चीन को लेकर ट्रंप के रुख में अचानक बदलाव क्या रणनीतिक चापलूसी है? चीनी एक्सपर्ट्स की राय
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डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में चीन के प्रति सख्त रवैया अपनाया था. उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव प्रचार के दौरान भी चीन पर भारी टैरिफ लगाने की बात कही थी. लेकिन चुनाव जीतने के बाद उन्होंने चीन के प्रति नरम रवैया अपनाया है. चीनी एक्सपर्ट्स इसके कई मतलब निकाल रहे हैं.
चीन के लिए ट्रंप के दूसरे कार्यकाल की शुरुआत दिलचस्प और हैरानी भरी रही है. ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान और 2024 में राष्ट्रपति चुनाव अभियान के दौरान चीन के प्रति बेहद सख्त रुख बनाए रखा. हालांकि, चुनाव जीतने के बाद और 20 जनवरी को अपने शपथ ग्रहण से पहले, उन्होंने चीन का ज्यादा जिक्र नहीं किया. इसके बजाय, उन्होंने कनाडा, ग्रीनलैंड और पनामा जैसे अन्य देशों पर अपने जुबानी हमले तेज कर दिए.
ट्रंप ने चीन के प्रति सख्ती दिखाने के बजाए दोस्ती बढ़ाने के संकेत दिए हैं जिसमें चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को अपने शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित करना और अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस का चीन के विशेष प्रतिनिधि और उपराष्ट्रपति हान झेंग का स्वागत करना शामिल है. झेंग ने शपथ ग्रहण समारोह में टेस्ला के सीईओ और ट्रंप के दोस्त समझे जाने वाले एलन मस्क सहित अमेरिका के बड़े बिजनेसमैन से मुलाकात की.
ऐसी भी खबरें हैं कि ट्रंप अपने कार्यकाल के पहले 100 दिनों में चीन का दौरा करेंगे. यह चीन को लेकर बाइडन के नजरिए से बिल्कुल अलग है.
चीन पर नरम हुए ट्रंप
ट्रंप ने चुनाव अभियान के दौरान चीनी वस्तुओं पर 60 प्रतिशत टैरिफ लगाने की धमकी दी थी लेकिन पद ग्रहण करने के बाद उन्होंने इसे लागू करने में जल्दबाजी नहीं की है. इसके बजाय, उन्होंने कनाडा और मैक्सिको से आने वाले सामानों पर टैरिफ लगाने पर ध्यान दिया है. उन्होंने 1 फरवरी से दोनों देशों पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने के प्लान की घोषणा की है. ट्रंप प्रशासन चीन पर टैरिफ लगाने के जिस प्लान पर विचार कर रहा है, उसमें चीन पर केवल 10 प्रतिशत टैरिफ लगाना शामिल है.
इतना ही नहीं, ट्रंप ने टिकटॉक के मुद्दे पर भी उदार रुख अपनाया है और टिकटॉक पर प्रतिबंध को फिलहाल स्थगित कर दिया है. ट्रंप ने इस बात पर भी जोर दिया है कि "टिकटॉक को बचाया जाना चाहिए."
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