जब दूसरी बार Anil Agarwal पहुंचे अमेरिका, कर दी इतनी बड़ी डील
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वेदांता रिसॉर्सेज लिमिटेड के चेयरमैन इन दिनों सोशल मीडिया पर अपने जीवन की कहानी साझा कर रहे हैं. ताजा पोस्ट में उन्होंने बताया है कि किस तरह बेटी के पैदा होने के बाद उनकी किस्मत बदली और वे अमेरिका की सबसे बड़ी केबल कंपनी से प्लांट खरीद पाए.
प्रसिद्ध उद्योगपति अनिल अग्रवाल (Anil Agarwal) का नाम उन चुनिंदा लोगों की फेहरिस्त में शुमार है, जिन्होंने अपनी जिद और लगन से सफलता की इबारत तैयार की. वह पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया (Social Media) पर खुद ही अपनी कहानी साझा कर रहे हैं. अनिल अग्रवाल के स्ट्रगल की कहानी को न सिर्फ लोग पसंद कर रहे हैं, बल्कि उन्हें प्रेरणा भी मिल रही है. ताजा पोस्ट में वेदांता चेयरमैन (Vedanta Chairman) ने बताया है कि कैसे उन्होंने एक अमेरिकी कंपनी से प्लांट खरीदने में सफलता हासिल की.
2 साल में मिल पाया इस 1 मीटिंग का मौका
वेदांता रिसॉर्सेज लिमिटेड (Vedanta Resources Ltd) के चेयरमैन लिखते हैं, 'अमेरिका तो मैं पहुंच चुका था, परंतु यहां आने का मकसद पूरा करना अभी बाकी था. उन्हीं दिनों 'जेली फिल्ड केबल (Jelly-Filled Cable)' बनाने वाली वहां की सबसे बड़ी कंपनी एसेक्स (Essex) के बारे में पता चला. कंपनी के पास कई प्लांट थे और एक हाल ही में बंद हुआ था. उस समय भारत में एक टेलीफोन लाइन लेने के लिए कम से कम 8 साल वेट करना पड़ता था. मुझे मार्केट में बहुत बड़ा गैप दिखा और मैंने इस कारण भारत में एक प्लांट लगाने का निर्णय लिया. मैं कंपनी के आला अधिकारियों से बात करने का इरादा तय कर चुका था. भारत लौट जाने के बाद भी मैं लगातार उनसे संपर्क करने का प्रयास करते रहा. एक मीटिंग कंफर्म होने के लिए मुझे 2 साल का इंतजार करना पड़ा.'
सैंडविच, स्ट्रीट फूड खाकर किया गुजारा
अनिल अग्रवाल इससे पहले बता चुके हैं कि कैसे वह मशीनरी खरीदने के लिए पहली बार अमेरिका गए थे. मीटिंग कंफर्म होने के बाद उन्हें फिर से अमेरिका जाना पड़ा. वह बताते हैं, 'मीटिंग कंफर्म होते ही मैंने बैग पैक किया और अमेरिका जाने के लिए निकल गया. इस बार मैं नारायणस्वामी के साथ गया, जो न केवल एक कुशल सीए थे, बल्कि एक बेहतरीन नेगोशिएटर भी थे. शुरुआत में हम एक ही कमरे में साथ रहे और सिर्फ एक बार डिनर में सैंडविच व स्ट्रीट फूड खाकर टिके रहे. एसेक्स के सीईओ फ्रेड जिंजर और सीएफओ क्रिस रुड से मिलना हुआ, पर प्लांट बेचने का उनका मूड नहीं था.'
ऐसे हुआ कम कीमत पर प्लांट का डील
स्वास्थ्य बीमा पर 18% जीएसटी से मध्यम वर्ग परेशान है. सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं की कमी के कारण लोग निजी अस्पतालों का रुख करते हैं. महंगे इलाज से बचने के लिए हेल्थ इंश्योरेंस लेते हैं, लेकिन प्रीमियम पर भारी टैक्स लगता है. जीएसटी काउंसिल की बैठक में राहत की उम्मीद थी, पर कोई फैसला नहीं हुआ. देखें...