
लगभग 60 लाख की आबादी वाले देश अल साल्वाडोर ने क्यों बनाई दुनिया की सबसे बड़ी जेल, अमेरिका भी भेज रहा अपने कैदी
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डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन बगैर दस्तावेज के रहते लोगों को वापस उनके देश डिपोर्ट कर रहा है. साथ ही कई क्रिमिनल्स को अल-साल्वाडोर की एक जेल में भेजा जा रहा है. आतंकवादियों के लिए बनी इस जेल को दुनिया की सबसे बड़ी और खतरनाक जेलों में रखा जाता रहा. अल साल्वाडोर एक छोटा-सा देश है, तो उसे इतने बड़े कैदखाने की जरूरत क्यों पड़ी? और अमेरिका अपने कैदी वहां क्यों भेज रहा है?
कुछ हफ्तों पहले डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने अवैध प्रवासियों को निकाल-बाहर करना शुरू किया. साथ ही बहुत से लोग अल सल्वाडोर की जेल में भी भेजे जाने लगे. हाल में अमेरिकी सरकार ने स्वीकारा कि उन्होंने प्रशासनिक भूल में भी एक शख्स को कुख्यात जेल में भेज दिया. इसके बाद से ही साल्वाडोर के कैदखाने पर चर्चा हो रही है. हाई सिक्योरिटी टैररिस्ट प्रिजन में जो एक बार गया, उसके बाहर आने की गुंजाइश कम ही रहती है. संयुक्त राष्ट्र इसे ह्यूमन राइट्स का नर्क भी कह चुका.
साल्वाडोर कैसा देश है मध्य अमेरिकी देश को दुनिया के सबसे हिंसक मुल्कों में गिना जाता रहा. नब्बे के दशक में यहां क्राइम और खासकर गैंग कल्चर इतना बढ़ा कि सरकार तक लाचार थी. दो बड़े गैंग थे, जो पूरे साल्वाडोर को चला रहे थे. सड़कों पर हत्याएं और लूटपाट आम थी. हालात का अंदाजा इसी से लगा लीजिए कि कुछ साल पहले यहां हत्या की दर सबसे ज्यादा थी, जबकि देश खुद काफी छोटा है. यहां रोज औसतन 18 लोग मारे जाते थे. ये गैंग से जुड़े नहीं, बल्कि आम लोग भी हो सकते थे, जो गलती से घटनास्थल पर मौजूद थे.
कुछ साल पहले बदला माहौल
देश की सुरक्षा एजेंसियां भी इसके सामने बेबस थीं लेकिन कोई कुछ कर नहीं पा रहा था. साल 2019 में एक नायिब बुकेले की सरकार आई. राष्ट्रपति बनने से पहले ही उन्होंने अपराध को खत्म करने का वादा किया था. आते ही वे इस काम में लग गए. साल 2022 में जब गैंग्स ज्यादा आक्रामक हुए तो बुकेले ने तुरत-फुरत इमरजेंसी लगा दी. इसके तहत पुलिस और सेना को बिना किसी वारंट के लोगों को गिरफ्तार करने की छूट मिल गई. कुछ ही वक्त में 70 से 80 हजार लोग अरेस्ट हो गए.
अब सरकार के सामने एक नई समस्या खड़ी हुई कि इतने कैदियों को कहां रखा जाए. गैंग कल्चर की वजह से जेलें पहले से ही भरी हुई थीं. इसी कारण, बुकेले ने एक नई जेल बनाने का फैसला किया, जिसका नाम रखा गया- सेंटर फॉर टैररिज्म कनफाइनमेंट (CECOT).

स्वेच्छा से देश नहीं छोड़ने वालों पर 998 डॉलर प्रतिदिन (लगभग 85,924 रुपये) का जुर्माना लगाया जाएगा, यदि उन्हें स्वदेश वापसी का अंतिम आदेश मिल चुका है. इसके अलावा, जिन्होंने अधिकारियों को सूचित किया है कि वे देश छोड़ देंगे लेकिन फिर भी नहीं जाते, उन पर 1,000 से 5,000 डॉलर (लगभग 86,096 रुपये से 4.30 लाख रुपये) तक का जुर्माना लगाया जाएगा.

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