अमेरिका के दबाव में क्या रूस से अलग हो जाएगा भारत?
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पीएम मोदी के अमेरिकी दौरे को विश्लेषक कई नजरिए से देख रहे हैं. एक सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या अमेरिका भारत को रूस से दूर करना चाहता है? क्या अमेरिका चीन के खिलाफ भारत को मजबूत करने की कोशिश कर रहा है. एक बात ये भी कही जा रही है कि अमेरिका भारत को हथियार बेचना चाहता है और उसकी नजर भारत के विशाल बाजार पर है. इन तीनों बातों के पीछे ठोस तर्क दिए जा रहे हैं.
केनेथ जस्टर 2017 से 2021 तक भारत में अमेरिका के राजदूत रहे थे. फरवरी 2022 में केनेथ ने एक भारतीय न्यूज चैनल के प्रोग्राम में कहा था कि भारत नहीं चाहता है कि अमेरिका पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीनी आक्रामकता के खिलाफ कुछ बोले.
केनेथ जस्टर ने कहा था, ''मोदी सरकार ने कहा था कि भारत और अमेरिका के बीच किसी भी वार्ता में चीन को लेकर बयान में संयम रखा जाए. क्वॉड से जुड़े साझा बयान में भी भारत का यही आग्रह रहता था. भारत इस बात को लेकर चिंतित रहता था कि चीन से सीधी नाराजगी मोल ना ली जाए.''
जून 2020 में गलवान में जब भारतीय सेना के 20 जवान सरहद की रक्षा में शहीद हुए थे तब अमेरिका के तत्कालीन विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने श्रद्धांजलि देते हुए कहा था, ''चीन के साथ संघर्ष में कई लोगों को जान गंवानी पड़ी. इस दुखद घड़ी में भारतीयों के साथ हमारी संवेदना है. हम सैनिकों के परिवारों और उनके प्रियजनों के साथ खड़े हैं.''
अमेरिका ने तब खुलकर भारत के साथ संवेदना जताई थी. यह काम रूस नहीं कर पाया था जबकि रूस भारत का पारंपरिक दोस्त रहा है. रूस ने बस इतना कहा था कि वह दोनों देशों के बीच बातचीत के जरिए समाधान चाहता है. भारत न तो अमेरिका की संवेदना से सार्वजनिक रूप से खुश हुआ था और न ही रूस की ठंडी प्रतिक्रिया को लेकर नाराजगी जताई थी.
इसके बावजूद भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने गलवान के बाद रूस का दौरा किया था. राजनाथ सिंह के दौरे को चीन के साथ तनाव कम करने से भी जोड़ा गया था. अक्सर ऐसी उम्मीद की जाती है कि चीन को रोकने के लिए भारत अमेरिका के पाले में जा सकता है लेकिन भारत शायद ही इसे स्थायी समाधान के रूप में देखता है.
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