
Shabaash Mithu Review: वर्ल्ड कप फाइनल हार कर भी क्यों 'हीरो' हैं मिताली राज? क्रिकेटर के रोल में तापसी की उम्दा एक्टिंग
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बायोपिक को लेकर हमेशा से एक डिबेट रहा है कि इसके जरिए किरदार को हमेशा से ग्लोरिफाई किया जाता रहा है. डायरेक्टर सृजित मुखर्जी के इस फिल्म में भी मिताली राज एक हीरो के रूप में नजर आती हैं.
क्रिकेट के कितने बड़े फैन हैं आप? क्या पूरी क्रिकेट टीम प्लेयर का नाम बता पाएंगे? मैं जेंटलमेन नहीं बल्कि फीमेल क्रिकेटर्स के नाम की लिस्ट पूछ रही हूं. क्या हुआ? नहीं पता.. चलिए कम से कम इंडिया की टॉप तीन फीमेल प्लेयर का नाम बता दें. वो भी नहीं... चलो ठीक है दो.. ओके एक.. एक तो पता ही होगा.... अगर सच में आपको मेरे इन सवालों का जवाब नहीं पता है, तो इसके जवाब के लिए आप तापसी पन्नू की फिल्म 'शाबाश मिथु' को एक मौका जरूर दे सकते हैं.
वैसे तो बॉलीवुड में पिछले कुछ समय से स्पोर्ट्स ड्रामा जॉनर काफी एक्सप्लोर किया जा रहा है. खासकर क्रिकेट और क्रिकेटर्स पर कई बायोपिक बन चुके हैं. जेंटलमेंस गेम को एक अलग पहचान देने की कोशिश शाबाश मिथु के जरिए की गई है. फिल्म इंडियन क्रिकेट वुमन टीम की कैप्टेन मिताली राज के जीवन पर आधारित है.
स्टोरी कहानी 1990 के टाइम फ्रेम में पहुंचती है, जहां मिताली और नूरी की दोस्ती भरतनाट्यम के क्लास में होती है. मिताली जहां नूरी को डांस सीखाती हैं, तो वहीं नूरी मिथु को क्रिकेट खेलने के लिए प्रेरित करती है. गली में लड़कों संग क्रिकेट खेल रही मिताली और नूरी पर कोच संपत (विजय राज) की नजर पड़ती है, जहां वो इन दोनों को अपने यहां ट्रेनिंग में रख लेते हैं. ट्रेनिंग के दौरान नूरी अपने घर वालों से सात साल तक क्रिकेट प्रैक्टिस की बात छुपाती है. वहीं मिताली अपने परिवार के सपोर्ट से रोजाना ट्रेनिंग के लिए एकेडमी जाती है. नेशनल टीम में सिलेक्शन के दौरान नूरी का निकाह हो जाता है और मिताली इंडियन टीम का हिस्सा बन जाती है. फिल्म मिताली के दमदार क्रिकेट परफॉर्मेंसेज, उनके कैप्टेन बनने का सफर और क्रिकेट बोर्ड से होने वाले अनबन आदि को लेकर आगे बढ़ती है. दरअसल कहानी जेंटलमेन्स के गेम कहे जाने वाले क्रिकेट में वुमेन्स टीम को बराबर का हक दिलाने की जद्दोजहद पर आधारित है. इस दौरान कैसे मिताली अपनी कैप्टेंसी में क्रिकेट टीम को वर्ल्डकप फाइनल पर पहुंचाती है. यह देखने के लिए आपको थिएटर जाना होगा.
