Petrol-Diesel: 115 दिनों से पेट्रोल-डीजल के दाम स्थिर, क्या फिर लगातार बढ़ेंगी कीमतें?
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विशेषज्ञों के अनुसार, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अगर कच्चे तेल (Crude Oil) की कीमतों में एक डॉलर का इजाफा होने से देश में पेट्रोल-डीजल (Petrol-diesel) का दाम 50 से 60 पैसे बढ़ जाता है. देश में ईंधन (Fuel) की कीमतें स्थिर रहने से तेल कंपनियों को बड़ा घाटा हो रहा है.
देश में महंगाई (Inflation) हाई लेवल पर बनी हुई है. लेकिन पेट्रोल-डीजल (Petrol-Diesel) के स्तर पर लोगों को कई दिनों से राहत है. इस बीच सवाल ये उठ है कि कहीं फिर से लगातार कई दिनों तक ईंधन की कीमतों (Fuel Price) में बढ़ोतरी तो नहीं होगी. ऐसे संकेत इसलिए मिल रहे हैं, क्योंकि कच्चे तेल (Crude Oil) की कीमतों में बढ़ोतरी के बाद भी तेल कंपनियों ने दाम स्थिर रखे हुए हैं. जबकि उनका घाटा लगातार बढ़ रहा है. ऐसा ही नजारा बीते दिनों पांच राज्यों में संपन्न हुए चुनावों के दौरान दिखा था जब लंबे समय तक कोई बदलाव न होने के बाद तेल कंपनियों ने लगातार 14 बार तेल के दामों में वृद्धि की थी.
115 दिनों से कीमतों में बढ़ोतरी नहीं फिलहाल, देश में 115 दिन बीत चुके हैं, लेकिन पेट्रोल और डीजल (Petrol And Diesel) की कीमतों में कोई बढ़ोतरी नहीं की गई है. बीते 6 अप्रैल के बाद से इनकी कीमतें स्थिर बनी हुई है. जबकि क्रूड ऑयल (Crude Oil) इस अवधि में एक समय 139 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच चुका है, हालांकि इसके बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसके भाव में कमी आई है. वहीं बदलाव की बात करें तो दिल्ली, मुंबई समेत देश के प्रमुख शहरों में आखिरी बार 22 मई को पेट्रोल-डीजल के दाम कम किए गए थे, जबकि सरकार ने तेल पर लगने वाली एक्साइज ड्यूटी (Excise Duty) में कटौती की थी.
पहले 137 दिन स्थिर रहे थे दाम इससे पहले भी पिछले साल दिवाली (Diwali) पर देश की जनता को तोहफा देते हुए सरकार ने उत्पाद शुल्क में कटौती की थी. इससे पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कमी आई थी. सबसे खास बात यह रही कि इस कमी के बाद लगातार 137 दिनों तक देश में ईंधन की दाम (Fuel Price) बिना बदलाव के स्थिर रहे थे. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल के दाम में इजाफे के बावजूद पेट्रोल और डीजल की कीमतों को स्थिर रखना तेल कंपनियों (Oil Companies) पर भारी पड़ा था. ये स्थिरता तब तक बनी रही जब तक कि देश के पांच राज्यों के चुनाव परिणाम सामने नहीं आ गए.
चुनावों के बाद लगातार 14 वृद्धि 10 मार्च 2022 को पांच राज्यों के चुनाव परिणाम (Election Results) घोषित हुए और इसके बाद तेल कंपनियों ने ईंधन की कीमतों पर लगे ब्रेक को हटाते हुए एक के बाद एक रोजाना के हिसाब से बढ़ोतरी कर जनता को बड़ा झटका दिया था. आंकड़ों को देखें तो 16 दिनों में ही 14 बार पेट्रोल-डीजल (Petrol-Diesel) की कीमतें बढ़ा दी गई थी. 22 मार्च को शुरू हुआ बढ़ोतरी का सिलसिला 6 अप्रैल तक चला था और इस बीच पेट्रोल और डीजल की कीमतों में 10 रुपये तक की वृद्धि देखने को मिली थी.
बढ़ रहा तेल कंपनियों का घाटा अब जबकि फिर से 115 दिनों से ईंधन की कीमतें स्थिर हैं, तो इससे तेल कंपनियों के घाटा भी बढ़ता जा रहा है. 29 जुलाई को इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (IOC) ने स्टॉक एक्सचेंज को बताया कि अप्रैल-जून में उसे 1,992.53 करोड़ रुपये का शुद्ध घाटा हुआ है, जबकि एक साल पहले इसी अवधि में 5,941.37 करोड़ रुपये की शुद्ध लाभ हुआ था. बीते दिनों पीटीआई की रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया कि अप्रैल-जून तिमाही में IOCL, BPCL और HPCL को विपणन के स्तर सामूहिक रूप से करीब 10,700 करोड़ रुपये का नुकसान हो सकता है.
10-14 रुपये प्रति लीटर का नुकसान सार्वजनिक क्षेत्र की इन तीनों कंपनियों का पेट्रोल-डीजल की खुदरा बिक्री के 90 फीसदी कारोबार पर नियंत्रण है. रिपोर्ट की मानें तो IOCL ने अप्रैल-जून तिमाही में पेट्रोल 10 रुपये प्रति लीटर के नुकसान पर बेचा है. इसके अलावा डीजल की बिक्री पर कंपनी को प्रति लीटर 14 रुपये का नुकसान हुआ है. अन्य कंपनियों को भी कीमतों में बदलाव न होने के कारण कंपनियों को पेट्रोल-डीजल पर 12 से 14 रुपये प्रति लीटर का घाटा झेलना पड़ रहा है. ऐसे में ये संभावनाएं बन रही हैं कि अपने घाटे की भरपाई के लिए तेल कंपनियां कीमतों में फिर से लगातार बढ़ोतरी कर सकती हैं.
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