Sri Lanka Crisis: इन 5 कारणों से 'सोने की लंका' कंगाल, महंगाई ले रही है जान
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Sri Lanka Crisis: श्रीलंका इन दिनों अभूतपूर्व संकट में घिरा हुआ है. एक तरफ विदेशी कर्ज रिकॉर्ड स्तर पर है तो दूसरी तरफ विदेशी मुद्रा भंडार ऐतिहासिक निचले स्तर पर है. लोगों के सामने जरूरी चीजों की किल्लत हो चुकी है.
पड़ोसी देश श्रीलंका (Sri Lanka) इन दिनों मुश्किल आर्थिक हालातों से जूझ रहा है. स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि खाने-पीने की जरूरी चीजों की भी किल्लत हो चुकी है. यही हाल डीजल-पेट्रोल (Diesel-Petrol) को लेकर भी है. यहां तक कि सरकार के सामने आर्थिक आपातकाल (Economic Emergency) लगाने के साथ ही खाने-पीने की चीजें बांटने के लिए आर्मी लगाने की नौबत आ गई है. श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार (Forex Reserve) समाप्त होने की कगार पर है और करेंसी (Sri Lankan Rupees) की वैल्यू रिकॉर्ड निचले स्तर पर है. आइए पांच प्वाइंट में जानते हैं कि 'सोने की लंका' का इतना बुरा हाल कैसे हो गया...
ऑर्गेनिक खेती पर जोर, फर्टिलाइजर्स पर बैन
श्रीलंका की सरकार का एक हालिया निर्णय इस संकट का तात्कालिक कारण माना जा रहा है. दरअसल सरकार ने केमिकल फर्टिलाइजर्स को एक झटके में पूरी तरह से बैन करने और 100 फीसदी ऑर्गेनिक खेती का निर्णय लागू कर दिया. अचानक हुए इस बदलाव ने श्रीलंका के एग्री सेक्टर (Sri Lanka Agri Crisis) को तबाह कर दिया. एक अनुमान के मुताबिक, सरकार के इस फैसले के चलते श्रीलंका का एग्री प्रोडक्शन आधा रह गया है. अभी हाल यह है कि देश में चावल और चीनी की भी किल्लत हो गई है. इन सबके ऊपर अनाज की जमाखोरी समस्या को और विकराल बना रही है.
टूरिज्म सेक्टर का बिगड़ा सूरतेहाल
श्रीलंका की अर्थव्यवस्था में एग्री के बाद टूरिज्म (Sri Lanka Tourism) सबसे अहम सेक्टर है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, टूरिज्म श्रीलंका की जीडीपी में 10 फीसदी का योगदान देता है. कोरोना महामारी की शुरुआत के बाद करीब 2 साल से यह सेक्टर तबाह है. श्रीलंका में सबसे ज्यादा भारत, ब्रिटेन और रूस से टूरिस्ट आते हैं. महामारी के चलते लगी पाबंदियों के कारण टूरिस्ट की आवक बंद हो गई. अभी बिगड़े हालात में कई देश अपने नागरिकों को श्रीलंका की यात्रा करने से बचने की सलाह देने लगे हैं. करेंसी एक्सचेंज की समस्या का हवाला देकर कनाडा ने हाल ही में ऐसी एक एडवाइजरी जारी की है. इसका श्रीलंका की आय पर बुरा असर हुआ है.
चीन की ऋणपाश नीति और विदेशी कर्ज
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