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400 साल पुराने कब्र में मिले 'वैम्पायर' के कंकाल...? खोजने वाले वैज्ञानिक ने बताई ये सच्चाई
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क्रोएशिया के एक पुराने किले राचेसा में 15वीं शताब्दी के एक 'वैम्पायर' के अवशेष पाए गए हैं, जिसका सिर काट दिया गया था और धड़ उल्टा था. ताकि वह फिर से जीवित न हो सके.
'वैम्पायर' हॉलीवुड फिल्मों और पौराणिक पश्चिमी कथाओं का एक डरावना पात्र है. इससे हर कोई वाकिफ हैं. इसे बुरे काम करने वाला और इंसानों का खून चूसने वाला बताया जाता है. कई यूरोपीय देशों में इसके अस्तित्व से जुड़े कथा-कहानियां सैकड़ों साल पहले काफी प्रचलित थी, जिसका वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं था. फिर भी कई लोगों को इस संदेह में कि वे वैम्पायर हो सकते हैं उन्हें मार डाला गया.
इन्हीं किस्से-कहानियों पर कई हॉलीवुड फिल्में, टीवी शो और वेब सीरीज बन चुकी हैं. अब क्रोएशिया के एक मध्ययुगीन किले में एक 'वैम्पायर' के अवशेष मिलने की बात कही जा रही है. चलिए जानते हैं इस कंकाल को खोजने वाले वैज्ञानिकों क्या बताया?
क्रोशिया में मिला संदिग्ध वैम्पायर का शव क्रोएशिया के एक पुराने किले राचेसा में 15वीं शताब्दी के एक 'वैम्पायर' के अवशेष पाए गए हैं, जिसका सिर काट दिया गया था और धड़ उल्टा था. ताकि वह फिर से जीवित न हो सके. राचेसा को नाइट्स टेम्पलर (धर्म योद्धाओं) का संदिग्ध गढ़ माना जाता है. वहां 180 से अधिक शव दफन हैं, लेकिन इनमें से एक विशेष रूप से असामान्य शव के अवशेष मिले हैं.
शव को दफनाने से पहले किया ये हाल डेली मेल की रिपोर्ट के मुताबिक इन अवशेषों पर शोध करने वाली मुख्य रिसर्चर और पुरातत्वविद् डॉ. नताशा सार्कीक कहती हैं कि शरीर को जिस प्रकार व्यवस्थित किया गया था, उससे साफ पता चलता है कि ये स्वभाविक नहीं है, बल्कि यह एक मानवीय हस्तक्षेप था. यानी किसी इंसान ने शव के साथ छेड़छाड़ कर इसे फिर से दफना दिया होगा.
फिर से शव के जीवित होने का रहा होगा संदेह संदिग्ध पिशाच को जीवित लोगों से बदला लेने से रोकने का प्रयास किया गया होगा. उसके बाद उसके धड़ को सावधानीपूर्वक उल्टा करके रखा गया. सिर 30 सेमी दूर रखा गया था. उसके पैरों के बीच एक 'बड़ी ईंट' भी पाई गई थी और उसके सिर के नीचे एक बड़ा पत्थर रखा हुआ था.
पुराने समय में वैम्पायर के अस्तित्व पर लोगों करते थे भरोसा डॉ. सार्कीक का कहना है कि क्रोएशिया जैसे स्लाविक देशों में लोग सैकड़ों वर्षों से वैम्पायर और पिशाचों के अस्तित्व में दृढ़ विश्वास रखते थे. क्रोएशियाई ग्रामीण जुरे ग्रांडो अलिलोविच के मामले का उल्लेख किया, जिनकी मृत्यु 1656 में हुई थी और ऐतिहासिक अभिलेखों में उन्हें पिशाच यानी वैम्पायर बताया गया है.
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हिंदू पंचांग के अनुसार माघ मास में शुक्ल पक्ष का 15वीं तिथि ही माघ पूर्णिमा कहलाती है. इस दिन का धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से खास महत्व है और भारत के अलग-अलग हिस्सों में इसे श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है. लोग घरों में भी कथा-हवन-पूजन का आयोजन करते हैं और अगर व्यवस्था हो सकती है तो गंगा तट पर कथा-पूजन का अलग ही महत्व है.