डायरेक्शन बायोपिक को लेकर हमेशा से एक डिबेट रहा है कि इसके जरिए किरदार को हमेशा से ग्लोरिफाई किया जाता रहा है. डायरेक्टर सृजित मुखर्जी के इस फिल्म में भी मिताली राज एक हीरो के रूप में नजर आती हैं. फिल्म के पहले हाफ की बात करें, तो इसमें कई ऐसे सीन्स हैं, जो आपको इमोशनल कर देते हैं. नूरी का आठ साल तक घर से छुपाकर क्रिकेट खेलना और इंडियन टीम सिलेक्शन के दिन उसका निकाह हो जाना यह दर्शाता है कि हमारे देश में ऐसी कितनी ही नूरी होंगी, जिनके सपने शादी पर आकर टूट जाते हैं. प्रैक्टिस के दौरान कोच विजय राज का मिताली के जूते पर किल ठोककर उसे सीखाना, गुरू-शिष्य के अनोखे रिश्ते को जाहिर करता है. वहीं इंटरवल से ठीक पहले एयरपोर्ट का वह सीन एक ओर जहां फीमेल क्रिकेट अपने सूटकेस से गर्म कपड़े निकालकर बाहर कर लगेज को बैलेंस करने की कोशिश कर रही हैं, तो वहीं दूसरी ओर पूरी सिक्यॉरिटी और इंडिया.. इंडिया.. नारों के साथ मेल क्रिकेटर्स को मैच के लिए रवाना किया जा रहा है. ये सीन आपको कचोटते हैं. वहीं सेकेंड हाफ पूरी तरह से क्रिकेट और अचीवमेंट्स पर फोकस किया गया है. जरूरत से ज्यादा स्क्रीन पर क्रिकेट मैच को दर्शाना, कहीं न कहीं आपको बोर करता है. वर्ल्डकप का फिनाले हारा हुआ क्रिकेटर अंत में कैसे हीरो बनता है. ये देखकर रोमांच पैदा होता है.
टेक्निकल और म्यूजिक फिल्म की सिनेमैटोग्राफी सिरशा रे ने की है. कहानी को कैमरे में सिरशा ने बखूबी उतारा है. चाहे वो क्रिकेट ग्राउंड का मैच हो या हैदराबाद स्थित एक छोटा सा घर, हर फ्रेम पर फिल्म खूबसूरत लगी है. वहीं एडिटिंग के मामले में श्रीकर प्रसाद थोड़ी और मेहनत करते, तो फिल्म और भी क्रिस्प बन सकती थी. कहानी कहीं-कहीं खींची लगती है, जिसे एडिट कर चुस्त बनाया जा सकता था. म्यूजिक में अमित त्रिवेदी से जो उम्मीद की जाती है, उसमें वे खरे उतरते नजर नहीं आते हैं. एक स्पोर्ट्स फिल्म में जज्बे और जुनूनियत पर गानें फिल्म की जान होते हैं. यहां गानें आपके अंदर के आग को नहीं जगा पाते हैं.
एक्टिंग फिल्म के सभी किरदारों ने एक से बढ़कर एक परफॉर्मेंस दी है. तापसी पन्नू की बात करें, तो मिथु के किरदार में उनकी मेहनत साफ झलकती है. उन्होंने उस किरदार के लिए खुद को झोंक दिया था, जिसका परिणाम स्क्रीन पर नजर आता है. हालांकि, कुछ इमोशंस सीन के दौरान उनके एक्सप्रेशन बहुत स्ट्रेट नजर आते हैं, अगर उन्हें नजरअंदाज करें, तो ओवरऑल अच्छी परफॉर्मेंस रही. विजय राज ने कोच की भूमिका में एक बार फिर साबित कर दिया है कि रोल चाहे जो भी हो, उसे बड़ी ही सहजता से जी जाते हैं. यहां सरप्राइज करती हैं, छोटी मितु (इनायत वर्मा) और नूरी(कस्तुरी जगनाम), ने गजब की परफॉर्मेंस दी है. फिल्म की कास्टिंग का श्रेय मुकेश छाबड़ा को जाता है, जिन्होंने बहुत ही परफेक्ट कास्ट के साथ फिल्म का धागा पिरोया है.

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