HPCA को दिए 12 लाख, बात नहीं बनी तो राजस्थान को बनाया अपना गढ़... कुछ ऐसे बने थे ललित मोदी BCCI में बड़ी ताक़त
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90 के दशक के मध्य में ललित मोदी ने एनबीए की तर्ज़ पर भारतीय शहरों पर आधारित क्रिकेट टीमें बनाकर एक टूर्नामेंट शुरू करने का प्लान बनाया था. ललित मोदी इसमें डिज़्नी को शामिल करना चाहते थे लेकिन बीसीसीआई को ये रास नहीं आया. उस वक़्त सारी ताक़त जगमोहन डालमिया के हाथों में थी और ललित मोदी के इस प्लान को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. ललित मोदी को समझ में आ गया था कि जगमोहन डालमिया और उनके गुट के रहते वो बहुत आगे नहीं बढ़ पायेंगे.
ललित मोदी एक बार फिर से ख़बरों में आ रहे हैं. हाल ही में आईपीएल के प्रसारण के अधिकारों पर लगी बोलियों से बीसीसीआई को मोटी रकम मिली. इसके बाद ललित मोदी, जिन्हें आईपीएल के मास्टरमाइंड के रूप में जाना जाता है और जो पहले 3 सीज़न के लिये वो दुनिया की इस सबसे महंगी क्रिकेट लीग के चेयरमैन और कमिश्नर थे. फ़िलहाल, भारत के लिये ललित मोदी भगोड़े हैं.
2023-27 के लिये आईपीएल के प्रसारण के अधिकारों की बोलियों के बाद ललित मोदी ने ट्वीट किया और कहा कि उन्हें ख़ुशी थी कि आईपीएल, जिसके वो जनक हैं, दुनिया में शिखर चूम रहा है और ये टूर्नामेंट न केवल देश को एक करता है बल्कि दुनिया को ये भी बताता है कि भारत के पास सबसे बेहतरीन ब्रांड है. ललित मोदी ने एक के बाद एक कई ट्वीट किये और फ़ैन्स को धन्यवाद देने के साथ-साथ पुरानी तस्वीरें, आंकड़े आदि भी शेयर किये. ललित मोदी एक टीवी चैनल को इंटरव्यू भी देने वाले हैं.
लेकिन एक बिज़नेसमैन परिवार से आने वाले ललित मोदी की यात्रा क्या रही? अमीर परिवार, जिसका क्रिकेट से कोई वास्ता नहीं था. वहां से आकर राजस्थान क्रिकेट के रास्ते भारतीय क्रिकेट बोर्ड में कदम जमाये, आईपीएल को जन्म दिया, तीन सीज़न चलाया और फिर देश छोड़कर भागना भी पड़ा.
90 के दशक के मध्य में ललित मोदी ने एनबीए की तर्ज़ पर भारतीय शहरों पर आधारित क्रिकेट टीमें बनाकर एक टूर्नामेंट शुरू करने का प्लान बनाया था. ललित मोदी इसमें डिज़्नी को शामिल करना चाहते थे लेकिन बीसीसीआई को ये रास नहीं आया. उस वक़्त सारी ताक़त जगमोहन डालमिया के हाथों में थी और ललित मोदी के इस प्लान को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. ललित मोदी को समझ में आ गया था कि जगमोहन डालमिया और उनके गुट के रहते वो बहुत आगे नहीं बढ़ पायेंगे. इस बात को ज़हन में रखते हुए उन्होंने काम करना शुरू किया. साल 1999 में ललित मोदी ने हिमाचल प्रदेश क्रिकेट असोसिएशन को 12 लाख रुपये दिए. उस छोटे से असोसिएशन के लिये ये बड़ी रकम थी. तब न ही वहां धर्मशाला का स्टेडियम था और न ही इस प्रदेश ने कोई बड़ा टूर्नामेंट जीता था. वहां भले ही सरकार भाजपा की थी लेकिन क्रिकेट असोसिएशन में कांग्रेस के नेताओं का ही सिक्का चलता था. असोसिएशन हमीरपुर के ज़िला अध्यक्ष राजिंदर ज़ार और एक और कांग्रेस नेता रघुबीर ठाकुर की उंगलियों के इशारों पर नाचा करता था. और ठीक इसी समय मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के बेटे अनुराग सिंह ठाकुर राजनीतिक तस्वीर में शामिल होने की तैयारियों में लगे हुए थे.
ललित मोदी को समझ में आने लगा था कि प्रदेश में उन्हें काफ़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा. अनुराग सिंह ठाकुर सबसे बड़ी रुकावट होने वाले थे. लिहाज़ा उन्होंने अपना ध्यान वापस राजस्थान पर लगाया. यहां के क्रिकेट पर किशन रुंगटा और किशोर रुंगटा का आधिपत्य था. दशकों से इस प्रदेश का क्रिकेट इसी परिवार के निर्देशों का पालन कर रहा था. इसके साथ एक तथ्य ये भी था कि दोनों रुंगटा भाई जगमोहन डालमिया के बेहद करीबी थे. ललित मोदी को इन्हें बाहर करना था. ये कोई छोटा-मोटा काम नहीं था. और इसलिये उन्होंने मदद ली सिंधिया परिवार की. मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया ने उन्हें रुंगटा बंधुओं को अपदस्थ करने की ज़िम्मेदारी दी और हर संभव मदद का वादा किया.
ललित मोदी और सिंधिया परिवार की नजदीकियां किसी से छिपी नहीं थीं. कहते हैं कि ललित जब भी जयपुर में होते, वो आलीशान होटल रामबाग पैलेस के महंगे कमरों में रुकते. दबी ज़ुबान में ललित मोदी को राजस्थान का 'सुपर सीएम' कहा जाता. उनके इस ऊंचाई तक पहुंचने के पीछे बीना किलाचंद का बहुतादा हाथ था. बीना वसुंधरा राजे सिंधिया की बेहद क़रीबी थीं और एक बड़े व्यापारी परिवार से आती थीं. जब बीना और वसुंधरा राजे के बीच दरार पड़ी इसका सबसे बड़ा फ़ायदा ललित मोदी को मिला और वो मुख्यमंत्री के करीबियों में कुछ पायदान और ऊपर आ गए. और इस तरह से ललित मोदी ने राजनीतिक गलियारों में भी अपनी पहचान बनानी शुरू कर दी थी.
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