नई 'तिकड़ी' कम करेगी पश्चिमी देशों की धाक? जानिए BRICS कैसे बदल रहा वर्ल्ड ऑर्डर
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रूस के कजान शहर में BRICS की 16वीं समिट हो रही है. पिछले साल तक BRICS में पांच देश हुआ करते थे, लेकिन अब इसमें 10 देश हैं. देखा जाए तो BRICS देशों की आर्थिक ताकत सबसे बड़ी है. तेल का सबसे ज्यादा भंडार भी इन्हीं देशों के पास है.
रूस के कजान शहर में BRICS समिट हो रही है. इस बार की समिट कई मायनों में खास है. एक बड़ी वजह तो ये है कि BRICS अब पांच देशों का संगठन नहीं रह गया है. अब 10 देश इसके सदस्य बन गए हैं. दूसरी वजह ये है कि इस समिट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से द्विपक्षीय बातचीत भी की.
कुछ सालों में BRICS दुनिया के सबसे ताकतवर संगठन के रूप में उभरा है. दिलचस्प बात ये है कि तीन दर्जन से ज्यादा देश ऐसे हैं, जो BRICS में शामिल होना चाहते हैं. ये वो देश हैं, जो अब तक न तो अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ थे और न ही रूस-चीन के साथ.
लेकिन अब दुनिया के कई देश अमेरिका और पश्चिमी देशों की बजाय BRICS के साथ आना चाहते हैं. वो इसलिए भी क्योंकि ये देश BRICS को पश्चिमी देशों के प्रभुत्व वाले वैश्विक संगठनों के विकल्प के रूप में देखते हैं. अमेरिका का विरोध भी कई देशों को BRICS के करीब आने पर मजबूर करता है. लेकिन बड़ा सवाल ये खड़ा होता है कि क्या BRICS से एक नया 'वर्ल्ड ऑर्डर' तैयार हो रहा है?
इसे रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव के बयान से भी समझा जा सकता है. BRICS समिट से एक दिन पहले लावरोव ने कहा था कि 1990 के दशक में भारत-रूस और चीन की तिकड़ी में नियमित बैठकें शुरू हुई थीं. बाद में इसी तिकड़ी से BRICS बना. उन्होंने ये भी कहा कि दुनिया की ताकत एशिया की तरफ शिफ्ट हो रही है.
BRIC, BRICS और अब BRICS+
साल 2006 में BRIC देशों की पहली बैठक हुई. BRIC में ब्राजील, रूस, भारत और चीन थे. 2009 में BRIC देशों की पहली शिखर स्तर की बैठक हुई. 2010 में इस संगठन में साउथ अफ्रीका भी शामिल हो गया और संगठन का नाम BRIC से BRICS हो गया.
रूस के कजान में ब्रिक्स सम्मेलन के इतर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ईरान के राष्ट्रपति मसूद पजेश्कियन ने पश्चिम एशिया में शांति की पहल और भारत-ईरान संबंधों को मजबूत बनाने पर चर्चा की. चाबहार पोर्ट और INSTC जैसे अहम परियोजनाओं पर ध्यान केन्द्रित करते हुए, भारत ने क्षेत्रीय बातचीत और कूटनीति की वकालत की.