Rahul Dravid-Sourav Ganguly Debut: मजबूरी में डेब्यू मगर फिर लॉर्ड्स में धमाल...हमें ऐसे मिले थे राहुल द्रविड़ और सौरव गांगुली
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20 जून को दो ऐसी ही शक्तियों ने इंडिया के लिए खेलना शुरू किया था. एक वो जिसने टीम की ज़रूरतों के हिसाब से ख़ुद को ढाला. और दूसरी जिसने सबसे ज़रूरी वक़्त में टीम को अपने पैरों पर खड़ा किया और आगे बढ़ते रहने की आदत डलवाई.
जून 1996. लॉर्ड्स. दो रिज़र्व बल्लेबाज़ों को उनकी टेस्ट कैप मिली. मजबूरी में नए खिलाड़ियों को आज़माने का फ़ैसला किया गया. मजबूरी इसलिए थी क्यूंकि संजय मांजरेकर के टखने में चोट लग गई थी और नवजोत सिंह सिद्धू ने कप्तान अज़हरुद्दीन से लड़ाई कर ली और खुद को टीम से बाहर कर लिया था. पहला मैच हारने के बाद अज़हर दो नए प्लेयर्स पर भरोसा इसलिए दिखा सके क्यूंकि 84-85 में किसी ने उनपर भी भरोसा दिखाया था जिसके ऐवज में उन्होंने अपने पहले तीन टेस्ट मैचों में तीन शतक ठोंके थे. टीम में नए शामिल बैट्समेन में एक के बारे में काफ़ी बातें हो चुकी थीं. वो पहले भी टीम में आया था. उसे बदतमीज़ क़रार देकर बाहर कर दिया गया. लगभग 4 साल के लिए. ये भी कहा गया कि क्रिकेट बोर्ड का सेक्रेटरी अपनी ताकत का इस्तेमाल कर उसे टीम में लाया था. डोमेस्टिक में सैकड़ों रन ठोंक कर वो दोबारा आया था. सौरव गांगुली. और दूसरा - राहुल द्रविड़. इसके बारे में कोई भी भूमिका नहीं बनाई जा रही थी.
राहुल द्रविड़ जब बैटिंग करने के लिए आए तो स्कोरबोर्ड पर 202 पर 5 विकेट गिरे दिख रहे थे. इंडिया अभी भी इंग्लैंड से 100 रन पीछे थी. द्रविड़ आख़िरी बल्लेबाज़ थे. इसके बाद टीम की पूंछ शुरू होने वाली थी. द्रविड़ के लिए अगर कोई बात हौसला दिलाने वाली थी तो वो ये थी कि दूसरे एंड पर भी वो बल्लेबाज खड़ा था जो अपना पहला मैच खेल रहा था. द्रविड़ से 6 महीने सीनियर सौरव गांगुली अपने शतक की ओर बढ़ रहे थे. द्रविड़ और गांगुली आपस में एक दूसरे को अंडर-15 के दिनों से जानते हैं. ये दोनों इंडिया-ए के लिए साथ बैटिंग भी कर चुके थे. द्रविड़ के लिए यही बात काम कर गई. जब पहला मैच खेल रहा उसका दोस्त सौरव आराम से खेल रहा है तो प्रेशर में आने की ज़रूरत ही नहीं थी. दोनों ने मिलकर 94 रन बनाए. सौरव ने 131 रन ठोंके. पहले ही मैच में शतक. लॉर्ड्स का मैदान. क्रिकेट की कहानी में इससे बेहतर और क्या ही हो सकता है?
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राहुल द्रविड़ 95 रन पर आउट हो गए. पहले मैच में पहली सेंचुरी से मात्र 5 रन दूर. विकेट्स के पीछे एक आसान कैच. बल्ले का किनारा बड़ा हल्का लगा था मगर द्रविड़ ने अम्पायर की तरफ़ देखा भी नहीं. वो तुरंत पीछे मुड़े और पवेलियन की ओर चल पड़े. द्रविड़ के सिद्धांतों की ये पहली निशानी थी.
टूर ख़तम हुआ तो हर तरफ़ एक ही नाम था - सौरव गांगुली. बंगाल को एक क्रिकेटर मिल गया था. 1992 के ऑस्ट्रेलिया टूर पर 'महाराज' कह कर जिसकी धज्जियां उड़ाई गईं थीं, अब 'प्रिंस' बन गया था.
95 रनों की ट्रेडमार्क राहुल द्रविड़ इनिंग्स को लगभग दोयम क़रार दे दिया गया था. लेकिन द्रविड़ के लिए ये बहुत बड़ा मौका था जहां उन्होंने गज़ब का कॉन्फिडेंस कमाया था. उस वक़्त के कोच संदीप पाटिल ने वापस आकर कहा भी था कि द्रविड़ जिस तरह से इनिंग्स के दौरान शांत था, लग ही नहीं रहा था कि कोई अपने जीवन का इतना बड़ा मैच खेल रहा था.
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