JMI स्टूडेंट्स ने शुरू की रीयूज़ेबल सेनिट्री पैड्स बनाने की मुहिम, झुग्गियों की महिलाओं को दे रहे रोज़गार
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JMI Students Menstrual Health Campaign: जामिया मिल्लिया इस्लामिया छात्र संगठन से जुड़े जामिया के छात्रों ने 2019 में रीयूजेबल पैड के विचार पर काम करना शुरू किया और उत्पाद को अंतिम रूप देने में उन्हें एक साल से अधिक का समय लगा. इसे 'प्रोजेक्ट श्रीमती' नाम दिया गया है. प्रोजेक्ट में उत्पादन के काम के लिए झुग्गियों में रह रही महिलाओं को रोजगार दिया जा रहा है.
JMI Students Menstrual Health Campaign: दक्षिण दिल्ली की एक झुग्गी बस्ती की रहने वाली रेशमा अक्सर सोचती थी कि सैनिटरी नैपकिन कैसे बनते हैं. उनकी जिज्ञासा और बढ़ गई जब उन्हें पता चला कि पीरियड पैड्स प्लास्टिक के बजाय नेचुरल उत्पादों का उपयोग करके भी बनाए जा सकते हैं. रेशमा जामिया मिलिया इस्लामिया (JMI) के छात्रों के एक समूह द्वारा शुरू किए गए 'रीयूज़ेबलऔर ईको फ्रैंडली' सेनिट्री पैड बनाने वाली इकाई में काम करती हैं.
रीयूजेबल नेचुरल पैड्स को बांस और केले के रेशों का उपयोग करके तैयार किया जाता है. इसे लेकर दावा किया गया है कि यह 12 पीरियड साइकिल तक चल सकता है. जामिया मिल्लिया इस्लामिया छात्र संगठन से जुड़े जामिया के छात्रों ने 2019 में रीयूजेबल पैड के विचार पर काम करना शुरू किया और उत्पाद को अंतिम रूप देने में उन्हें एक साल से अधिक का समय लगा. इसे 'प्रोजेक्ट श्रीमती' नाम दिया गया है.
ये नैपकिन पहली नज़र में आम तौर पर रीयूजेबल पैड की तरह दिखाई देते हैं लेकिन जो उन्हें अन्य पैड्स से अलग बनाता है वह है कच्चा माल. इसकी पहली परत ऊन से बनी होती है और दूसरी परत लाइक्रा की. बीच का हिस्सा केले और बांस के रेशों से बना होता है, जिसके बारे में छात्रों का दावा है कि यही इसकी सबसे खास बात है.
उत्पाद को अंतिम रूप देने के बाद, नैपकिन का उत्पादन अगला कार्य था. इसके लिए तीन मशीनों की आवश्यकता थी जिसके लिए स्टूडेंट्स को फंड्स की जरूरत थी. इसलिए उन्होंने बहुराष्ट्रीय कंपनियों का रुख किया. कई कंपनियों के सामने अपने विचार प्रस्तुत करने के बाद, छात्र 2.5 लाख रुपये से अधिक की फंडिंग हासिल करने में सफल रहे.
Enactus के अध्यक्ष और जामिया के थर्ड ईयर के छात्र गौरव चक्रवर्ती ने कहा, "प्रोडक्ट को फाइनल रूप देने के बाद मुख्य काम मशीनों को खरीदना था. हमें एक बहुराष्ट्रीय कंपनी की CSR गतिविधियों के हिस्से के रूप में मशीनों के लिए धन मिला और इसे एक गैर सरकारी संगठन द्वारा संचालित सिलाई केंद्र में लगाया गया और पैड्स का उत्पादन शुरू किया.''
'श्रीमती प्रोजेक्ट' में लगभग 22 छात्र लगे हुए हैं. ग्रुप को तीन-चार छात्रों की टीमों में उप-विभाजित किया गया है. एक टीम उत्पादन संभालती है, जबकि दूसरी मार्केटिंग आदि का ध्यान रखती है. छात्राओं ने कहा कि उनका मानना है कि उनके प्रयास मासिक धर्म से जुड़ी बेड़ियों को तोड़ देंगे. इसमें महंगे नैपकिन के लिए बेहतर विकल्प प्रदान करना और इन नैपकिन बनाने वाली इकाइयों में वंचित महिलाओं को रोजगार देना शामिल है. महिलाओं को 25 रुपये प्रति पैड का भुगतान किया जाता है.
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