दुनिया की सबसे महंगी दवा ने बचाई 5 महीने के बच्चे की जान, ये है कीमत
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ब्रिटेन में एक पांच साल के बच्चे को दुनिया के सबसे महंगे ड्रग की एक डोज दी गई है. पांच साल का आर्थर मॉर्गन स्पाइनल मस्क्युलर एट्रोफी से जूझ रहा है. आमतौर पर इस बीमारी से लकवा मार जाता है और दो साल के अंदर किसी भी व्यक्ति की मौत हो जाती है.
ब्रिटेन में एक पांच साल के बच्चे को दुनिया के सबसे महंगे ड्रग की एक डोज दी गई है. पांच साल का आर्थर मॉर्गन स्पाइनल मस्क्युलर एट्रोफी से जूझ रहा है. आमतौर पर इस बीमारी से लकवा मार जाता है और दो साल के अंदर किसी भी व्यक्ति की मौत हो जाती है. (फोटो क्रेडिट: Reece Morgan) पिछले हफ्ते ये बच्चा दुनिया का पहला ऐसा मरीज बना है जिसे जोलगेंस्मा थेरेपी दी जा रही है. ये एक ऐसी जीन थेरेपी है जिसे हाथ में इंजेक्शन के सहारे दिया जाता है. इस ड्रग के एक डोज की कीमत 1.79 मिलियन पाउंड्स यानि लगभग 18 करोड़ रूपए है. (फोटो क्रेडिट: Reece Morgan) जोल्गेंस्मा दुनिया का सबसे महंगा ड्रग है और इसे स्विट्जरलैंड की फर्म नोवारटिस ने तैयार किया है. इस ड्रग की एक डोज स्पाइनल मस्क्युलर एट्रोफी(एसएमए) के लिए काफी है. इसके चलते बच्चे बैठने और चलने में भी सक्षम हो जाते हैं. (फोटो क्रेडिट: Reece Morgan)Redmi A4 5G Price in India: शाओमी ने भारत में अपना नया स्मार्टफोन लॉन्च कर दिया है, जो ब्रांड का सबसे सस्ता 5G फोन है. कंपनी ने Redmi A4 5G को लॉन्च किया है, दो दमदार फीचर्स के साथ 9 हजार रुपये से कम के बजट में आता है. इसमें 50MP के मेन लेंस वाला डुअल रियर कैमरा और 5160mAh की बैटरी दी गई है. आइए जानते हैं इसकी डिटेल्स.
बीते कुछ सालों में, Artificial Intelligence ने कई sectors को revolutionize कर दिया है, और education field पर भी इसका बड़ा असर हुआ है. AI-powered technologies के development के साथ, हमारे सीखने और सिखाने के तरीके में बड़ा transformation हो रहा है. India में, जहां education system vast और diverse है, AI, students के education पाने के तरीके को नया रूप देने में बड़ा रोल निभा सकता है. आइए जानते हैं कि AI teachers भारत में education system को कैसे बदल सकते हैं, और इस बदलाव का students, teachers और पूरे देश पर क्या असर हो सकता है.
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जेेएनयू के टीचर्स एसोसिएशन ने एक बयान में कहा कि इससे पहले भी TISS ने मुंबई में इसी तरह की एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें प्रो. पंडित ने हिस्सा लिया था. हालांकि, पूरी रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई है और यह आरोप है कि सेमिनार में दी गई प्रस्तुतियों का इस्तेमाल कुछ राजनीतिक संगठनों ने प्रवासन के पैटर्न को 'अवैध' साबित करने के लिए किया.