समर्थकों के लिए 'आयरन लेडी' और आलोचकों के लिए 'निरंकुश' नेता, शेख हसीना के राजनीतिक सफर पर एक नजर
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हसीना का जन्म सितंबर 1947 में तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश में) में हुआ था. वह 1960 के दशक के अंत में ढाका विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान राजनीति में सक्रिय हो गई थीं. पाकिस्तानी सरकार द्वारा कारावास के दौरान उन्होंने अपने पिता के राजनीतिक संपर्क के रूप में कार्य किया.
शेख हसीना के समर्थक उनके विकास कार्यों और कभी सैन्य शासित बांग्लादेश में लोकतंत्र बहाली और राजनीतिक स्थिरता प्रदान करने के लिए उन्हें 'आयरन लेडी' के रूप में देखते हैं. वहीं विरोधी हसीना की आलोचना एक 'निरंकुश शासक' के रूप में करते हैं. वह दुनिया की सबसे लंबे समय तक सत्ता में रहने वाली महिला शासन प्रमुखों में से एक हैं. बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान की 76 वर्षीय बेटी शेख हसीना 2009 से बांग्लादेश पर शासन कर रही हैं. इस बार के आम चुनावों में उनकी जीत से सत्ता पर उनकी पकड़ और मजबूत होगी.
हसीना का जन्म सितंबर 1947 में तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश में) में हुआ था. वह 1960 के दशक के अंत में ढाका विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान राजनीति में सक्रिय हो गई थीं. पाकिस्तानी सरकार द्वारा कारावास के दौरान उन्होंने अपने पिता के राजनीतिक संपर्क के रूप में कार्य किया. वर्ष 1971 में बांग्लादेश को पाकिस्तान से आजादी मिलने के बाद उनके पिता मुजीबुर रहमान देश के राष्ट्रपति और फिर प्रधानमंत्री बने. अगस्त 1975 में, रहमान, उनकी पत्नी और उनके तीन बेटों की उनके घर में सैन्य अधिकारियों द्वारा हत्या कर दी गई थी.
हसीना छह वर्षों के निर्वासन के बाद 1981 में बांग्लादेश लौटीं
शेख हसीना और उनकी छोटी बहन शेख रेहाना विदेश में होने के कारण बच गईं. भारत में छह साल निर्वासन में बिताने वाली हसीना को अवामी लीग का नेता चुना गया, जो उनके पिता द्वारा स्थापित पार्टी है. हसीना 1981 में बांग्लादेश लौट आईं और सैन्य शासित देश में लोकतंत्र के बारे में मुखर हो गईं. उन्हें सेना ने कई मौकों पर घर में नजरबंद कर दिया. वर्ष 1991 के आम चुनावों में, शेख हसीना के नेतृत्व वाली अवामी लीग बहुमत हासिल करने में विफल रही. उनकी प्रतिद्वंद्वी बीएनपी की खालिदा जिया प्रधानमंत्री बनीं. पांच साल बाद, 1996 के आम चुनावों में हसीना प्रधानमंत्री चुनी गईं. साल 2001 के आम चुनावों में शेख हसीना को सत्ता से बाहर होना पड़ा. लेकिन 2008 में वह प्रचंड बहुमत के साथ एक बार फिर बांग्लादेश की सत्ता में लौट आईं. खालिदा जिया के नेतृत्व वाली बीएनपी तब से सत्ता में नहीं लौट सकी है. वर्ष 2004 में हसीना की रैली में ग्रेनेड विस्फोट के जरिए उनकी हत्या का प्रयास हुआ, जिसमें वह बच गईं. 2009 में सत्ता में आने के तुरंत बाद, हसीना ने 1971 के युद्ध अपराध मामलों की सुनवाई के लिए एक ट्रिब्यूनल गठित किया. ट्रिब्यूनल ने विपक्ष के कुछ हाई-प्रोफाइल नेताओं को दोषी ठहराया, जिससे हिंसक विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए.
बीएनपी की प्रमुख सहयोगी जमात-ए-इस्लामी को 2013 में चुनाव में भाग लेने से प्रतिबंधित कर दिया गया था. बीएनपी प्रमुख खालिदा जिया को भ्रष्टाचार के आरोप में 17 साल जेल की सजा सुनाई गई थी. बीएनपी ने 2014 के आम चुनावों का बहिष्कार किया, लेकिन 2018 में उसने चुनाव लड़ा, जिसे बाद में पार्टी के नेताओं ने एक गलती बताया. विपक्ष ने मतदान में व्यापक धांधली का आरोप लगाया. विपक्षी दल जातीय पार्टी सहित 27 राजनीतिक दलों ने चुनाव लड़ा था. बाकी सत्तारूढ़ अवामी लीग के नेतृत्व वाले गठबंधन के हिस्सा थे, जिन्हें विशेषज्ञों ने 'सैटेलाइट पार्टियां' करार दिया था.
वीजा पाबंदी की धमकी पर हसीना ने अमेरिका को दिया जवाब हालांकि, इस बार बीएनपी के बहिष्कार ने चुनावों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए, जिसमें कम मतदान दर्ज किया गया. भारत ने बांग्लादेश चुनावों को 'आंतरिक मामला' बताया, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका सहित अन्य पश्चिमी देशों ने शेख हसीना की सरकार से विश्वसनीय और पारदर्शी चुनावों का आह्वान किया. अमेरिका ने पारदर्शी चुनाव नहीं होने की स्थिति में शेख हसीना सरकार के अधिकारियों और आवामी लीग के नेताओं को वीजा नहीं देने की धमकी दी थी. इसके जवाब में, शेख हसीना ने बांग्लादेश की संसद को बताया था कि अमेरिका उन्हें सत्ता से बाहर करने की योजना बनाकर देश में 'लोकतंत्र को खत्म करने' की कोशिश कर रहा है.
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