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महाकुंभ: क्या होता है कल्पवास? जानिए जीवन पर इसके गहरे प्रभाव की कहानी
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कल्पवास कोई भी कर सकता है, लेकिन इसे विशेष रूप से उन लोगों के लिए माना जाता है जिन्होंने जीवन की जिम्मेदारियों से मुक्ति पा ली हो. यह गहन अनुशासन और आत्म-नियंत्रण की मांग करता है.
कल्पवास का उद्देश्य सांसारिक सुख-सुविधाओं से दूर रहकर ईश्वर से जुड़ना है. सुबह-शाम गंगा में स्नान, ध्यान, प्रार्थना, और धार्मिक प्रवचन इसमें शामिल हैं. इस दौरान कल्पवासी केवल एक बार फलाहार करते हैं और भक्ति व तपस्या में समय बिताते हैं.
कुंभ मेला और कल्पवास का संबंध कुंभ मेले में कल्पवास का विशेष महत्व है. यह पवित्र नदियों के संगम पर आत्म-शुद्धि और मोक्ष की ओर कदम बढ़ाने का अवसर प्रदान करता है. पौराणिक मान्यता है कि यहां किया गया तप हर पाप को नष्ट कर देता है और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है.कल्पवास के दौरान, श्रद्धालु पवित्र नदियों के संगम पर ध्यान, भजन, और वेदों के अध्ययन में समय बिताते हैं. यह समय आत्मनिरीक्षण और आध्यात्मिक उन्नति के लिए माना जाता है. सांसारिक मोह-माया से दूर, यहां भौतिक सुखों का त्याग कर दिव्य ऊर्जा से जुड़ने का प्रयास किया जाता है.
कौन कर सकता है कल्पवास? कल्पवास कोई भी कर सकता है, लेकिन इसे विशेष रूप से उन लोगों के लिए माना जाता है जिन्होंने जीवन की जिम्मेदारियों से मुक्ति पा ली हो. यह गहन अनुशासन और आत्म-नियंत्रण की मांग करता है. युवा भी इसमें भाग ले सकते हैं, बशर्ते वे तपस्या और संयम के प्रति पूरी तरह समर्पित हों.
पुराणों में कल्पवास का महत्व महाभारत और मत्स्यपुराण में कल्पवास का उल्लेख मिलता है. यह कहा गया है कि जो लोग तप और भक्ति के साथ कल्पवास करते हैं, वे न केवल पापमुक्त होते हैं, बल्कि स्वर्ग में स्थान पाते हैं. पौराणिक कथा के अनुसार, देवता भी प्रयाग में कल्पवास के लिए मनुष्य के रूप में जन्म लेने की इच्छा रखते हैं.
आधुनिक संदर्भ में कल्पवास आज के समय में, जब भागदौड़ भरी जिंदगी में शांति और आत्मनिरीक्षण के पल ढूंढना मुश्किल हो गया है, कल्पवास एक ऐसा अनुभव है जो व्यक्ति को आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है. कुंभ मेले में लाखों लोग इस परंपरा को निभाकर आत्मा की शुद्धि और आंतरिक शांति का अनुभव करते हैं.
कल्पवास: आत्मा से ईश्वर तक का सफर कल्पवास केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक ऐसा अवसर है जो व्यक्ति को स्वयं के करीब लाता है. यह जीवन में विनम्रता, संयम और भक्ति के महत्व को सिखाते हुए ईश्वर से जुड़ने का रास्ता दिखाता है.
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प्रयागराज में माघ पूर्णिमा के अवसर पर करीब 2 करोड़ श्रद्धालुओं ने संगम में आस्था की डुबकी लगाई. इस दौरान शासन-प्रशासन हर मोर्चे पर चौकस रहा. योगी आदित्यनाथ ने सुबह 4 बजे से ही व्यवस्थाओं पर नजर रखी थी. श्रद्धालुओं की भारी भीड़ के कारण ट्रेनों और बसों में यात्रियों को परेशानी का सामना करना पड़ा. देखें.
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हिंदू पंचांग के अनुसार माघ मास में शुक्ल पक्ष का 15वीं तिथि ही माघ पूर्णिमा कहलाती है. इस दिन का धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से खास महत्व है और भारत के अलग-अलग हिस्सों में इसे श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है. लोग घरों में भी कथा-हवन-पूजन का आयोजन करते हैं और अगर व्यवस्था हो सकती है तो गंगा तट पर कथा-पूजन का अलग ही महत्व है.