युद्ध में अमेरिकी मदद... जानें यूक्रेन और इजरायल को मिल रहे सपोर्ट में कितना अंतर
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यूक्रेन और इजरायल के लिए अमेरिका की मदद में काफी अंतर है. अमेरिका यूक्रेन में सावधानी से मदद कर रहा है और नाटो के साथ मिलकर काम कर रहा है, जबकि इजरायल को दी जाने वाली मदद एक मजबूत द्विदलीय समर्थन पर आधारित है, जो इसकी भू-राजनीतिक अहमियत को दर्शाता है.
यूक्रेन और इजरायल अलग-अलग मोर्चों पर वार की चपेट में हैं और इन दोनों देशों के बीच झूल रहा है अमेरिका. कारण साफ है. दोनों देशों के ऊपर अमेरिका का हाथ है और दोनों ही देश रणभूमि में डंटे रहने के लिए अमेरिकी मदद पर काफी हद तक निर्भर हैं. युद्ध के बीच यूक्रेन और इजरायल को मिल रही अमेरिकी मदद में काफी फर्क देखने को मिल रहा है.
इसका कारण है दोनों देशों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, राजनीतिक रिश्ते, और उनकी रणनीतिक जरूरतें. वैसे तो अमेरिका दोनों का साथी है, लेकिन मदद करने का तरीका, लोगों की सोच और हालात को संभालने का तरीका अलग है. तो आइए जानते हैं आखिर दोनों देशों के मिल रही मदद में कैसा अंतर देखने को मिल रहा है.
नाटो के साथ मिलकर अमेरिका कर रहा है यूक्रेन की मदद
यूक्रेन के युद्ध में अमेरिका ने काफी पैसे और हथियार भेजे हैं, लेकिन हमेशा सावधानी से. अमेरिका खुद सीधे युद्ध में शामिल नहीं हुआ है. इसके बजाय उसने नाटो और आर्थिक प्रतिबंधों के जरिए रूस का सामना किया है और अभी तक तो ऐसा ही देखने को मिल रहा है.
सैन्य और आर्थिक मदद: अमेरिका ने अब तक यूक्रेन को $113 बिलियन से ज्यादा की मदद दी है. जिसमें HIMARS और Javelin मिसाइलें शामिल हैं. लेकिन अमेरिका के कुछ नेता इसे अनिश्चितकाल तक जारी रखने पर सवाल उठा रहे हैं.
बाइडेन और जेलेंस्की का रिश्ता: यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की और बाइडेन के बीच अच्छे संबंध हैं. जेलेंस्की कहता है कि यूक्रेन की लड़ाई सिर्फ उसकी नहीं, बल्कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए है. इससे अमेरिका को यूरोप और नाटो से मदद जुटाने में आसानी होती है.
IDF ने हिज्बुल्लाह पर लेबनान और सीरिया के बीच नागरिक मसना सीमा क्रॉसिंग का उपयोग देश में ईरानी हथियारों की तस्करी करने के लिए करने का आरोप लगाया है. साथ ही चेतावनी दी है कि वह आतंकवादी समूह को नए हथियार प्राप्त करने से रोकने के लिए कार्रवाई करेगा. उधर, इज़रायल और हिज्बुल्लाह के बीच लड़ाई बढ़ने के कारण हाल के दिनों में हज़ारों लोग, मुख्य रूप से सीरियाई, क्रॉसिंग के माध्यम से लेबनान से सुरक्षित जगह शिफ्ट हो गए हैं.
1991 में गल्फ वॉर की समाप्ति ने ईरान और इज़रायल के बीच खुली दुश्मनी के युग की शुरुआत की. सोवियत संघ के पतन और एकमात्र महाशक्ति के रूप में अमेरिका के उदय ने इस क्षेत्र को और अधिक पोलराइज्ड कर दिया. वहीं, ईरान और इज़रायल ने खुद को लगभग हर प्रमुख जियो-पॉलिटिकल विमर्श में एक दूसरे के खिलाफ पाया. 1980 के दशक में शुरू हुआ ईरान का न्यूक्लियर प्रोग्राम 1990 के दशक से विवाद का केंद्र बन गया.