दो जंग, 80 साल से तनाव... रमजान में अल-अक्सा मस्जिद को लेकर क्यों भिड़ जाते हैं इजरायल-फिलिस्तीन?
AajTak
रमजान के महीने में इजरायल और फिलिस्तीन के बीच एक बार फिर अल-अक्सा मस्जिद को लेकर विवाद बढ़ गया है. अल-अक्सा मस्जिद को जहां मुसलान पवित्र स्थल मानते हैं वहीं, इजरायल के यहूदियों के लिए यह सबसे पवित्र स्थल है. दोनों देशों के बीच अल-अक्सा मस्जिद हमेशा से विवाद का केंद्र रहा है.
रमजान के महीने में इजरायल-फिलिस्तीन के संघर्ष ने एक बार फिर जोर पकड़ लिया है और इस बार भी केंद्र में है, यरुशलम का अल-अक्सा मस्जिद. आरोप है कि पिछले हफ्ते इजरायली सेना ने अल-अक्सा मस्जिद में नमाज के लिए जमा हुए दर्जनों फिलिस्तीनियों को पीटा और कई लोगों को गिरफ्तार कर लिया. इजरायली सेना की छापेमारी से जुड़े कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हैं. इस पर अरब देश भड़क गए हैं और उन्होंने इजरायल को चेतावनी दी कि वो तत्काल इस तरह की कार्रवाइयां रोके वरना अंजाम बुरा होगा.
यह कोई पहली बार नहीं है कि रमजान के महीने में इजरायल-फिलिस्तीन के बीच अल-अक्सा मस्जिद को लेकर विवाद गरमाया हो बल्कि पिछले कुछ सालों से यह देखा जा रहा है कि रमजान के महीने में दोनों पक्षों के बीच तनाव चरम पर पहुंच जाता है. पिछले साल भी रमजान के महीने में ही इजरायल ने अल अक्सा मस्जिद में रेड किया था जिसमें 67 फिलिस्तीनी जख्मी हो गए थे. सवाल उठता है कि आखिर अल-अक्सा मस्जिद दोनों पक्षों के लिए इतना महत्वपूर्ण क्यों है और इस पर वर्षों से विवाद क्यों चलता आ रहा है?
इसके लिए हमें इजरायल और फिलिस्तीन के इतिहास में झांकना पड़ेगा.
यूरोप से भागकर अपने 'पूर्वजों के घर' आए यहूदी
1920 और 1940 के बीच यूरोप में यहूदियों के साथ बड़े स्तर पर हिंसा हुई. जर्मन तानाशाह हिटलर ने यहूदियों का नरसंहार किया जिसे 'होलोकॉस्ट' कहा गया. इस प्रताड़ना से बचे यहूदी भागकर मध्य-पूर्व में फिलिस्तीन के नाम से जाने वाले वाले हिस्से में आकर रहने लगे. यहूदी इसे अपने पूर्वजों का घर मानते हैं क्योंकि यहां कुछ संख्या में यहूदी बसे हुए थे. हालांकि, यहां रहने वालों में अरब बहुसंख्यक थे.
प्रथम विश्व युद्ध में जब उस्मानिया सल्तनत की हार हो गई तब 'फिलिस्तीन' ब्रिटेन के कब्जे में आ गया था. ब्रिटेन पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने दबाव डाला कि वो 'फिलिस्तीन' को यहूदियों के लिए एक देश के तौर पर स्थापित करे. इससे फिलिस्तीनी भड़क गए और फिर शुरू हुआ हिंसा का वो दौर जो अब तक जारी है.
विश्वास मत सत्र के दौरान 733 संसद सदस्यों में से 207 ने शोल्ज सरकार के पक्ष में मतदान किया जबकि 394 ने विरोध में वोट डाला. यह प्रस्ताव पिछले महीने शोल्ज के तीन-पक्षीय गठबंधन के पतन के बाद आया है. शोल्ज ने बजट और आर्थिक नीतियों पर असहमति के कारण नवंबर में पूर्व वित्त मंत्री क्रिश्चियन लिंडनर को बर्खास्त कर दिया था.
सीरिया के अपदस्थ राष्ट्रपति बशर अल असद ने देश से भागने के बाद निर्वासन में अपने पहले बयान में कहा कि देश छोड़ना उनके लिए कभी एक विकल्प नहीं था. न्यूज एजेंसी एएफपी के अनुसार बशर अल-असद ने पिछले हफ्ते अपने शासन के पतन के बाद सोमवार को अपना पहला बयान जारी किया. इसमें उन्होंने कहा कि 'शरण उनके लिए कभी भी एक विकल्प नहीं था'.
स्विट्जरलैंड ने भारत से मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा वापस ले लिया है. नए साल की शुरुआत हम उससे सबसे ज्यादा तरजीह देने वाले देश की लिस्ट में नहीं रहेंगे. इसका असर देश में मौजूद स्विस कंपनियों और स्विट्जरलैंड में काम कर रही भारतीय कंपनियों पर भी होगा. लेकिन क्या है मोस्ट फेवर्ड नेशन का मतलब, और क्यों ये स्टेटस हटाया गया?