'दादाजी वृंदावन जाने पर अड़े, और पहुंचते ही त्याग दिए प्राण'... अरबपति ने बताई मार्मिक कहानी
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Anil Agarwal Viral Facebook Post : वेदांता चेयरमैन अनिल अग्रवाल ने अपनी पोस्ट में लिखा, 'मुझे जो मिला, वो अनमोल है और मेरी ये जिम्मेदारी है कि ये मैं आगे आप सब से शेयर करूं. इसलिए 'कर्म करो, वही ईश्वर की सच्ची आराधना है.'
अरबपति (Billionaire) कारोबारी और वेदांता ग्रुप (Vedanta Group) के चेयरमैन अनिल अग्रवाल (Anil Agarwal) सोशल मीडिया पर खासे एक्टिव रहते हैं और आए दिन कुछ न कुछ दिलचस्प पोस्ट करते रहते हैं. अब उन्होंने फेसबुक (Facebook) अपने दादाजी को याद करते हुए बड़ी ही मार्मिक कहानी शेयर की है, जिसमें उन्होंने अपनी सफलता के पीछे 'दादाजी की सीख' को श्रेय दिया है. इसका साथ ही उन्होंने अपने परिवार का श्रीकृष्ण की नगरी 'वृंदावन' (Vrindavan) से कनेक्शन के बारे में भी बताया है.
दादाजी की दी गई सीख आई काम अनिल अग्रवाल ने अपनी फेसबुक पोस्ट (Anil Agarwal Facebook Post) में लिखा, 'हमारी परंपरा में जब कोई यात्रा पर निकलता है, तो बड़ों के पैर छू कर आशीर्वाद लेता है. मेरी तो पटना से मुंबई तक की यात्रा वैसे ही मेरे जीवन की माइलस्टोन जर्नी थी. जब रवाना होने से पहले मैंने अपने दादाजी के पैर छुए, तो उन्होंने ने आशीर्वाद के साथ जीवन की वो सीख दी, जिसे मैं कभी भी नहीं भूल सकता.' अनिल अग्रवाल के मुताबिक, दादाजी ने कहा था कि 'निभा लेना और निभ जाना.'
अपनी पोस्ट में आगे लिखते हुए अरबपति ने बताया कि उस वक्त, मेरे पास दादाजी की दी हुई ये अनमोल सीख थी, जिसे मैं अपनी पोटली में बांध कर एक लंबे सफर पर निकल गया. जब कभी काम में असफलता मिली या मन उदास हुआ, मैं उस पोटली को टटोल लेता और मुझमें हिम्मत आ जाती थी. Anil Agarwal ने अपने दादाजी के वृंदावन कनेक्शन के बारे में भी बताया.
दादी से बिल्कुल अलग था दादाजी का अंदाज Vedanta Chairman ने लिखा, 'मेरी दादीजी ने अपने जीवन के आखिरी 40 साल, वृंदावन के मानव संघ आश्रम में हमारे फैमिली गुरु श्री शरणानंद जी महाराज, जो कि जन्म से देख नहीं सकते थे, के पास बिताए थे. उनकी दिनचर्या में किसी भी तरह का दखल उनको पसंद नहीं था. वो तो सिर्फ आश्रम, गुरु और राधा रानी की सेवा में लगी रहती थीं उनकी बस यही इच्छा थी कि उनकी मुक्ति वृंदावन में राधा रानी के चरणों में हो. हालांकि, दादाजी उनसे बिल्कुल अलग थे, उन्होंने कभी पूजा-पाठ नहीं की. वो अपना समय सिर्फ दूसरों की मदद करने में लगाते थे. रामकृष्ण मिशन से जुड़ कर वो कभी स्कूल तो कभी अस्पताल बनवाने में व्यस्त रहते थे.
कोलकाता से अचानक वृंदावन पहुंचे दादाजी दादाजी के अंतिम दिनों के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि जब वे 90 की उम्र में थे और मेरे कजिन के यहां कोलकाता गए हुए थे, तभी एक दिन, अचानक उन्होंने कहा कि उन्हें तुरंत वृंदावन जाना है. वे फ्लाइट से दिल्ली पहुंचे. उस उम्र में... एक लंबे सफर के बाद सबने कहा कि आप एक-दो दिन आराम करके वृंदावन चले जाना! लेकिन वो नहीं माने और तुरंत ही निकल पड़े.
वृंदावन में पहुंचकर वो एक खाट पर बैठे, जल ग्रहण किया और अपने प्राण त्याग दिए. ऐसा लगा जैसे उनको आभास हो चुका था कि प्रभु उनको बुला रहे हैं. चेहरे पर असीम शांति बता रही थी कि एक सार्थक जीवन बिताकर, वो अब मुक्ति की ओर चले गए हैं.
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