रामपुर में 45 साल से आजम खान का दबदबा, उपचुनाव में कौन होगा उनका उत्तराधिकारी?
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रामपुर विधानसभा सीट पर पांच दिसंबर को उपचुनाव है, यह सीट सपा के विधायक रहे आजम खान को हेट स्पीच मामले में तीन साल की सजा होने के चलते रिक्त हुई है. रामपुर नवाब परिवार के खिलाफ आजम खान ने अपनी सियासत शुरू की थी और देखते ही देखते मुस्लिम चेहरा बन गए, लेकिन बीजेपी की सत्ता में आने के बाद उन पर संकट गहराता चला गया.
उत्तर प्रदेश के रामपुर के नवाब खुद को मुश्किल से मुश्किल परिस्थिति में बचाए रखने में माहिर थे, चाहे देश में अंग्रेजों का दौर रहा हो या फिर आजादी के बाद कांग्रेस का राज. आपातकाल के बाद रामपुर की सियासी फिजा ही नहीं बल्कि नवाब परिवार के सामने एक मामूली हैसियत वाले टाइपराइटर का बेटा सियासी चुनौती बनकर खड़ा हो गया था. उस लड़के का नाम था आजम खान, जिसने रामपुर से नवाबी सियासत को खत्म कर अपना दबदबा कायम कर दिया. हालांकि, नवाब तरह विपरीत परिस्थितियों में खुद को आजम खान बचाए नहीं रख सके और साढ़े चार दशक के बाद सियासी वनवास झेलना पड़ गया.
उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही आजम खान की मुश्किलें ऐसी बढ़ी कि उन्हें सिर्फ जेल जाना और अदालत के चक्कर ही नहीं लगाने पड़े बल्कि अपनी विधानसभा सदस्यता भी गवांनी पड़ गई. आजम को हेट स्पीच मामले में कोर्ट से तीन साल की सजा मिली है, जिसके बाद उनकी विधायकी रद्द कर दी गई है और अब रामपुर सीट पर उपचुनाव हो रहे हैं.
सपा के दिग्गज नेता आजम खान रामपुर के चुनावी रण से बाहर रहेंगे. आजम खान पिछले 45 सालों से रामपुर विधानसभा सीट पर चुनाव लड़ते आ रहे हैं. 10 बार रामपुर से विधायक रहे और एक बार उनकी पत्नी उपचुनाव में जीती थी, लेकिन इस बार उपचुनाव में वह प्रत्याशी नहीं बन पाएंगे. ऐसे में रामपुर सीट पर आजम खान के सियासी उत्तराधिकारी के तौर पर सपा से कौन चुनावी मैदान में उतरेगा, इस पर रामपुर ही नहीं बल्कि सूबे भर की नजर है.
आजम खान की सियासत में एंट्री रामपुर की सियासत में नवाब परिवार ने आजादी के तीन चुनाव बीत जाते के बाद कदम रखा. रामपुर के नवाबों ने कांग्रेस को अपने लिए मुफीद समझा. रामपुर के नवाब रहे जुल्फिकार अली खान उर्फ मिकी मियां साल 1967 में रामपुर से संसद में पहुंचे. मिकी मियां का रामपुर में उस समय जलवा ऐसा था कि कोई भी शख्स उनके खिलाफ एक शब्द भी बोलकर नहीं निकल सकता था. महज एक ही दशक में रामपुर का सियासी समीकरण बदलने लगे थे जब आपातकाल के बाद एक मामूली हैसियत वाले मुमताज खान का बेटा आजम खान जेल से जेल से छूटकर अपने शहर लौटा था.
आजम खान रामपुर से निकलकर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में वकालत पढ़ने गए थे और देखते ही देखते सियासत करने लगे. वह अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ सेक्रेटरी बन गए थे. आपातकाल लगा तो आजम विरोध में उतर गए, जिसके बाद उन्हें जेल में 19 महीने बिताने पड़े. रामपुर चौराहों पर सिर्फ यही चर्चा थी मुमताज मियां के लड़के को इंदिरा गांधी ने जेल में बंद करवा दिया.
आजम जेल से आते ही 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर विधानसभा का चुनाव लड़ गए, लेकिन सामने थे कांग्रेस के मंजूर अली खान उर्फ शन्नू मियां. सियासत में आजम कच्चे थे और न खास पैसा था. ऐसे में वो चुनाव हार गए, लेकिन हौसाला नहीं छोड़ा. 1980 में रामपुर सीट से फिर किस्मत आजमाया और जीतकर विधानसभा पहुंचे. इसके बाद फिर आजम ने पलटकर नहीं देखा और लगातार जीतते रहे और अपने परिवार को भी राजनीति में ले आए. आजम खान की पत्नी और बेटे विधानसभा पहुंचे..
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