रतनजी टाटा की पत्नी... जो बनीं थीं Tata संस की फर्स्ट लेडी डायरेक्टर, नहीं होती चर्चा
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जमशेदजी नुसरवानजी टाटा से लेकर दोराबजी टाटा, सर रतनजी टाटा, JRD Tata और रतन टाटा की चर्चा होती रहती है, लेकिन इस बीच एक ऐसी महिला Tata Group की मुख्य कंपनी TATA SONS की डायरेक्टर बनीं, जिनकी चर्चा बहुत कम होती है या यूं कहें कि बहुत से लोग उन्हें आज के समय में जानते ही नहीं हैं.
टाटा ग्रुप (Tata Group) की जिम्मेदारी जमशेदजी नुसरवानजी टाटा से लेकर रतन टाटा के कंधों पर रही है और अब नोएल टाटा के हाथों में ये जिम्मेदारी है. टाटा ग्रुप को आगे बढ़ाने में टाटा फैमिली के हर एक व्यक्ति ने अपनी पूरी निष्ठा से काम किया है. पीढ़ी दर पीढ़ी... जिसको भी Tata Group की कमान मिली, सभी ने ग्रुप और देश के हित में कई बड़े फैसले लिए.
जमशेदजी नुसरवानजी टाटा से लेकर दोराबजी टाटा, सर रतनजी टाटा, JRD Tata और रतन टाटा की चर्चा होती रहती है, लेकिन इस बीच एक ऐसी महिला Tata Group की मुख्य कंपनी TATA SONS की डायरेक्टर बनीं, जिनकी चर्चा बहुत कम होती है या यूं कहें कि बहुत से लोग उन्हें आज के समय में जानते ही नहीं हैं. हालांकि आज हम आपको उनके बारे में पूरी जानकारी देने वाले हैं? वे बड़े से बड़े फैसले लेती थीं. यहां तक की JRD Tata भी उनसे बिना सलाह लिये बड़े फैसले लेते नहीं थे.
दरअसल, हम बात कर रहे हैं नवाजबाई सेठ के बारे में, जो 1925 में टाटा संस की पहली महिला डायरेक्टर बनी थीं. अपने पति रतनजी टाटा (Ratanji Tata) के निधन के बाद नवाजबाई ने बिजनेस की कमान संभाली और 1965 तक इसका नेतृत्व किया.
नवाजबाई सेठ का जीवन दोराबजी टाटा के छोटे भाई और जमशेदजी टाटा के बेटे रतनजी टाटा ने 1892 में अर्देशिर मेरवानजी सेठ की छोटी बेटी नवाजबाई सेठ से शादी की थी. शादी करने के बाद रतनजी टाटा 1915 में इंग्लैंड चले गए और नवल टाटा को गोद ले लिया. साल 1918 में रतनजी टाटा के निधन से परिवार संकट में आ गया और Tata Sons की डायरेक्टर का पद संभालने का फैसला किया और ऐसा करने वाली वह पहली महिला थीं. उन्हें रतन टाटा की दादी के तौर पर भी जाना जाता है.
रतन टाटा ट्रस्ट की बनीं चेयरमैन Ratanji Tata और उनकी पत्नी नवाजबाई सेठ ने ट्विकेनहैम में यॉर्क हाउस खरीदा, जो ड्यूक ऑफ ऑरलियन्स का शानदार ग्रामीण घर था. उनके दोस्तों में किंग जॉर्ज पंचम और क्वीन मैरी काफी करीबी थे. नवाजबाई ने रतनजी से मिले कई घर भी उनके जीवनकाल में दान कर दिए थे. 1926 में नवाजबाई ने रतनजी के सम्मान में एक संस्थान की स्थापना की, जो बुजुर्ग और वंचित पारसी महिलाओं के मदद के लिए थी. यह संस्था महिलाओं को रोजगार प्रोवाइड कराती थी. बाद में यही संस्थान आगे चलकर 1928 में मुंबई में सर रतन टाटा इंस्टीट्यूट (आरटीआई) कहलायी. इसका उद्देश्य गरीब और जरूरतमंद महिलाओं को रोजगार उपलब्ध कराना और उन्हें प्रशिक्षण देना था. रतन टाटा ट्रस्ट का चेयरमैन नवाजबाई को 1932 में बनाया गया.
बनवाया था टाटा हाउस रतनजी और लेडी नवाजबाई महान कला के प्रेमी थें, जिन्होंने अपनी यात्रा में जेड, पेंटिंग और अन्य वस्तुओं का कलेक्शन किया था. वे इन चीजों को अपने घर को सजाने के लिए करने वाले थे, लेकिन रतनजी टाटा का निधन हो गया. फिर नवाजबाई ने इस कलेक्शन को प्रिंस ऑफ वेल्स संग्रहालय में भेज दिया. साथ ही इंग्लैंड की यॉर्क हाउस को भी बेच दिया. बाद में उन्होंने बंबई में घर को पूरा करने का जिम्मा उठाया, जिसे आज हम टाटा हाउस के नाम से जानते हैं.
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