ब्रिटेन में ऋषि सुनक से छिनी सत्ता, स्टार्मर के पीएम बनने से भारत पर क्या होगा असर?
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ब्रिटेन में 14 सालों बाद लेबर पार्टी की सत्ता में वापसी हो रही है. अब किएर स्टार्मर ब्रिटेन के नए प्रधानमंत्री होंगे. ऋषि सुनक के जाने और नई पार्टी के आने से ब्रिटेन की नीतियां बदलेंगी जिसका भारत पर भी असर होगा.
ब्रिटेन में किएर स्टार्मर के नेतृत्व वाली लेबल पार्टी ने आम चुनाव में ऋषि सुनक की कंजर्वेटिव पार्टी को हराकर बड़ी जीत हासिल कर ली है. भारतीय मूल के प्रधानमंत्री सुनक ने अपनी हार स्वीकार कर ली है जिसके बाद अब किएर स्टार्मर ब्रिटेन के नए प्रधानमंत्री बनने के लिए तैयार हैं. शुक्रवार को स्टार्मर अपना पद संभाल सकते हैं. ब्रिटेन में लेबर पार्टी की वापसी 14 सालों बाद हुई है और इस बदलाव से ब्रिटेन सरकार की नीतियां भी बदलेंगी जिसका असर ब्रिटेन के अहम सहयोगी भारत पर भी पड़ने वाला है.
ब्रिटेन में 650 संसदीय क्षेत्र हैं जिनमें से 641 सीटों के नतीजे आ चुके हैं. 410 सीटों पर लेबर पार्टी को जीत मिली है जबकि ऋषि सुनक की कंजर्वेटिव पार्टी महज 119 सीटें ही जीत पाई है.
ब्रिटेन में लेबर पार्टी की वापसी से भारत-ब्रिटेन रिश्तों पर असर
भारत और ब्रिटेन के रिश्ते हमेशा से ही लगभग स्थिर रहे हैं और ऋषि सुनक के कार्यकाल के दौरान भी रिश्ते सही रहे हैं. दोनों देशों के द्विपक्षीय रिश्तों में व्यापार एक अहम विषय रहा है और दोनों देश चाहते हैं कि मुक्त व्यापार समझौता हो जाए ताकि व्यापार को बिना रुकावट और आगे ले जाया जा सके.
दोनों देशों के बीच 2022-23 में 20.36 अरब डॉलर का व्यापार था जो 2023-24 में बढ़कर 21.34 अरब डॉलर हो गया है.
भारत और ब्रिटेन के बीच मुक्त व्यापार समझौता बातचीत का एक अहम मुद्दा रहा है और यह मुद्दा ब्रिटेन की दोनों पार्टियों के एजेंडे में है. कंजर्वेटिव पार्टी के मेनिफेस्टो में मुक्त व्यापार समझौते को लेकर लिखा गया, 'हम भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर मुहर लगाएंगे साथ ही भारत के साथ टेक्नोलॉजी और रक्षा के क्षेत्र में रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत करेंगे.'
1991 में गल्फ वॉर की समाप्ति ने ईरान और इज़रायल के बीच खुली दुश्मनी के युग की शुरुआत की. सोवियत संघ के पतन और एकमात्र महाशक्ति के रूप में अमेरिका के उदय ने इस क्षेत्र को और अधिक पोलराइज्ड कर दिया. वहीं, ईरान और इज़रायल ने खुद को लगभग हर प्रमुख जियो-पॉलिटिकल विमर्श में एक दूसरे के खिलाफ पाया. 1980 के दशक में शुरू हुआ ईरान का न्यूक्लियर प्रोग्राम 1990 के दशक से विवाद का केंद्र बन गया.