
Pippa Review: रिव्यू: भारतीय फौजी का जज्बा, जंग का दर्द, शानदार है ईशान खट्टर की 'पिप्पा'
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ईस्ट पाकिस्तान से कैसे बाग्लांदेश बना? कैसे बंटवारे के बाद बांग्लादेशियों पर जुल्म किए गए? कैसे उन्हें अपनी जान बचाने के लिए शरण लेने भारत आना पड़ा? भारत ने कैसे एक दूसरे देश की आजादी के लिए अपने सैनिकों को तैनात किया. भारत ना सिर्फ अपना बल्कि अपने पड़ोसी देशों का भी कितना ख्याल रखता है, ये सब इस फिल्म में दिखाया गया है. पढे़ं पिप्पा का रिव्यू...
ईशान खट्टर-मृणाल ठाकुर स्टारर 'पिप्पा' फिल्म अमेजन प्राइम प्लेटफॉर्म पर आ गई है. फिल्म देशभक्ति के जज्बे के साथ-साथ वॉर जोन, PT-75 टैंक, एक परिवार और रिफ्यूजीयों की जिंदगी के दर्द को भी दिखाने का दावा करती है. लेकिन फिल्म इस स्टोरीलाइन पर कितनी खरी उतर पाई है, ये आपको बताते हैं हम, अपने इस रिव्यू में.
क्या है पिप्पा की कहानी ईस्ट पाकिस्तान से कैसे बाग्लांदेश बना? कैसे बंटवारे के बाद बांग्लादेशियों पर जुल्म किए गए? कैसे उन्हें अपनी जान बचाने के लिए शरण लेने भारत आना पड़ा? भारत ने कैसे एक दूसरे देश की आजादी के लिए अपने सैनिकों को तैनात किया. भारत ना सिर्फ अपना बल्कि अपने पड़ोसी देशों का भी कितना ख्याल रखता है, ये सब इस फिल्म में दिखाया गया है. लेकिन इसी के साथ कहानी है एक परिवार की, जहां सब देश भक्ति के जज्बे में डूबे हैं, देश के लिए कुछ भी करने को तैयार है.
ब्रिगेडियर बलराम सिंह (ईशान खट्टर) मेजर राम मेहता (प्रियांशु पेनयुली) बहन राधा मेहता (मृणाल ठाकुर), तीनों भाई-बहन हैं. इनकी मां का रोल माती का रोल निभाया है सोनी राजदान ने. शहीद के पिता के कदमों पर चलते हुए दोनों बेटों ने भी फौज जॉइन की, लेकिन मेजर राम जितने उसूलों और आदर्शों वाले हैं, बलराम उतने ही जिद्दी हैं. देश को समर्पित होने का जज्बा तो रखते हैं, लेकिन किसी निर्देश या ऑथोरिटी को मानने से इनकार करते हैं. दोनों भाईयों के बीच दूरी का मसला भी यही है. वहीं बहन एक खूफिया एजेंसी से जुड़ी है, जो बाहर हो रही गतिविधियों पर नजर रखती है, और जरूरी संदेशों को डिकोड करती है.
फौजी परिवार का जज्बा
परिवार में रिश्तों की उधेड़बुन के साथ एक और महत्वपूर्ण कहानी है. और वो है PT-75 टैंक की, जो भारत का पहला ऐसा टैंक था, जो पानी में भी ऐसे तैरता था, जैसे घी का डिब्बा यानी पंजाबी भाषा में कहा जाने वाला शब्द 'पिप्पा'. इस जंग को लीड करने का जिम्मा कैप्टन बलराम सिंह मेहता को मिला था, जो भारत की 45 कैवेलरी रेजिमेंट का हिस्सा थे. उनके सीनियर्स के जंग के दौरान शहीद हो जाने पर कैप्टन बलराम ने इस जंग का नेतृत्व किया और बांग्लादेश को आजादी दिलाई. इसी के साथ उनके खुद के पारिवारिक बिगड़े रिश्ते भी सुलझ गए.
कैसी है फिल्म

अविनाश दास के डायरेक्शन में बनीं फिल्म इन गलियों में एक रोमांटिक ड्रामा है. जिसमें प्रेम-समाज और सोशल मीडिया के प्रभाव पर बात की गई है. फिल्म में एक्टर जावेद जाफरी, विवान शाह, अवंतिका दासानी ने लीड रोल प्ले किया है. 14 मार्च को रिलीज हो रही इस फिल्म ने समाज को सशक्त बनाने के लिए शानदार संदेश दिया है. फिल्म का निर्माण विनोद यादव, नीरू यादव ने किया है. इन गलियों में जावेद जाफरी मिर्जा साहब के रोल में समाज को सुधारने उतरे हैं. ये कहानी जरूर देखें लेकिन क्यों ये जानने के लिए जरूर देखें खास बातचीत.

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