
आसियान गुट का हिस्सा बनने के लिए जोर लगा रहा बांग्लादेश, क्या असर होगा इससे भारत पर?
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बांग्लादेश की फॉरेन पॉलिसी बदल रही है. वो पुराने साथियों से दूरी बरतते हुए नए दोस्त चुन रहा है. इस बीच ये देश आसियान (एसोसिएशन ऑफ साउथ-ईस्ट एशियन नेशन्स) से जुड़ने की उम्मीद भी कर रहा है. अब ये सवाल नहीं रहा कि क्या ढाका को आसियान में शामिल होने की इच्छा है, बल्कि ये सवाल बड़ा हो चुका कि क्या आसियान देश अपने इस पड़ोसी को अपनाएंगे.
बांग्लादेश में शेख हसीना के तख्तापलट के बाद फिलहाल अंतरिम सरकार है. वो अपनी विदेश नीति तेजी से बदल रही है. उसके रवैये में पुराने साथियों के लिए ठंडापन है, जबकि दक्षिणपूर्वी एशियाई देशों से जुड़ाव दिख रहा है. चर्चा है कि ढाका आसियान देशों का समूह जॉइन कर सकता है. जानें, क्या है आसियान, और बांग्लादेश के इसका हिस्सा बनने के बाद क्या बदल जाएगा? क्या किसी भी तरह से ये भारत के लिए कोई खतरा हो सकता है?
आसियान दक्षिणपूर्वी एशियाई देशों का एक गुट है, जिसका मकसद आपस में मेलजोल रखना और व्यापार को बढ़ावा देना है. इसमें ब्रुनेई, कंबोडिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाइलैंड और वियतनाम जैसे देश हैं. भौगोलिक स्थिति के अलावा धार्मिक आधार पर भी ये देश आपस में जुड़े हुए हैं, क्योंकि ज्यादातर देश मुस्लिम-बहुल हैं. पिछले कुछ समय से बांग्लादेश भी इसमें दिलचस्पी दिखा रहा है. लेकिन फिलहाल तक समूह ने ऐसा कोई संकेत नहीं दिया कि वो अपने गुट में नए सदस्य को जोड़ेगा.
क्या ढाका को लेकर डरे हुए हैं आसियान देश आसियान देश कोई सैन्य समूह तो हैं नहीं, बल्कि इनका बड़ा फोकस व्यापार और कूटनीति पर रहा. यही वजह है कि ये देश सीधे किसी पचड़े में नहीं फंसते. दिलचस्प बात ये है कि ये समूह सारी बड़ी ताकतों से बनाकर रखता आया है. जैसे इंडोनेशिया भले ही मुस्लिम देश हो, और फिलिस्तीन का भी समर्थन करे लेकिन कूटनीतिक तौर पर वो अमेरिका से बैर नहीं लेगा. इधर एक ही समूह के होने के बाद भी ब्रुनेई, कंबोडिया और लाओस चीन के ज्यादा करीब रहे. कुल जमा ये बात है कि व्यापार में जो भी फायदा देगा, देश उसके साथ रहेंगे.
कुछ समय पहले बांग्लादेश के अंतरिम सलाहकार मोहम्मद यूनुस ने आसियान जॉइन करने के लिए मलेशिया और इंडोनेशिया की मदद लेनी चाही. ऑस्ट्रेलियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स की रिपोर्ट के अनुसार, यूनुस ने अपने देश को सार्क और आसियान देशों के बीच एक कड़ी की तरह पेश किया. बता दें कि सार्क दक्षिण एशियाई देशों का गुट है, जिसमें बांग्लादेश को मिलाकर 8 देश हैं. भारत भी इसका हिस्सा है.
तब ढाका को क्यों शामिल नहीं किया जा रहा आसियान अब तक यूरोप के बाहर सबसे बड़ा क्षेत्रीय गुट है, जिसका मार्केट 680 मिलियन लोगों से बना है. बांग्लादेश के लिए ये बहुत बड़ा मौका हो सकता है, जिसके 100 से भी कम सालों में दो बार बंटवारे का दर्द झेला और अब राजनैतिक रूप से भी अस्थिर है. आसियान के लगभग सारे ही देश अपने इकनॉमिक स्ट्रक्चर को बदलकर पैसे कमा रहे हैं. जैसे वियतनाम को ही लें तो वो इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए मैनुफैक्चरिंग हब बन चुका. ढाका के सपने भी बड़े हैं लेकिन वो तब तक पूरे नहीं होंगे, जब तक कि वो लोकल समूह का हिस्सा न बन जाए. इसके साथ ही क्षेत्रीय बाजार पर उसे ड्यूटी फ्री एक्सेस मिलेगा.

स्वेच्छा से देश नहीं छोड़ने वालों पर 998 डॉलर प्रतिदिन (लगभग 85,924 रुपये) का जुर्माना लगाया जाएगा, यदि उन्हें स्वदेश वापसी का अंतिम आदेश मिल चुका है. इसके अलावा, जिन्होंने अधिकारियों को सूचित किया है कि वे देश छोड़ देंगे लेकिन फिर भी नहीं जाते, उन पर 1,000 से 5,000 डॉलर (लगभग 86,096 रुपये से 4.30 लाख रुपये) तक का जुर्माना लगाया जाएगा.

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