
MRF की कहानी, गुब्बारे बनाती थी कंपनी... फिर इस बिजनेस में लगाया दांव, आज 1.40 लाख का एक शेयर!
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MRF Share Price Update : देश का सबसे महंगा स्टॉक एमआरएफ शेयर मंगलवार को कारोबार के दौरान 1,40,099.90 रुपये के लेवल पर पहुंच गया. महज पांच साल में इसके निवेशकों की रकम ढाई गुना हो गई है.
शेयर बाजार (Share Market) बेहद उतार-चढ़ाव भरा कारोबार है. इसमें इन्वेस्ट करने वाले निवेशक कब फर्श से अर्श पर पहुंच जाएं और कब अर्श से फर्श पर आ गिरें कहा नहीं जा सकता. निवेशकों के लिए मार्केट में चवन्नी के शेयरों से लेकर हजारों रुपये कीमत के शेयर हैं, जिन पर वे दांव लगाते हैं. इनमें एक कंपनी ऐसी भी है, जिसके एक शेयर की कीमत 1.40 लाख रुपये है. हम बात कर रहे हैं टायर निर्माता कंपनी एमआरएफ (MRF) की. इसके 10 शेयर की कीमत में आप एक लग्जरी कार खरीद सकते हैं. इस कंपनी की कहानी बेहद ही दिलचस्प है, आइए जानते हैं कैसे गुब्बारे बनाते-बनाते ये टायर मैन्युफैक्चरिंग बिजनेस में आई और कैसे इसके शेयर ने देश के सबसे हैवीवेट शेयर का तमगा हासिल किया.
1.40 लाख रुपये है एक शेयर की कीमत गुरुवार को शेयर बाजार में MRF Ltd Share के शेयर मामूली गिरावट के साथ 1,40,099.90 रुपये के लेवल पर कारोबार कर रहा था. कंपनी का मार्केट कैपिटलाइजेशन 59650 करोड़ रुपये पर पहुंच गया था. भारतीय शेयर बाजार में मौजूद हैवी शेयरों की लिस्ट में शामिल एमआरएफ के शेयर ने बीते पांच साल में अपने निवेशकों की रकम को दोगुने से ज्यादा बढ़ाया है और इस दौरान एक शेयर की कीमत 86,230 रुपये बढ़ी है. इसी साल 2024 के जनवरी महीने में इस कंपनी की कीमत पहली बार 1.50 लाख रुपये के पार निकल गई थी.
गुब्बारे बनाने से हुआ था बिजनेस शुरू टायर की दुनिया का बादशाह बनने से पहले इस कंपनी के फाउंडर के.एम. मामेन मपिल्लई (K. M. Mammen Mappillai) गुब्बारे बनाते थे. जी हां, मपिल्लई ने साल 1946 में कारोबारी दुनिया में कदम रखा. उन्होंने तिरुवोट्टियूर, मद्रास में एक छोटे से शेड में गुब्बारे बनाने का कारोबार शुरू किया. वे ज्यादातर बच्चों के खिलौने के साथ ही इंडस्ट्रियल ग्लव्स और लैटेक्स से बनी हुई चीजों का निर्माण करते थे. समय के साथ उन्होंने अपने कारोबार का विस्तार करने का मन बनाया और इस पर आगे बढ़ते हुए साल 1952 में मद्रास रबर फैक्ट्री (MRF) की स्थापना की. ट्रेड रबर बनाने का उनका कारोबर की दुनिया में प्रवेश करने के महज 4 वर्षों के भीतर ही कंपनी तेजी से आगे बढ़ी और साल 1956 तक MRF 50% शेयर के साथ भारत में ट्रेड रबर का मार्केट लीडर बन गया.
ऐसे MRF छूटी गई बुलंदियां 5 नवंबर 1961 को MRF को एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी का दर्जा मिला. उस वक्त तक कंपनी मैन्सफील्ड टायर एंड रबर कंपनी के सहयोग से ऑटोमोबाइल, विमान, साइकिल के लिए टायर और ट्यूब बनाती थी. 1965 में कंपनी ने अपने पहले फॉरेन वेंचर के जरिए अमेरिका (US) में टायरों का निर्यात शुरू कर दिया. 80 के दशक में भारतीय ऑटो सेक्टर में बड़ा बदलाव आया, किफायती कारों ने दस्तक दी, जिसका उदाहरण मारुति 800 (Maruti 800) है. वहीं टू-व्हीलर इंडस्ट्री ने भी रफ्तार पकड़ ली थी, 1985 में कंपनी ने टू-व्हीलर्स के लिए टायर बनाने शुरू कर दिए. 1993 तक MRF का कारोबार स्थापित हो चुका था और अब ये कंपनी ट्रक, कार, बाइक-स्कूटर बाजार तक में अव्वल बन गई थी.
दो दशक में ऐसी रही शेयर की चाल अब बात कर लेते हैं इस शेयर की परफॉर्मेंस के बारे में, तो बता दें कि तो दो दशक पहले 6 अगस्त 2004 को MRF Share की कीमत 1548 रुपये थी. धीरे-धीरे बढ़ता हुआ ये स्टॉक साल 2010 तक आते-आते 5,000 का लेवल पार कर गया था. फिर 2012 में इसका भाव 10,000 रुपये के पार निकला और 2015 तक 7 अगस्त 2015 तक ये तूफानी तेजी पकड़ते हुए 44,922 रुपये पर पहुंच गया था. इसके बाद तो इस शेयर ने रिकॉर्ड तेजी के नए कीर्तिमान स्थापित किए.

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