Budh Pradosh Vrat 2024: बुध प्रदोष व्रत पर आज पढ़ें ये कथा, भोलेनाथ करेंगे हर इच्छा पूरी
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Budh Pradosh Vrat 2024: हर महीने की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखने की परंपरा है. दिन बुधवार होने की वजह से इसे बुध प्रदोष व्रत कहा जाएगा. बुध प्रदोष व्रत करने वालों को भगवान शिव और गणपति का आशीर्वाद मिलता है.
Budh Pradosh Vrat 2024: हिंदू पंचांग के अनुसार, हर महीने की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है. प्रदोष व्रत भगवान शिव की विशेष कृपा पाने का दिन है. इस बार शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत पड़ रहा है. इस दिन भगवान शिव की उपासना करने से आपको मनोवांछित फल की प्राप्ति हो सकती है. प्रदोष व्रत का पूजन सूर्यास्त से 45 मिनट पहले और सूर्यास्त के 45 मिनट बाद किया जाता है. इस बार यह प्रदोष व्रत बुधवार को पड़ रहा है इसलिए ये बुध प्रदोष व्रत है. साथ ही प्रदोष व्रत की कथा सुनना भी शुभ माना जाता है.
प्रदोष व्रत की कथा
स्कंद पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी अपने पुत्र को लेकर भिक्षा लेने जाती थी और संध्या को लौटती थी. एक दिन जब वह भिक्षा लेकर लौट रही थी तो उसे नदी किनारे एक सुन्दर बालक दिखाई दिया जो विदर्भ देश का राजकुमार धर्मगुप्त था. शत्रुओं ने उसके पिता को मारकर उसका राज्य हड़प लिया था. उसकी माता की मृत्यु भी अकाल हुई थी. ब्राह्मणी ने उस बालक को अपना लिया और उसका पालन-पोषण किया. कुछ समय पश्चात ब्राह्मणी दोनों बालकों के साथ देवयोग से देव मंदिर गई. वहां उनकी भेंट ऋषि शाण्डिल्य से हुई. ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को बताया कि जो बालक उन्हें मिला है वह विदर्भदेश के राजा का पुत्र है जो युद्ध में मारे गए थे और उनकी माता को ग्राह ने अपना भोजन बना लिया था. ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी. ऋषि आज्ञा से दोनों बालकों ने भी प्रदोष व्रत करना शुरू किया.
एक दिन दोनों बालक वन में घूम रहे थे तभी उन्हें कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आई. ब्राह्मण बालक तो घर लौट आया किंतु राजकुमार धर्मगुप्त 'अंशुमती' नाम की गंधर्व कन्या से बात करने लगे. गंधर्व कन्या और राजकुमार एक दूसरे पर मोहित हो गए. कन्या ने विवाह हेतु राजकुमार को अपने पिता से मिलवाने के लिए बुलाया. दूसरे दिन जब वह पुन: गंधर्व कन्या से मिलने आया तो गंधर्व कन्या के पिता ने बताया कि वह विदर्भ देश का राजकुमार है. भगवान शिव की आज्ञा से गंधर्वराज ने अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार धर्मगुप्त से कराया. इसके बाद राजकुमार धर्मगुप्त ने गंधर्व सेना की सहायता से विदर्भ देश पर पुनः आधिपत्य प्राप्त किया. यह सब ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के प्रदोष व्रत करने का फल था. स्कंदपुराण के अनुसार जो भक्त प्रदोषव्रत के दिन शिवपूजा के बाद एकाग्र होकर प्रदोष व्रत कथा सुनता या पढ़ता है उसे सौ जन्मों तक कभी दरिद्रता नहीं होती.
बुध प्रदोष व्रत पूजन विधि
प्रदोष व्रत के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नानादि करें और साफ वस्त्र धारण करें. उसके बाद बेलपत्र, अक्षत, दीप, धूप, गंगाजल आदि से भगवान शिव का पूजन करें. इस व्रत में भोजन ग्रहण नहीं किया जाता है. पूरे दिन का उपवास रखने के बाद सूर्यास्त से कुछ देर पहले दोबारा स्नान कर लें और सफेद रंग का वस्त्र धारण करें. फिर स्वच्छ जल या गंगा जल से पूजा स्थल को शुद्ध कर लें. अब गाय का गोबर लें और उसकी मदद से मंडप तैयार कर लें. पांच अलग-अलग रंगों की मदद से आप मंडप में रंगोली बना लें. पूजा की सारी तैयारी करने के बाद उतर-पूर्व दिशा में मुंह करके कुशा के आसन पर बैठ जाएं. भगवान शिव के मंत्र ऊं नम: शिवाय का जाप करें और शिव जी को जल चढ़ाएं.
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