नॉट जस्ट क्रिकेट: सिर्फ़ खेल नहीं, व्यापार, राजनीति और कई राज़ भी हैं इस कॉकटेल में
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15 चैप्टरों की ये किताब अपने आप में एक ज़रूरी दस्तावेज है जो खेल के लगभग हर आयाम में आये बदलावों के बारे में, उसके इम्पैक्ट के बारे में बात करती है. ड्रेसिंग रूम के अंदर की बातों से लेकर बंद कमरों में होने वाली डिसीज़न मेकिंग और उसके विश्लेषण से लैस ये किताब 'मस्ट रीड' भी है और 'मस्त रीड' भी.
किसी भी खेल और उससे जुड़े लोगों की कहानी बस मैदान तक सीमित नहीं रहती. ख़ासकर, जब वो उपमहाद्वीप के क्रिकेट की कहानियां हों. इन कहानियों का सामाजिक और राजनीतिक धरातल पर इम्पैक्ट होता है. लम्बे समय से पत्रकारिता कर रहे प्रदीप मैगज़ीन की किताब 'नॉट जस्ट क्रिकेट' ऐसी कितनी ही कहानियों का घर है. ये किताब हार्पर कॉलिन्स ने छापी है.
किताब का टाइटल ही बताता है कि इसमें सब कुछ सिर्फ़ क्रिकेट तक ही महदूद नहीं रहने वाला था. और इसके सबूत पहले पन्ने से ही मिलने लगते हैं जहां एक कश्मीरी हिंदू परिवार की बात शुरू होती है. ये प्रदीप मैगज़ीन का परिवार है जो 1964 में हरियाणा शिफ़्ट हो गया था. इस मिक्स्ड फ़ीलिंग वाली शुरुआत से ही आप बंध जाते हैं और एक के बाद एक तमाम किस्सों, कहानियों कई खुलासों का सिलसिला शुरू हो जाता है. इन कहानियों में खेल भी है, राजनीति भी.
प्रदीप मैगज़ीन उन पत्रकारों में से एक हैं जिन्होंने ज़मीन पर रहकर खेल को देखा है. फिर वो चाहे 1996 का पाकिस्तानी दौरा हो या फिर फ़रीदाबाद में मैदान के पीछे बने सरकारी रेस्टोरेंट में रणजी मैच के दौरान चल रहे ब्लडी-मेरी के राउंड हों, प्रदीप सभी के गवाह रहे हैं. प्रदीप मैगज़ीन ने हिंसा के दौर का पंजाब भी देखा, जहां बस में चढ़ने वाले हर शख्स को वो डर भरी निगाहों से देखते थे. साथ ही, मैगज़ीन ने टी-20 की क्रांति को भी सामने से देखा, टीवी के लिये स्पोर्ट्स चैनल सेट-अप किया और 6 महीने में ही उससे दूरी भी बना ली. अख़बार-रेडियो से निकलकर टीवी और मोबाइल फ़ोन पर आने वाले क्रिकेट के सबसे बड़े, सबसे रोचक और सबसे क्रांतिकारी एवोल्यूशन के दौरान प्रदीप मैगज़ीन सब कुछ बेहद क़रीब से देख रहे थे और कितनी ही कहानियों का हिस्सा बने. और यही वजह है कि तमाम पक्षों को जानने, उनके बारे में पढ़ने के दौरान आप एक सेकंड के लिये भी ऊबते हैं नहीं और किताब बोझिल नहीं लगती.
'नॉट जस्ट क्रिकेट' इस खेल से जुड़ी दूसरी किताबों से एक मायने में काफ़ी अलग है. ऐसा नहीं है कि पहली बार किसी पत्रकार ने क्रिकेट पर किताब लिखी है. लेकिन बाकी किताबों की तरह इसमें कहीं भी ये नहीं दिखता कि लेखक ने इस खेल के बड़े नामों से अपने संबंध बिगड़ने या उनपर आंच आने के डर से ख़ुद को कुछ लिखने से रोका हो. मैगज़ीन साफ़ शब्दों में लिखते हैं कि कपिल देव ने उन्हें एक बयान दिया और बाद में प्रेस में जाकर कह दिया कि उन्होंने ऐसा कुछ कहा ही नहीं. वो अपनी किताब में उस विवाद का भी खुले शब्दों में ज़िक्र करते हैं जिसके चलते शशि थरूर को कैबिनेट से इस्तीफ़ा देना पड़ गया था. किताब में मिलने वाले ऐसे कई वाकयों को पढ़कर ये यकीन हो जाता है कि 'नॉट क्वाइट क्रिकेट' (प्रदीप मैगज़ीन की बेहद चर्चित किताब) लिखने वाले प्रदीप मैगज़ीन इस खेल के कितने बड़े हितैषी हैं और इस खेल को ऐसे पत्रकारों की और इस खेल के प्रशंसकों को ऐसी किताबों की कितनी ज़्यादा ज़रूरत है.
15 चैप्टरों की ये किताब अपने आप में एक ज़रूरी दस्तावेज है जो खेल के लगभग हर आयाम में आये बदलावों के बारे में, उसके इम्पैक्ट के बारे में बात करती है. ड्रेसिंग रूम के अंदर की बातों से लेकर बंद कमरों में होने वाली डिसीज़न मेकिंग और उसके विश्लेषण से लैस ये किताब 'मस्ट रीड' भी है और 'मस्त रीड' भी.
'नॉट जस्ट क्रिकेट' किताब यहां क्लिक कर ख़रीदी जा सकती है.
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