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मिताली राज: नींद से प्यार करने वाली क्रिकेटर, जिसने देश में महिला क्रिकेट की ‘अलख’ जगा दी
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वनडे क्रिकेट में डेब्यू से अलग मिताली राज के लिए टेस्ट मैच का डेब्यू याद करने वाला नहीं है. वनडे टीम में आने के तीन साल बाद ही मिताली राज को 2002 में टेस्ट टीम में बुला लिया गया, लखनऊ में तब टीम इंडिया इंग्लैंड के खिलाफ मैच खेल रही थी. लेकिन मिताली अपने टेस्ट करियर की पहली ही पारी में ज़ीरो पर आउट हो गईं, लेकिन पिछले दो-तीन साल में मिताली इतना बड़ा नाम हो गई थीं कि तुरंत तो उनकी जगह पर कोई संकट नहीं आने वाला था. मिताली ने करियर के दूसरे टेस्ट में फिफ्टी जड़ दी और तीसरे टेस्ट में तो कमाल ही हो गया.
साल 1990. ये वो वक्त था जब देश में एक अलग तरह का उबाल चल रहा था. उत्तर भारत में राष्ट्रवादी संगठनों द्वारा अयोध्या में राम मंदिर बनाने को लेकर आंदोलन चलाया जा रहा था. भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, जो उस वक्त गुजरात के सोमनाथ से लेकर उत्तर प्रदेश के अयोध्या तक रथ यात्रा निकाल रहे थे. माहौल हर दिन के साथ गरमा रहा था, क्योंकि रथ यात्रा के साथ-साथ सड़कों पर हज़ारों की भीड़ ‘कारसेवा’ करने के इरादे से आगे बढ़ रही थी और दिल्ली में बैठी सरकार की चिंताएं बढ़ रही थी. जब पश्चिम और उत्तर भारत इस आंदोलन से डगमग हो रहा था. उसी दौरान राजनीति की इस दुनिया से अलग दक्षिण भारत में एक नया अध्याय लिखा जा रहा था. ये दुनिया क्रिकेट की थी, जहां कुछ ऐसा होने जा रहा था जो सिर्फ खेल नहीं बल्कि हिन्दुस्तानी समाज के नज़रिए को भी बदलने का माद्दा रखता था. हैदराबाद के सिकंदराबाद में रहने वाले दोराई राज, जो भारतीय वायुसेना में काम करते थे. वायुसेना के लिए नौकरी करते हुए वो राजस्थान के जोधपुर से हैदराबाद में शिफ्ट हुए थे. दोराई राज, वायुसेना के अफसर थे यानी अनुशासन कूट-कूट कर भरा था. ऊपर से वह साउथ इंडियन भी थे, जो नियमों को दिल से मानते हैं. लेकिन अनुशासन से भरे दोराई राज के घर में एक ऐसी लड़की भी थी, जो इन बंधनों से परे थे. ये वक्त 1990 का था, दोराई राज की बेटी मिताली राज उस वक्त सिर्फ 8 साल की थी. एक छोटी बच्ची, जिसे आपके और हमारी तरह नींद काफी प्यारी थी. और बस यही चाहती थी कि कोई उसे सुबह जल्दी ना उठाए. दोराई राज और उनकी पत्नी लीला राज भी बस यही सोचते थे कि बेटी के आलस को दूर कैसे करें, तब दोराई राज ने 8 साल की मिताली को क्रिकेट ग्राउंड ले जाना शुरू कर दिया. मिताली के भाई उस वक्त सिकंदराबाद के सेंट जॉन्स अकादमी में क्रिकेट की कोचिंग लिया करते थे. पिता ने मिताली को भी साथ ले लिया, वह भी क्रिकेट खिलाने के लिए नहीं बल्कि आलस को दूर भगाने के लिए. तब मिताली का बस यही काम होता था कि वह ग्राउंड के बाहर बाउंड्री पर बैठकर अपने स्कूल के होमवर्क को पूरा करती थी. वहां अपने भाई और दूसरे लोगों को क्रिकेट खेलते हुए देखते रहती थी. जब होमवर्क