झारखंड: गरीब बच्चों तक नहीं पहुंच रहा मिड डे मील का लाभ, जमीन पर फेल हैं सरकार के प्लान
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राज्य के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले अधिकतर बच्चे स्कूलों में मिलने वाले मिड डे मील पर आश्रित है. पिछले साल योजना पूरी तरह सफल नहीं हो पाई थी. 55 फीसदी विद्यार्थियों तक मिड डे मील में दी जाने वाली खाद्यान्न और कुकिंग कॉस्ट की राशि उनके अकाउंट में भेजी गई थी. बाकी विद्यार्थियों तक अनाज पहुंचा कि नहीं यह अभी भी सवाल बना हुआ है.
झारखंड़ में 2020 से ही मिड डे मील की व्यवस्था चरमरा गई है और ज़रूरतमंद बच्चों को इसका लाभ नही मिल रहा है. मध्याह्न भोजन से बच्चों को न्यूट्रीशन तो मिलता ही था, उन्हें पढ़ाई में भी कंसन्ट्रेट करने में सहूलियत होती थी क्योंकि बेहद कमज़ोर आर्थिक वर्ग से आने वाले बच्चों को भर पेट एक शाम के भोजन की चिंता नही करनी होती थी. मिड डे मील को घर-घर पहुंचाने की कोशिश भी की गई लेकिन वो भी फ्लॉप साबित हुआ. अनाज और कैश की व्यवस्था भी सरकार ने की थी लेकिन वो भी जून से बंद है और बच्चे परेशान हैं.देश ही नहीं बल्कि दुनिया का सबसे बड़ा अस्था का मेला यानि की महाकुंभ को 10 दिन हो चुके हैं और इन 10 दिनों में 2 अमृत स्नान भी हो चुके हैं. महाकुंभ में जिस तरह से श्रद्धालुओं के आने का सिलसिला जारी है ऐसा लग रहा है कि आखिरी दिन तक आंकलन से ज्यादा श्रद्धालु यहां स्नान करने के लिए पहुंचेंगे. महाकुंभ के 10 दिन हो गए. अब तक 10 करोड़ से ज्यादा लोगों ने संगम में आस्था की डुबकी लगाई.
Prayagraj Mahakumbh: अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी ने IIT इंजीनियर से बाबा बने अभय सिंह, हर्षा रिछारिया और मोनालिसा जैसे चेहरों पर पूरे महाकुंभ की सुर्ख़ियों को हाईजैक करने का आरोप लगाया है. महंत पुरी ने कहा कि इस महाकुंभ में हजारों ऐसे साधु-संत या ऐसे महामंडलेश्वर आए हैं, जो इन लोगों से कहीं ज्यादा पढ़े-लिखे हैं.
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