संविधान की प्रस्तावना से नहीं हटेंगे 'सेकुलर' और 'सोशलिस्ट' शब्द, सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला
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चीफ जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने पूर्व राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी, अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन और अन्य की याचिकाओं पर फैसला 22 नवंबर को सुरक्षित रखा था. इन याचिकाओं में संविधान की प्रस्तावना से सोशलिस्ट और सेकुलर जैसे शब्दों को शामिल किए जाने को चुनौती दी गई थी.
सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के 1976 संशोधन को चुनौती देने वाली याचिकाओं को सोमवार को खारिज कर दिया. इन याचिकाओं में संविधान की प्रस्तावना से सोशलिस्ट, सेकुलर और अखंडता जैसे शब्द जोड़े गए थे.
चीफ जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने पूर्व राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी, अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन और अन्य की याचिकाओं पर फैसला 22 नवंबर को सुरक्षित रखा था. इन याचिकाओं में संविधान की प्रस्तावना से सोशलिस्ट और सेकुलर जैसे शब्दों को शामिल किए जाने को चुनौती दी गई थी.
सीजेआई ने कहा कि इन याचिकाओं पर विस्तृत सुनवाई की जरूरत नहीं है. पीठ ने कहा कि 1976 में संविधान में संशोधन कर सोशलिस्ट और सेकुलर इन दो शब्दों को शामिल किया गया था. अगर इन याचिकाओं को स्वीकार किया गया तो ऐसे में यह सभी संशोधनों पर लागू होगा.
1976 का वो 42वां संशोधन
जून 1975 से मार्च 1977 के बीच तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने संविधान में कई बार संशोधन किए. लेकिन सबसे बड़ा संशोधन दिसंबर 1976 में किया गया. इंदिरा सरकार ने संविधान में 42वां संशोधन कर दिया. ये अब तक सबसे विवादित संशोधन माना जाता है. इस संशोधन के जरिए संविधान में कई सारे बदलाव किए गए थे, इसलिए इसे 'मिनी कॉन्स्टीट्यूशन' भी कहा जाता है.
42वें संशोधन के जरिए संविधान की प्रस्तावना में तीन शब्द- 'समाजवादी', 'धर्मनिरपेक्ष' और 'अखंडता' को जोड़ा गया था. ये पहली और आखिरी बार था, जब संविधान की प्रस्ताव में बदलाव हुआ था. इन शब्दों को जोड़ने के पीछे तर्क दिया गया था कि देश को धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक तौर पर विकसित करने के लिए ये जरूरी है.
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