खत्म हो जाता, भाई की कोचिंग भी पूरी हो जाती, तब 8 साल की मिताली भी ग्राउंड में घुसकर बैट उठा लेती और 8-10 बॉल खेलने लगती. ये सिर्फ एक छोटी लड़की का बचपना था, लेकिन सेंट जॉन्स अकादमी के कोच ज्योति प्रसाद को कुछ अलग ही नज़र आया. ज्योति प्रसाद, जो खुद फर्स्ट क्लास क्रिकेटर रह चुके थे और अपने नाम के आगे 100 से ज्यादा विकेट दर्ज कराए हुए थे. उन्होंने मिताली राज के पिता दोराई से बात की और बेटी के खेलने के तरीके पर गंभीरता से सोचने को कह दिया. आलस दूर करने के बहाने क्रिकेट के मैदान पर ले जाई गईं मिताली राज ने उस वक्त जो कैजुअली 8-10 बॉल खेलीं, उसने हिन्दुस्तान में महिला क्रिकेट का इतिहास और आने वाली कई पीढ़ियों को बदलकर रख दिया. सीधा शॉट ना खेलने पर जब पड़ती थी छड़ी ज्योति प्रसाद की सलाह को मिताली राज के पिता दोराई राज ने काफी गंभीरता से ले लिया. 9 साल की मिताली राज की तब असली क्रिकेट ट्रेनिंग शुरू हुई. दोराई राज अपनी बेटी को संपत कुमार के पास ले गए, जो उस वक्त हैदराबाद में क्रिकेट ट्रेनिंग दिया करते थे. संपत ने मिताली को बैटिंग करते देखा और बस फिर क्या दोराई राज और उनकी पत्नी से कसम खिलवा ली. 9 साल की मिताली की बैटिंग देखकर संपत कुमार इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने दोराई राज से कहा कि वह पूरी तरह से बेटी को क्रिकेट के लिए सौंप दें, पढ़ाई वगैरह सब चलता रहेगा. ऐसा हुआ तो सिर्फ 14-15 साल की उम्र में मिताली इंडिया के लिए खेल सकती है. संपत की बातें सुनकर तब दोराई राज, लीला को हंसी ज़रूर आई होगी. लेकिन उन्होंने मिताली को क्रिकेट पर फोकस करने के लिए तैयार कर दिया. बस फिर क्या था, संपत कुमार की अगुवाई में मिताली राज की ट्रेनिंग शुरू हो गई. एक इंटरव्यू में मिताली राज उन दिनों की ट्रेनिंग पर बात भी कर चुकी हैं, जहां उन्होंने कहा, ‘तब क्रिकेट ट्रेनिंग के चक्कर में मुझे भरतनाट्यम छोड़ना पड़ा था, मुझे डांस काफी प्यारा था. लेकिन क्रिकेट के चक्कर में वह चला गया, तब मेरी ट्रेनिंग एक रेस के घोड़े की तरह हुई. क्योंकि मुझे इधर-उधर नहीं बल्कि सीधा ही देखना था. स्कूल के कॉरिडोर में संपत सर ट्रेनिंग करवाते थे, ताकि बल्ले से सीधे शॉट निकलें. अगर बॉल दीवार पर लग जाती थी, तो छड़ी भी पड़ती थी. बॉल हमेशा मिडिल पर टच हो, इसके लिए हम स्टंप से बैटिंग करते थे.’ मिताली राज की ये तपस्या सफल हुई और वह 13 साल की उम्र में आंध्र प्रदेश की सीनियर टीम में शामिल हो गई थीं. 1997 में होने वाले वर्ल्डकप के कैंप में जब मिताली राज का सिलेक्शन हुआ, तभी कोच संपत कुमार की एक एक्सीडेंट में मौत हो गई थी. मिताली राज के लिए ये बड़ा झटका था, क्योंकि पिछले चार-पांच साल से जिससे इतना क्रिकेट सीखा सबसे बड़े मौके पर वही दुनिया छोड़कर चला गया. मिताली बिल्कुल शांत हो गईं, इसके तुरंत बाद भी झटका लगा जब वर्ल्डकप की टीम में मिताली का नाम ही नहीं आया. ये सबकुछ 14-15 साल की एक लड़की के साथ हो रहा था.
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