Live: ब्रिटिश चुनाव में लेबर पार्टी की आंधी, अब तक 102 सीटें जीती, ऋषि सुनक की पार्टी को सिर्फ 9
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मतगणना के शुरुआती नतीजों में अब तक 650 सीटों में से 100 से अधिक सीटों पर नतीजों का ऐलान किया गया है. ऐसे में लेबर पार्टी के नेता किएर स्टार्मर का प्रधानमंत्री बनना तय नजर आ रहा है. वहीं, हार की आशंका के बीच ऋषि सुनक ने ऐलान कर दिया है कि वह कल प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे देंगे.
ब्रिटेन आम चुनाव में उम्मीदों के अनुरूप मुख्य विपक्षी लेबर पार्टी प्रचंड जीत की ओर बढ़ रही है. शुरुआती नतीजों में लेबर पार्टी 102 सीटें जीत चुकी हैं जबकि सत्तारूढ़ कंजर्वेटिव पार्टी अभी तक सिर्फ नौ सीटें ही जीत पाई है.
मतगणना के शुरुआती नतीजों में अब तक 650 सीटों में से 100 से अधिक सीटों पर नतीजों का ऐलान किया गया है. ऐसे में लेबर पार्टी के नेता किएर स्टार्मर का प्रधानमंत्री बनना तय नजर आ रहा है. वहीं, हार की आशंका के बीच ऋषि सुनक ने ऐलान कर दिया है कि वह कल प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे देंगे.
इससे पहले वोटिंग खत्म होने के बाद एग्जिट पोल में भी लेबर पार्टी की प्रचंड जीत का अनुमान जताय गया था. बीबीसी-इप्सोस एग्जिट पोल में किएर स्टार्मर (Keir Starmer) के नेतृत्व वाली लेबर पार्टी के 410 सीटें जीतने का दावा किया गया जबकि मौजूदा पीएम ऋषि सुनक के नेतृत्व वाली कंजर्वेटिव पार्टी को महज 131 सीटें मिलने का अनुमान जताया गया.
बहुमत के लिए क्या है आंकड़ा?
650 सांसदों वाले सदन (हाउस ऑफ कॉमन्स) में बहुमत की सरकार बनाने के लिए किसी पार्टी को 326 सीटों की आवश्यकता होती है. हार का संकेत मिलने के बाद प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने इस्तीफे का ऐलान कर दिया है.
एग्जिट पोल के अनुमान अगर वास्तविक नतीजों में तब्दील होते हैं, तो लेबर पार्टी प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में वापसी कर सकती है और केर स्टार्मर ब्रिटेन के अगले प्रधानमंत्री हो सकते हैं. यूके में मतदान समाप्त होते ही वोटों की गिनती शुरू हो गई थी, लेकिन 650 सीटों वाली संसद में स्पष्ट विजेता कौन होगा यह सामने आने में कुछ घंटे लगेंगे. एक अन्य सर्वे एजेंसी YouGov ने केर स्टार्मर की लेबर पार्टी को 431 सीटें मिलने और पीएम ऋषि सुनक की कंजर्वेटिव पार्टी के लिए सिर्फ 102 सीटों की भविष्यवाणी की है.
1991 में गल्फ वॉर की समाप्ति ने ईरान और इज़रायल के बीच खुली दुश्मनी के युग की शुरुआत की. सोवियत संघ के पतन और एकमात्र महाशक्ति के रूप में अमेरिका के उदय ने इस क्षेत्र को और अधिक पोलराइज्ड कर दिया. वहीं, ईरान और इज़रायल ने खुद को लगभग हर प्रमुख जियो-पॉलिटिकल विमर्श में एक दूसरे के खिलाफ पाया. 1980 के दशक में शुरू हुआ ईरान का न्यूक्लियर प्रोग्राम 1990 के दशक से विवाद का केंद्र बन गया.