
घुसपैठियों पर पाकिस्तान सख्त, निकलने का दिया अल्टीमेटम, किन मुल्कों के लोग ले रहे वहां शरण?
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इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन फॉर माइग्रेशन के मुताबिक, पिछले डेढ़ साल में पाकिस्तान ने 8 लाख से ज्यादा अफगान शरणार्थियों को देश से निकाल दिया. इस्लामाबाद का दावा है कि अब भी अफगानिस्तान से तीस लाख से ज्यादा लोग उसके यहां हैं, जिनमें से काफी बगैर दस्तावेजों के हैं. अब इन्हीं घुसपैठियों को निकालने के लिए उसने अल्टीमेटम दे दिया.
पाकिस्तान अक्सर महंगाई, गरीबी और राजनीतिक उथलपुथल के लिए खबरों में रहता है. बीच-बीच में पड़ोसियों से उसकी जुबानी झड़प की चर्चा भी हो जाती है. आजकल बलूच लोग देश से अलगाव मांग रहे हैं. कुल मिलाकर, पाकिस्तान हर फ्रंट पर अस्थिर है. लेकिन इसी देश में अफगानिस्तान से लाखों शरणार्थी आ रहे हैं. अब इस्लामाबाद उनसे इतना परेशान है कि उन्हें निकालने के तरीके खोज रहा है. हाल में उसने अवैध इमिग्रेंट्स को खुद ही देश छोड़ने का अल्टीमेटम दे दिया, वरना उनपर कार्रवाई की जाएगी.
इस्लामाबाद ने जनवरी के आखिर में एक सरकारी नोटिफिकेशन निकाला, जिसमें सारे अवैध प्रवासियों को 31 मार्च तक देश छोड़ने को कहा गया. खासकर इस्लामाबाद और रावलपिंडी में इसपर जोर दिया गया. नोटिफिकेशन के मुताबिक, बिना पेपरवर्क के रहते लोग अगर देश में बने रहें तो 10 अप्रैल से उनपर एक्शन लिया जाएगा.
कौन से पेपरवर्क की बात हो रही यूएन रिफ्यूजी एजेंसी UNHCR प्रूफ ऑफ रजिस्ट्रेशन जारी करती है, जो लोगों को किसी देश में शरण लेते हुए दिया जाता है. जिनके पास ये दस्तावेज हैं, पाकिस्तान उन्हें देश से तो नहीं निकालेगा लेकिन इस्लामाबाद और रावलपिंडी से बाहर किसी दूसरे शहर में भेज देगा. वहीं अफगान सिटीजन कार्ड रखने वाले सारे लोग तुरंत अफगानिस्तान भेज दिए जाएंगे. अवैध प्रवासियों को बाहर निकालने का काम पिछले 18 महीनों से कई चरणों में हो रहा था. अब कथित तौर पर आखिरी चेतावनी दी गई, जिसमें लोगों से वॉलंटरी तरीके से जाने को कहा गया.
इन्हीं दो शहरों से क्यों निकाले जा रहे इस्लामाबाद और रावलपिंडी दोनों ही शहर राजनीतिक और व्यापारिक नजरिए से बेहद अहम हैं. यहां डिप्लोमेट्स का भी आना-जाना बना रहता है. पाकिस्तान सरकार का कहना है कि हाल के सालों में इन शहरों में अवैध प्रवासियों की संख्या तेजी से बढ़ी. इससे सुरक्षा के साथ-साथ छवि को भी खतरा है. इसके अलावा, बीते कुछ समय में इस देश के लिए इंटरनेशनल फंडिंग, खासकर अमेरिकी फंड में कटौती हुई. इसका असर भी शरणार्थी पॉलिसी पर हो रहा है. यही वजह है कि देश लगातार घुसपैठियों पर सख्त हुआ.
लेकिन भूचाल से गुजरते इस देश में आखिर अफगानिस्तान के लोग क्यों शरण खोज रहे? इसकी शुरुआत अफगानिस्तान पर सोवियत संघ से हमले से हुई. साल 1979 में उसने अफगानिस्तान पर हमला किया ताकि तत्कालीन कम्युनिस्ट सरकार को बचा सके. हालांकि उसका शासन ज्यादा नहीं टिका. कई मुजाहिदीन गुट उसके खिलाफ इकट्ठा हो गए. चारों तरफ आतंक का माहौल था. सोवियत हर अफगानी पर शक करता, यही हाल मुजाहिदीनों का था. इसी दौर में करीब 50 लाख अफगानियों ने अपना देश छोड़ दिया. इनमें से ज्यादातर पाकिस्तान गए, जबकि कुछ प्रतिशत पश्चिमी देशों की तरफ निकल गया.

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इमिग्रेशन जज जेमी ई. कोमन्स ने कोलंबिया यूनिवर्सिटी के छात्र महमूद खलील को डिर्पोटेशन को मंजूरी दे दी है. उन्होंने फैसला सुनाते हुए कहा, 'अमेरिकी सरकार ने स्पष्ट और ठोस सबूत दिए हैं कि देश में खलील की मौजूदगी संभावित रूप से गंभीर विदेश नीति परिणाम पैदा कर सकती है, जो निष्कासन के लिए कानूनी सीमा को पूरा करती है.'