीय महिला थीं. वो यूएस की टॉप यूनिवर्सिटीज में से एक में, टेक्नीकल एजुकेशन में बड़ा बदलाव ला रही थीं. चेन्नई के जिस मद्रास क्रिस्चियन कॉलेज से पढ़ाई की, उसमें बिजनेस स्कूल की नींव रख रही थीं. और उनका ये पूरा सफर शुरू हुआ अपने ही घर पर की गई एक भूख हड़ताल से. आइए बताते हैं ग्रैमी अवॉर्ड विनर चंद्रिका टंडन के बारे में जिनका सफर और जीवन अपने आप में एक मिसाल है.
एक भूख हड़ताल ने बदल दिया चंद्रिका का जीवन चंद्रिका 1954 में चेन्नई के एक तमिल ब्राह्मण परिवार में पैदा हुई थीं. उन्होंने एक पुराने इंटरव्यू में इंडिया टुडे को बताया था कि स्कूलिंग के बाद वो बी.कॉम. करने के लिए मद्रास क्रिस्चियन कॉलेज जाना चाहती थीं. क्योंकि उनके पिता और उनके दादा ने वहां से पढ़ाई की थी. मगर ये कॉलेज उनके घर से दूर था और वहां जाने के लिए ट्रेन लेनी पड़ती थी. उनकी मां नहीं चाहती थीं कि वो एक पारंपरिक तमिल ब्राह्मण परिवार में इस तरह के स्टीरियोटाइप तोड़ने वाली 'घर की पहली लड़की' बनें.
चंद्रिका ने बताया, 'वो हमेशा स्कूल में मेरे दोस्तों से कहती थीं- '17 की उम्र में उसकी सगाई कर देंगे. 18 में शादी.'' लेकिन चंद्रिका का प्लान कुछ और था. चंद्रिका ने घर पर लड़ाई की, लेकिन उनकी मां नहीं मानीं. और फिर वो भूख हड़ताल पर बैठ गईं. ये पहली बार था जब चंद्रिका ने घरवालों की मर्जी के खिलाफ जोर-आजमाईश की थी, जीत भी उन्हीं की हुई.
चेन्नई से निकलकर आई.आई.एम अहमदाबाद पहुंचीं चंद्रिका कॉलेज के फाइनल ईयर में उन्होंने अपने एक अंकल और एक प्रोफेसर से आई.आई.एम. अहमदाबाद का नाम सुना था. साथ ही ये भी पता लगा था कि वो नॉर्मली फाइनल ईयर के स्टूडेंट्स को एडमिशन नहीं देते. अगली बार जब अंकल ने पूछा कि वो कॉलेज के बाद क्या करने वाली हैं तो उन्होंने बोल दिया कि वो आई.आई.एम. अहमदाबाद में जाने का सोच रही हैं.
चंद्रिका बताती हैं कि उनके अंकल को यकीन नहीं हुआ. उन्हें लगा कि ये चेन्नई की लड़की, जो 'एकदम देहाती' है, आई.आई.एम. अहमदाबाद इन्हें नहीं लेगा. तबतक चंद्रिका के लिए ये कॉलेज के बाद के लिए एक रैंडम चॉइस भर थी, लेकिन जब अंकल ने 'तुम्हारा एडमिशन नहीं होगा' वाला रवैया दिखाया तो उन्होंने तय कर लिया कि अब तो अप्लाई करके देखना है.