'पराली जलाने से रोकने के लिए लाई गई मशीनें भी कारगर नहीं...', पंजाब के किसानों का तर्क
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दिल्ली-NCR में बढ़ते प्रदूषण के लिए पंजाब की पराली का जिम्मेदार ठहराया जाता है. इस मुद्दे पर जमकर राजनीति भी होती है. लेकिन राजनीति और दावों से इतर पराली जलाने को लेकर कुछ तर्क किसानों के भी हैं. आइए जानते हैं कि आखिर किसान पराली जलाने पर ही क्यों अड़े रहते हैं.
दिल्ली-NCR में बढ़ता प्रदूषण चिंताजनक है. अक्सर इसके लिए पंजाब की पराली का जिम्मेदार ठहराया जाता है. ऐसे में भगवंत मान सरकार यह दावा करती है कि अब पराली जलाने के मामलों में 70 फीसदी की कमी आई है. लेकिन दावों से इतर एक तर्क किसानों का भी है. जहां एक ओर किसानों को पराली जलाने से मना किया जाता है, तो वहीं दूसरी ओर किसानों का तर्क है कि वे इस पराली को न जलाएं तो उसका क्या करें.
किसानों के सामने समस्या ये है कि अगर वो पराली ना जलाएं तो उसका क्या करें? इसके लिए सुपर सीडर मशीनें लाई गईं, जिनसे पराली की जुताई हो सके और खेत में पराली के रहते हुए भी बुआई हो सके. लेकिन पंजाब में ये मशीनें कबाड़ में बेची जा रही हैं, क्योंकि सब्सिडी के बाद भी इन मशीनों की कीमत बहुत ज्यादा है और दूसरा जो किसान ये मशीनें खरीद रहे हैं उनके लिए भी ये मशीनें ज्यादा काम नहीं आ रही हैं, क्योंकि किसानों का कहना है कि अगर वो पराली ना जलाएं तो अगली गेहूं की फसल में एक कीड़ा लग जाता है, जो 80 परसेंट तक फसल को नष्ट कर देता है.
सब्सिडी के बाद भी मशीनें इस्तेमाल नहीं कर रहे किसान
संगरूर की कोऑपरेटिव सोसाइटी में आजतक की टीम पहुंची. वहां चार-चार हैप्पी सीडर और सुपर सीड मशीनें जंग खाती दिखीं. लेकिन किसान इन्हें खेतों में ले जाने के लिए तैयार नहीं हैं. अब इन मशीनों को कबाड में बेचने की तैयारी है.
कबाड़ में जा रहीं मशीनें
एक नोडल अधिकारी ने इस मामले पर बताया कि मशीन 5 साल से रखी हुई है. पहले साल इस्तेमाल हुई, दूसरे साल फेल, तीसरे साल भी फेल. फिर इसका इस्तेमाल ही नहीं हुआ. अब इनको कबाड़ में ही बेचा जाएगा. सरकार ये मशीनें इसलिये उपलब्ध कराती है ताकि किसान इनका इस्तेमाल करें और पराली ना जलाएं और इसके लिए भारी सब्सिडी देती है. हमने मशीनों की कीमत पूछी तो उन्होंने कहा 50 रुपये किलो.
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