
रिसेशन, डिप्रेशन, Trumpsession... आर्थिक चक्र के किस फेज से गुजर रही है दुनिया? किसके हैं क्या खतरे
AajTak
1929-1939 की
विश्व भर की चुनिंदा अर्थव्यवस्थाओं के शेयर बाजार का मूड, बढ़ती कीमतें, जंग से जूझती दुनिया. ये ऐसे संकेतक हैं जो मंदी का इशारा करते हैं. इसी बीच अमेरिका में ट्रंप की आमद ने टैरिफ वॉर का नया दौर शुरू कर दिया है. मंदी की चर्चा होते ही लोगों को याद आती है 1929 की महामंदी. पहले विश्व युद्ध के बाद आई इस मंदी ने दुनिया की आर्थिक कमर तोड़ दी थी.
जब मंदी की चर्चा होती है तो रिसेशन, डिप्रेशन, स्टैगनेशन जैसे शब्द खूब सुनने को मिलते हैं. आइए समझते हैं कि ये शब्द क्या है?
Recession या मंदी
मंदी एक ऐसी आर्थिक स्थिति है जिसमें किसी देश की अर्थव्यवस्था में लगातार दो तिमाहियों (6 महीने) तक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में गिरावट दर्ज की जाती है. यह अर्थव्यवस्था में सामान्य मंदी की स्थिति को दर्शाता है. ये ऐसी स्थिति होती है जब GDP में गिरावट होती है, बेरोजगारी में वृद्धि होती है. लोग खर्चे कम कर देते हैं और निवेश कम हो जाता है, कंपनियों के मुनाफे में कमी होती है. शेयर बाजार में लगातार गिरावट की स्थिति होती है.
अगर हाल की बात करें तो पिछले चार दशकों में 1990 के मध्य में, 1980 की दशक के शुरुआत में, 2008 में आई आर्थिक शिथिलता मंदी के दायरे में आती है. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष मंदी के कई कारण बताता है जैसे बुनियादी चीजों के दाम में भारी इजाफा, उदाहरण के लिए कच्चा तेल, वित्तीय बाजार की हलचलें, जैसे 2008 का लेहमान ब्रदर्स संकट.
मंदी आमतौर पर चक्रीय होती है और यह आर्थिक चक्र (Business Cycle) का एक हिस्सा है. यह कुछ महीनों से लेकर 1-2 साल तक चल सकती है. 2008 की वैश्विक वित्तीय मंदी जो अमेरिका में सबप्राइम मॉर्गेज संकट से शुरू हुई और पूरी दुनिया में फैल गई.